अमरीका के ‘युद्धोन्माद की कीमत’ दुनिया को चुकानी पड़ेगी

Edited By ,Updated: 27 Jun, 2019 04:35 AM

america will pay  world price for war

अमरीका के युद्धोन्माद की कीमत दुनिया चुकाएगी, खासकर भारत जैसे देश, जो ईंधन के लिए ईरान और अन्य अरब देशों पर निर्भर हैं। ईंधन पदार्थों की कीमत बढ़ेगी, उनका उत्पादन कम होगा, समुद्री मार्ग से आने वाले ईंधन पदार्थों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ेगी। पर...

अमरीका के युद्धोन्माद की कीमत दुनिया चुकाएगी, खासकर भारत जैसे देश, जो ईंधन के लिए ईरान और अन्य अरब देशों पर निर्भर हैं। ईंधन पदार्थों की कीमत बढ़ेगी, उनका उत्पादन कम होगा, समुद्री मार्ग से आने वाले ईंधन पदार्थों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ेगी। पर इसकी चिंता विश्व समुदाय की भी नहीं है। अमरीका जहां अपनी दादागिरी दिखाने के लिए युद्धोन्माद पर है, वहीं ईरान भी अपने परमाणु कार्यक्रम पर पूरी तरह ईमानदार नहीं है।

खासकर ईरान की इसराईल नीति, मुस्लिम दृष्टिकोण भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। इसके कारण विश्व जनमत में ईरान को उस तरह का समर्थन हासिल नहीं हो रहा है जिस तरह का चाहिए। विश्व जनमत का समर्थन ही अमरीका जैसे युद्धोन्माद पर उतारू देश को शांति के मार्ग पर लाने के लिए बाध्य कर सकता है। 

ईरान अमरीकी प्रतिबंधों से फिलहाल कई प्रकार की समस्याओं से घिरा हुआ है? जब भारत और दुनिया के अन्य देश ईरान से तेल खरीदना बंद कर देंगे तो उसकी आंतरिक अर्थव्यवस्था कैसे और किस प्रकार से गतिमान होगी? अगर ईरान की अर्थव्यवस्था पर मंदी छाई रही और तेल के खरीददार भाग खड़े हुए तो फिर ईरान की जनता अपनी जरूरत की चीजों के लिए किस प्रकार से संघर्ष करेगी? क्या ईरान ने अमरीकी प्रतिबंधों से लडऩे की कोई चाकचौबंद योजनाएं बनाई हैं? 
युद्ध के कगार पर पहुंच गए थे। अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान पर हमला करने का आदेश भी जारी कर दिया था, उसकी सेना ईरान पर हमला भी करने वाली थी। 

दुनिया इस खबर से दहल गई थी पर एकाएक डोनाल्ड ट्रम्प को सद्बुद्धि आई और उसने हमले की योजना बदल डाली। ईरान ने अमरीका का जासूसी विमान मार गिराया था जो उसकी सीमा में प्रवेश कर गुप्तचर जानकारियां हासिल कर रहा था। ईरान के खिलाफ अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प उसी तरह की धमकी पिला रहे हैं जिस तरह की धमकी जार्ज बुश ईराक को दिया करते थे। अमरीका की ईरान विरोधी जो युद्धक मानसिकता सामने आई है उससे पूरी दुनिया सकते में है, इसे  सनक भरा ही नहीं बल्कि दुनिया की मानवता के लिए खतरनाक समझती है। 

सबसे बड़ी बात यह है कि वीटोधारी देश दुनिया के गरीब देशों के हितों पर कैंची चलाते हैं, उनके प्राकृतिक संसाधनों पर बलपूर्वक कब्जा करते हैं।  कभी चीन ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर की धज्जियां उड़ाते हुए भारत पर हमला किया था, अमरीका के हाथ सीरिया, वियतनाम और ईराक सहित अन्य देशों के खून से रंगे हुए हैं, कभी सोवियत संघ ने भी अफगानिस्तान पर कब्जा कर संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर का विध्वंस किया था। जानना यह भी जरूरी है कि अमरीका, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस के पास वीटो का अधिकार है और ये पांचों देश सुरक्षा परिषद के सदस्य हैं। अनिवार्य तौर पर वीटो देशों की इच्छाएं संयुक्त राष्ट्र में सिर चढ़ कर बोलती हैं और गरीब व अविकसित देशों की इच्छाएं और हित संयुक्त राष्ट्रसंघ में बेमौत मरते रहे हैं। 

अमरीका और ईरान के बीच असली विवाद क्या है और अमरीका ईरान से क्या चाहता है, क्यों आग बबूला है? क्या कोई पुरानी मानसिकताएं भी उकसा रही हैं? जब से ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई है तब से अमरीका और ईरान के बीच ं संबंध कटुतापूर्ण रहे हैं, ईरान की इस्लामिक क्रांति को अमरीका कभी भी पचा नहीं सका। 

इस्लामिक क्रांति के पूर्व ईरान की राजतांत्रिक व्यवस्था से अमरीका के संबंध बहुत अच्छे थे और ईरान भी प्रगति के रास्ते पर था, उसका सामाजिक खुलापन दुनिया में चॢचत था। इस्लामिक क्रांति से इस्लामिक रूढिय़ों का विस्तार हुआ और इस्लामिक रूढिय़ों ने अन्य धर्मों और पंथों पर खूनी और दंगाई समस्याएं थोपीं। अमरीका अपने आप को दुनिया के धार्मिक अधिकारों, मानवता का रखवाला समझता है। ऐसे में इस्लामिक ईरान और अमरीका के बीच मधुर संबंध कैसे विकसित हो सकते थे? ‘सैटेनिक वर्सेस’ के लेखक सलमान रुशदी की हत्या के लिए जारी ईरान का फतवा भी अमरीका के ईरान विरोधी होने का कारण रहा है। 

विवाद का कारण 
तात्कालिक कारण ईरान का अंतर्राष्ट्रीय परमाणु समझौते से हटना है। ईरान ने 2015 के अंतर्राष्ट्रीय परमाणु समझौते की प्रतिबद्धताओं से हटने की घोषणा की थी। इस अंतर्राष्ट्रीय समझौते में अमरीका के साथ ब्रिटेन और फ्रांस भी थे। ईरान के साथ यह परमाणु समझौता बराक ओबामा की देन थी। इस समझौते के तहत ईरान के लिए अपने परमाणु कार्यक्रम में पारदॢशता लाने की प्रतिबद्धता थी, उसके परमाणु प्लांटों और सभी प्रकार की परमाणु योजनाओं का निरीक्षण करने का अधिकार अमरीका और समझौते में शामिल देशों के पास था। 

अमरीकी कूटनीति यह आरोप लगाती रही थी कि ईरान ने अपनी प्रतिबद्धता का पालन नहीं किया और परमाणु हथियार विकसित कर रहा है। ब्रिटेन और फ्रांस ईरान के साथ परमाणु समझौते से हटने के खिलाफ थे पर डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने मित्र देशों ब्रिटेन और फ्रांस की भी परवाह नहीं की। ट्रम्प का कहना था कि उसे सिर्फ अपने देश के हित चाहिएं। इधर सऊदी अरब का कहना है कि वह ईरान के खिलाफ कोई भी युद्ध लडऩे के लिए तैयार है। अरब क्षेत्र में चल रहे आतंकवाद की कई लड़ाइयों को लेकर सऊदी अरब और ईरान के बीच तलवारें खिंची हुई हैं। सऊदी अरब अमरीका का विश्वसनीय सांझीदार है। सीरिया के प्रश्न पर सऊदी अरब और ईरान एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें भांजते रहते हैं। 

भारत की स्थिति
भारत के सामने कुएं और खाई की स्थिति है। सऊदी अरब ही नहीं बल्कि ईरान भी इसके अच्छे दोस्तों में है और आॢथक संबंध भी दोनों देशों के बीच हैं। भारत अमरीका को बहुत हद तक नाराज नहीं कर सकता है। विश्व नियामक संस्थानों में अमरीका का साथ भारत को चाहिए। फिर भी ट्रम्प को मोदी युद्धोन्माद से बचने की सलाह तो दे ही सकते हैं। ईरान को भी फिर से परमाणु कार्यक्रमों पर विचार करना चाहिए। ईरान को परमाणु मिसाइलों और अन्य परमाणु हथियारों का उन्नयन बंद कर देना चाहिए। दुनिया को देखने के मुस्लिम दृष्टिकोण से भी ईरान को मुक्त हो जाना चाहिए, उससे ईरान की रक्षा नहीं हो सकती है।-विष्णु गुप्त

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