भारत के साथ संबंधों में अमरीका ने पैदा कीं नई अड़चनें

Edited By Pardeep,Updated: 10 Aug, 2018 03:28 AM

america has created new hurdles in relations with india

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ईरान से संबंधित प्रतिबंधों का पहला दौर इस सप्ताह लागू हो गया, जबकि भारत के लिए कोई राहत नजर नहीं आती। अमरीकी कांग्रेस ने अपने नए रूस केन्द्रित प्रतिबंधों से भारत को छूट देने के लिए एक कानून पारित किया है मगर...

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ईरान से संबंधित प्रतिबंधों का पहला दौर इस सप्ताह लागू हो गया, जबकि भारत के लिए कोई राहत नजर नहीं आती। अमरीकी कांग्रेस ने अपने नए रूस केन्द्रित प्रतिबंधों से भारत को छूट देने के लिए एक कानून पारित किया है मगर यह छूट शर्तों के साथ है और इसके लिए राष्ट्रपति के प्रमाणीकरण की जरूरत होगी। भारतीय मीडिया ने छूट संबंधी विधेयक पारित करने को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया मगर उन शर्तों को नहीं, जो इससे जुड़ी हुई हैं। 

भारत, जो बहुत लम्बे समय से रूसी हथियारों का एक महत्वपूर्ण खरीदार तथा चीन के बाद ईरानी तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है, नए अमरीकी प्रतिबंधों का एक प्रमुख शिकार बना है। नई दिल्ली पर ऊर्जा तथा रक्षा के मोर्चों पर दो तरफा दबाव बनाते हुए वाशिंगटन ने द्विपक्षीय संबंधों में नई अड़चनें पैदा कर दी हैं, जिससे अमरीका के बहुत करीब रहते हुए एक विदेश नीति को आगे बढ़ाने में भारत के लिए जोखिम पैदा हो गए हैं। 

एक देश पर दंडात्मक प्रतिबंध लगाकर अमरीका न केवल उस देश के साथ अपनी व्यापारिक तथा वित्तीय गतिविधियां समाप्त करना चाहता है बल्कि अन्य देशों की भी। ऐसे अपरदेशीय प्रतिबंध जिन्हें नरम शब्दों में ‘सैकेंडरी’ प्रतिबंध कहा जाता है, अंतर्राष्ट्रीय कानून के विपरीत चलते हैं। फिर भी अमरीका अपनी अतुलनीय शक्ति का इस्तेमाल राष्ट्रीय कार्रवाइयों को वैश्विक गतिविधियों में बदलने के लिए करता है। हालांकि आज इसे अपने ईरान से संबंधित नए अपरदेशीय प्रतिबंधों को प्रभावी रूप से लागू करने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जो ट्रम्प की सनक है और रूस अपनी अर्थव्यवस्था चीन के मुकाबले 10 गुणा सिकुडऩे तथा चीन के मुकाबले 5 गुणा कम सैन्य खर्चे के बावजूद अभी भी वाशिंगटन में द्विदलीय उग्रता भड़का रहा है। 

ईरान द्वारा बहुपक्षीय ईरान परमाणु समझौते से एकपक्षीय तौर पर बाहर निकलने के बाद ट्रम्प के प्रतिबंधों का उद्देश्य ईरानी अर्थव्यवस्था का गला घोंटना है। यद्यपि नए रूसी प्रबंध कांग्रेस द्वारा शुरू किए गए थे जिसने ट्रम्प प्रशासन को मास्को के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मजबूर करने हेतु एक कानून पारित किया। काऊंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन्ज एक्ट अथवा काट्सा के नाम से जाना जाता यह कानून देशों को रूसी हथियार खरीदने से विमुख करने के लिए प्रतिबंधों के डर का इस्तेमाल करता है ताकि अमरीका द्वारा अपने हथियारों की बिक्री को बढ़ाया जा सके। 

अमरीका अभी तक पहले ही हथियारों का प्रमुख निर्यातक है। एक अन्य मिथ्याभास यह है कि अमरीका भारत को हथियार बेचने के मामले में रूस से आगे निकल गया है। मगर जहां रूस भारत को आक्रामक हथियार बेच रहा है, जिनमें परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बी (आई.एन.एस. चक्र) तथा एक विमान वाहक पोत (आई.एन.एस. विक्रमादित्य) शामिल हैं, वहीं अमरीका भारत को रक्षा सैन्य प्रणालियां बेच रहा है जैसे कि पी-8आई मैरीटाइम सर्विलांस एयरक्राफ्ट तथा सी-17 ग्लोबमास्टर-3 और सी-130जे सुपर हरक्यूलिस सैन्य परिवहन विमान। भारत किसी अन्य कारण से रूस के साथ अपने सुरक्षा संबंध नहीं तोड़ सकता क्योंकि यह अपने रूसी हार्डवेयर, जिनमें से कुछ रूसी मूल के ही हैं, के रखरखाव तथा मुरम्मत के लिए रूसी कलपुर्जों पर निर्भर करता है। 

जहां काट्सा छूट भारत को रूस से लंबित इंटरसैप्टर आधारित एस-400 ट्रायम्फ एयर एवं एंटी मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने की इजाजत देती है, वहीं रूस से भविष्य के भारतीय आयातों को अमरीकी जांच का सामना करना पड़ेगा। दरअसल छूट विधेयक यह अनिवार्य बनाता है कि भारत, वियतनाम तथा इंडोनेशिया, जिन तीन देशों को काट्सा प्रतिबंधों से छूट दी गई है, यह दिखाएं कि वे उल्लेखनीय रूप से रूसी हथियारों पर निर्भरता कम कर रहे हैं अथवा उल्लेखनीय रूप से अमरीका के साथ सहयोग बढ़ा रहे हैं। 

कांग्रेस का इरादा स्पष्ट रूप से छूट से लाभ उठाना है। उदाहरण के लिए राष्ट्रपति का प्रमाणीकरण आवश्यक तौर पर यह स्पष्ट करे कि प्रत्येक देश रूसी हार्डवेयर की अपनी खरीद को कम करने के लिए क्या सक्रिय कदम उठा रहा है अथवा योजना बना रहा है? भारत की रक्षा खरीद पर रोशनी डालने की ऐसी जरूरत का द्विपक्षीय संबंधों पर बुरा असर पडऩा स्वाभाविक है। वाशिंगटन भारत पर कम्युनिकेशन्स, कम्पैटीबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमैंट (कोमकासा) पर हस्ताक्षर करने के लिए भी दबाव बढ़ा रहा है, जिसे लेकर भारतीय सेना को डर है कि यह उसके नैटवर्क के साथ समझौता हो सकता है। केवल भारत, इंडोनेशिया तथा वियतनाम को छूट देने का कारण यह है कि अमरीका इन तीनों देशों को अपने दायरे में लाने का प्रयास कर रहा है। तुर्की, जो एक नाटो सदस्य है और भारत की तरह एस-400 खरीद रहा है, कांग्रेस अंकारा के खिलाफ बदले की धमकी दे रही है। हालांकि भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम पर से अमरीकी दबाव पूरी तरह दूर होने की आशा नहीं है क्योंकि इन्हें कोई व्यापक छूट नहीं दी गई है।-ब्रह्म चेलानी

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