‘किसान हितैषी’ नहीं, ‘किसान विरोधी’ है मोदी सरकार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Jul, 2018 11:51 PM

anti farmer is modi government

इधर लोकसभा में मोदी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर बहस होगी, उधर अखिल भारतीय किसान संघ समिति के बैनर तले 201 किसान संगठनों के प्रतिनिधि संसद के बाहर प्रदर्शन कर इस सरकार में अविश्वास जताएंगे। दसों दिशाओं से किसानों का संदेश संसद के दरवाजे पर...

इधर लोकसभा में मोदी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर बहस होगी, उधर अखिल भारतीय किसान संघ समिति के बैनर तले 201 किसान संगठनों के प्रतिनिधि संसद के बाहर प्रदर्शन कर इस सरकार में अविश्वास जताएंगे। दसों दिशाओं से किसानों का संदेश संसद के दरवाजे पर दस्तक देगा। लोकसभा के भीतर यह आवाज पहुंचे न पहुंचे लेकिन हम सब दस दिशाओं से आने वाली इन आवाजों को सुन सकते हैं, उन दस कड़वे सच की शिनाख्त कर सकते हैं जिनके चलते देश का किसान मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास मत पास कर चुका है।

पहला सच : मोदी सरकार अपने चुनावी घोषणा पत्र में किसानों से किए सभी बड़े वायदों से मुकर गई है। वादा यह था कि ‘‘कृषि वृद्धि और किसान की आय में बढ़ौतरी को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी।’’ सरकारी डायलॉग में तो बहुत वृद्धि हुई है लेकिन सरकार के अपने ही आंकड़े देखें तो पिछले 4 साल में कृषि क्षेत्र में वृद्धि की दर घट गई है। अगर इसके लिए 2 साल पड़े सूखे को भी जिम्मेदार न मानें तो भी किसानों की वास्तविक आय पिछले 4 साल में 2 प्रतिशत भी नहीं बढ़ी है और दावा 6 साल में 100 प्रतिशत बढ़ाने का है।

वादा था कि कृषि में सरकारी खर्च बढ़ेगा, वास्तव में जी.डी.पी. के प्रतिशत के रूप में यह खर्च घटा है। वादा एक संपूर्ण बीमा योजना का था, बदले में मिली प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, जिसमें सरकार का पैसा तो डूबा लेकिन यह किसानों की जगह कंपनियों के पास गया। बुजुर्ग किसानों, छोटे किसानों और खेत मजदूरों के कल्याण की योजना का वादा ही भूल गया। राष्ट्रीय भूमि उपयोग नीति की बात भी नहीं सुनी जाती। मंडी एक्ट में संशोधन का वादा भी अब याद नहीं।

दूसरा सच : मोदी सरकार किसानों को लागत का डेढ़ गुना दाम देने के अपने सबसे बड़े चुनावी वादे से मुकर गई। पहले तो फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर सरकार ने कहा कि इस वायदे को पूरा करना असंभव है, फिर जब किसान संगठनों का दबाव बना तो 2018 के बजट में अरुण जेतली  ने लागत की परिभाषा ही बदल दी। संपूर्ण लागत (ष्ट२) की जगह आंशिक लागत (्र२+स्नरु) को आधार बनाकर किसानों के साथ धोखाधड़ी की।

तीसरा सच : लागत का डेढ़ गुना एम.एस.पी. का वादा तो दूर की बात है, मोदी सरकार ने पुरानी सरकारों की सामान्य एम.एस.पी. वृद्धि की दर को भी बनाए नहीं रखा। आते ही सरकार ने एम.एस.पी. पर राज्य सरकारों का बोनस रोक दिया। 5 साल में कुल मिलाकर मोदी सरकार की एम.एस.पी.  में बढ़ौतरी मनमोहन सिंह की दोनों सरकारों से भी कम है। इस साल हुई ऐतिहासिक बढ़ौतरी का प्रचार भी झूठ है क्योंकि इससे ज्यादा बढ़ौतरी तो यू.पी.ए. की सरकार 2008-9 में चुनावी रेवड़ी बांटते वक्त कर चुकी थी। सरकार द्वारा घोषित आधी-अधूरी एम.एस.पी. भी किसान तक नहीं पहुंची और पिछले साल  इसके चलते किसानों को कम से कम 50000 करोड़ रुपए का चूना लगा।

चौथा सच : यह सरकार पहले 2 साल में पड़े देशव्यापी सूखे के दौरान लापरवाही और अकर्मण्यता की दोषी है। कागज पर किसान को मुआवजे की दर बढ़ाने और खराबी की सीमा बदलने के सिवा 2  साल तक सरकार ने सूखा नियंत्रण के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए। ऊपर से बहाने भी बनाए कि सूखा राहत तो उसकी जिम्मेदारी नहीं और उसके पास पैसा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को बार-बार केंद्र सरकार की लापरवाही पर टिप्पणी करनी पड़ी।

पांचवां सच : मोदी सरकार ने रोजगार गारंटी योजना का गला घोंटने का हरसंभव प्रयास किया। जब इस योजना को बंद करने की साजिश कामयाब नहीं हुई तब इसके फंड रोकने और समय पर वेतन का भुगतान और मुआवजा न देने के जरिए इस योजना का बंटाधार किया गया, जिससे छोटे किसान और खेतिहर मजदूर की स्थिति पहले से भी कमजोर हुई है।

छठा सच : सरकार की आयात-निर्यात नीतियों के जरिए भी किसानों को धक्का पहुंचाया गया। चाहे 2014 में आलू निर्यात पर न्यूनतम निर्यात मूल्य की सीमा या फिर इस साल गन्ने की बंपर पैदावार के बावजूद पाकिस्तान से चीनी का आयात हो, इस सरकार ने आयात- निर्यात नीति से किसान को नुक्सान ही पहुंचाया है। नतीजा साफ है, 2013-14 में कृषि उपज का निर्यात 4300 करोड़ डॉलर से घटकर 2016-17 में 3300 करोड़ डॉलर पर आ पहुंचा। उधर अरहर,चना, गेहूं, चीनी और दूध पाऊडर जैसी वस्तुओं के आयात से किसान की फसलों का दाम गिर गया।

सातवां सच : नोटबंदी की तुगलकी  योजना ने तो किसान की कमर ही तोड़ दी। मुश्किल से 2 साल के सूखे से उबर रहा किसान जब पहली अच्छी फसल को बेचने बाजार पहुंचा तो कैश खत्म हो गया था, मांग गिर चुकी थी, भाव टूट गए थे। फल-सब्जी का किसान तो आज भी उस कृत्रिम मंदी के असर से उबर नहीं पाया है।

आठवां सच : गौ हत्या रोकने के नाम पर पशुधन के व्यापार पर लगी पाबंदियों और जहां-तहां गौ तस्करों को पकडऩे के नाम पर चल रही ङ्क्षहसा ने पशुधन की अर्थव्यवस्था की कड़ी को तोड़ दिया है। एक ओर तो किसान की आमदनी को धक्का लगा है, दूसरी तरफ खेतों में आवारा पशुओं की समस्या भयंकर रूप ले रही है।
 

नौवां सच : इस सरकार की पर्यावरण नीति ने आदिवासी किसान की बर्बादी का रास्ता साफ  कर दिया है। वन अधिकार कानून में आदिवासी किसान के अधिकारों को बहुत घटा दिया गया है। जंगल और पर्यावरण के बाकी कानूनों में भी 
ऐसे बदलाव किए गए हैं जिनसे आदिवासी समाज की जल-जंगल और जमीन पर उद्योगों और कंपनियों का कब्जा आसान हो जाए।

दसवां सच : किसान को कुछ देना तो दूर, मोदी सरकार ने किसान की अंतिम और सबसे बहुमूल्य संपत्ति छीनने की पूरी कोशिश की है। सन् 2013 में सभी पाॢटयों की सहमति से बने नए भूमि अधिग्रहण कानून को अपने अध्यादेश के जरिए खत्म करने की मोदी सरकार ने चार बार कोशिशें कीं। कोशिश नाकाम होने के बावजूद मोदी सरकार की एजैंसियों ने भूमि अधिग्रहण में 2013 के कानून का फायदा किसान को न देने की पूरी व्यवस्था कर ली। अपनी राज्य सरकारों के जरिए इस कानून में ऐसे छेद करवाए गए जिनसे किसान को भूमि अधिग्रहण में अपना जायज हिस्सा न मिल सके।

चौधरी चरण सिंह कहा करते थे कि इस देश की कोई भी सरकार किसान हितैषी नहीं रही है। बात सच थी। इसलिए सवाल यह नहीं पूछना चाहिए कि  सरकार किसान हितैषी है या नहीं, सरकारों के मूल्यांकन का असली पैमाना यह है कि कौन सरकार कितनी किसान विरोधी है। नि:संदेह इस पैमाने पर मोदी सरकार देश के इतिहास की सबसे किसान विरोधी सरकार है।   योगेन्द्र यादव और अवीक साहा

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