खून और खजाने के निवेश के बाद अमरीका अफगानिस्तान से हुआ था बाहर

Edited By ,Updated: 27 Sep, 2021 04:28 AM

america was out of afghanistan after the investment of blood and treasure

11 सितम्बर 2021 को 9/11 की 20वीं बरसी थी। 15 अगस्त को काबुल से अमरीका के शर्मनाक तरीके से बाहर निकलने के 26 दिन बाद यह अशुभ घड़ी आई थी। अफगानिस्तान में भारी मात्रा में खून और खजाने का निवेश करने के बाद अमरीका ने इस तरह से भागदौड़ क्यों की? इस

11 सितम्बर 2021 को 9/11 की 20वीं बरसी थी। 15 अगस्त को काबुल से अमरीका के शर्मनाक तरीके से बाहर निकलने के 26 दिन बाद यह अशुभ घड़ी आई थी। अफगानिस्तान में भारी मात्रा में खून और खजाने का निवेश करने के बाद अमरीका ने इस तरह से भागदौड़ क्यों की? इस प्रश्र का उत्तर देने से पहले आतंक के खिलाफ युद्ध की लागत को सूचीबद्ध करने के बारे में विचार किया जा सकता है। तालिबान फिर से अफगानिस्तान में वापस आ गया जिसे अमरीका और उसके सहयोगियों ने 2001 में नष्ट किया था। 

20 वर्षों की अवधि में युद्ध की कुल लागत 2.3 ट्रिलियन अमरीकी डालर रही। अफगानिस्तान में खर्च किए गए धन का एक बहुत बड़ा हिस्सा आतंकवाद विरोधी अभियानों पर था। 50 प्रतिशत से अधिक धन (131.3 अरब डालर) अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों (ए.एन.एस.एफ.) को बढ़ाने पर खर्च किया गया था। यूनाइटेड किंगडम तथा जर्मनी के अफगानिस्तान में अमरीकी सुरक्षाबलों के बाद सबसे ज्यादा तादाद में सुरक्षाबल मौजूद थे।  

यूनाइटेड किंगडम ने 30 बिलियन डालर और जर्मनी ने 19 बिलियन डालर व्यक्तिगत रूप से खर्च किए। 2009 से लेकर 2019 के बीच करीब 19 बिलियन अमरीकी डालर का दुरुपयोग अफगानिस्तान में किया गया। मानो इतने पैसे का गबन किया गया था। यह गबन अमरीकी ठेकेदारों तथा अफगान अभिजात्य वर्ग द्वारा किया गया। अफगानिस्तान में युद्ध की मानवीय कीमत भी विनाशकारी थी। गठबंधन सुरक्षाबलों ने 3500 पुरुष तथा महिला सैनिकों को खो दिया। केवल अमरीका ने ही अपने 2300 लोग खो दिए। यूनाइटेड किंगडम ने 450 सशस्त्र बलों को खो दिया। अफगानिस्तान में कार्रवाई में कुल 20,660 अमरीकी सैनिक घायल हुए थे। पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी ने 2019 में दावा किया था कि 2014 से अब तक अफगान  सुरक्षाबलों के 45,000 से अधिक सदस्य मारे गए। 

मिस्र में होसनी मुबारक, ईराक में सद्दाम हुसैन, लीबिया में गद्दाफी, हाफिज अल असद और उनके बेटे बशर अल असद ने अपने आपको शांति के दायरे में रखा। वास्तव में वे रूढि़वादी खाड़ी राजतंत्रों की तुलना में कहीं अधिक प्रगतिशील थे जो खाड़ी और मध्य पूर्व में अमरीका के पारम्परिक देश हैं। अमरीका और इसराईल के निश्चित रूप से सभी इस्लामी देशों के साथ परस्पर विरोधी संबंध थे। खाड़ी के राजशाही और इस क्षेत्र के अन्य अमरीकी सहयोगियों ने अमरीका को मध्य पूर्व में मूल रूप से पुनव्र्यवस्था करने के लिए प्रेरित किया। 

1998 में अमरीकी कांग्रेस के दोनों सदनों में पूर्व राष्ट्रपति किं्लटन और रिपब्लिकन नेतृत्व ने सद्दाम हुसैन के शासन को सत्ता से हटाने की वकालत की। इस निर्णय पर हस्ताक्षर करने वाले 18 लोगों में से 10 ने बाद में राष्ट्रपति बुश के प्रशासन में सेवा की। इनमें तत्कालीन रक्षा सचिव डोनाल्ड रम्सफेल्ड, उनके डिप्टी पॉल वोल्फोविट्ज और देश के उप सचिव रिचर्ड आर्मिटेज शामिल थे। 2000 के अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों के अंत में प्रकाशित एक रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई कि अमरीकी विदेश नीति में बदलाव धीरे-धीरे आएगा जब तक कि कोई विनाशकारी और उत्प्रेरक घटना नहीं होती। 

अफगानिस्तान हमेशा से ही एक अलग प्रकार का शो था। यह हमेशा मध्यपूर्व में तुर्क साम्राज्य के बाद भूगोल के पुनर्गठन के बारे में था। लेबनान, सीरिया, बहरीन, ईराक, ईरान, अजरबेजान, यमन और पश्चिमी अफगानिस्तान में शिया क्रिसैंट का उदय हुआ। ये तालिबान से भी ज्यादा खतरनाक दुश्मन थे। एक दिवालिया अमरीका के पास लम्बे युद्ध को लडऩे के लिए कुछ नहीं था। वह अपने फिर से पुराने विकल्प पर वापस लौट आया। शिया के खिलाफ सुन्नी खेलें और हम किनारे से देखते रहें। इसलिए दोहा समझौते और तालिबान के आगे आत्मसमर्पण के लिए अमरीका ने घुटने टेक दिए। जब आप हवा को बोते हैं तो आप बवंडर को काटते हैं।-मनीष तिवारी 
 

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