क्या न्यायाधीशों को ‘सच बोलना’ मना है?

Edited By ,Updated: 02 Sep, 2019 02:40 AM

are judges forbidden to speak the truth

पटना हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश कुमार के खिलाफ उनके बाकी साथी न्यायाधीशों व मुख्य न्यायाधीश ने बैठक करके एक आदेश पारित किया,जिसके तहत न्यायमूर्ति राकेश कुमार से सभी मुकद्दमों की सुनवाई छीन ली गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि न्यायमूॢत राकेश...

पटना हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश कुमार के खिलाफ उनके बाकी साथी न्यायाधीशों व मुख्य न्यायाधीश ने बैठक करके एक आदेश पारित किया,जिसके तहत न्यायमूर्ति राकेश कुमार से सभी मुकद्दमों की सुनवाई छीन ली गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि न्यायमूर्ति राकेश कुमार ने एक मुकद्दमे में फैसला देते हुए न्यायाधीशों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर तल्ख टिप्पणी की थी। 

न्यायमूर्ति राकेश कुमार ने एक लम्बे आदेश में बताया कि जब से उन्होंने न्यायाधीश का काम संभाला, तब से उन्होंने देखा कि किस तरह उनके साथी न्यायाधीश भ्रष्टाचार व अनैतिक आचरण में लिप्त हैं। उन्होंने यह भी देखा कि उनके साथी न्यायाधीश छोटे-छोटे लाभ के लिए किस तरह मुख्य न्यायाधीश की चाटुकारिता करते हैं। 

नागवार गुजरी टिप्पणी
न्यायमूर्ति राकेश कुमार का इतना आक्रामक आदेश और न्यायाधीशों के आचरण पर इतनी बेबाक टिप्पणी न्यायपालिका के माननीय सदस्यों को स्वीकार नहीं हुई और उन्होंने न्यायमूर्ति राकेश कुमार को सच बोलने की सजा दे डाली। यह कैसा विरोधाभास है जबकि अदालतों में बयान देने से पहले धर्म ग्रंथ पर हाथ रखवा कर यह शपथ दिलाई जाती है कि ‘‘मैं जो भी कहूंगा सच कहूंगा और सच के सिवाय कुछ नहीं कहूंगा।’’ मतलब यह है कि याचिकाकत्र्ता या प्रतिवादी या गवाह से तो सच बोलने की अपेक्षा की जाती है, पर उनके वक्तव्यों पर अपना फैसला देने वाले न्यायाधीश को सच बोलने की आजादी नहीं है। क्या यह सच नहीं है कि निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालयों तक में अनेक न्यायाधीशों के आचरण समय-समय पर अनैतिक पाए गए हैं और उन पर सप्रमाण भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हैं। 

निचली अदालतों में भ्र्रष्टाचार पर टिप्पणी
भारत के मुख्य न्यायाधीश जे.एस. वर्मा ने एक बार सर्वोच्च न्यायालय की खुली अदालत में यह कहा था कि निचली अदालतों में भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है। इतना ही नहीं उनके बाद बने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस.पी. भरूचा ने दिसम्बर 2001 में केरल के कोवलम् में एक सैमीनार को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘‘उच्च न्यायालयों में 20 फीसदी न्यायाधीश भ्रष्ट हैं। भ्रष्ट न्यायाधीशों के खिलाफ जांच होनी चाहिए और उन्हें नौकरी से निकाल देना चाहिए।’’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि मौजूदा कानून न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार से निपटने में नाकाफी है। 

ऐसा इसलिए है क्योंकि उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए जो संवैधानिक प्रक्रिया आज है, वह अत्यन्त जटिल है। इस प्रक्रिया के तहत लोकसभा के 100 सांसद या राज्यसभा के 50 सांसद जब हस्ताक्षरयुक्त नोटिस लोकसभा या राज्यसभा के सभापतियों को देते हैं और महा अभियोग प्रस्ताव पर बहस होती है और अगर महा अभियोग में आरोप सिद्ध हो जाते हैं और दो तिहाई सदन की सहमति होती है, तब इसकी सूचना राष्ट्रपति को दी जाती है, जो न्यायाधीश को बर्खास्त करते हैं। संविधान कीधारा 124 व 218 में इस पूरी प्रक्रिया का विस्तृत वर्णन है। 

उच्च न्यायपालिका के सदस्यों में 20 फीसदी भ्रष्ट हैं, यह स्वीकारोक्ति भारत के पदासीन मुख्य न्यायाधीश की है। 2001 से अब यह प्रतिशत 20 से बढ़कर कितना अधिक हो गया है, इसका कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है। अगर मान लें कि 20 फीसदी ही न्यायाधीश भ्रष्ट हैं, तो इसका अर्थ यह हुआ कि जिनके मुकद्दमे इन न्यायाधीशों के सामने सुनवाई के लिए जाते होंगे, उनमें उन्हें न्याय नहीं मिलता होगा। क्योंकि भ्रष्ट न्यायाधीश पैसे लेकर फैसला सुनाने में संकोच नहीं करते होंगे।

इस स्वीकारोक्ति को आज 18 साल हो गए। इन दो दशकों में संसद ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया, जिससे देश की जनता को भ्रष्ट न्यायाधीशों से छुटकारा मिल पाता। यह स्वीकारोक्ति भी न्यायमूर्ति भरूचा ने तब की थी, जब मैंने 1998-2000 के बीच सर्वोच्च न्यायालय के दो मुख्य न्यायाधीशों और एक न्यायाधीश के भ्रष्टाचार को सप्रमाण अपने साप्ताहिक अखबार में छापकर देश के सामने उजागर करने की हिम्मत दिखाई थी। इस ‘दुस्साहस’ का परिणाम यह हुआ कि सर्वोच्च न्यायालय के जमीन घोटालों में आरोपित मुख्य न्यायाधीश ने मुझ पर जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में अदालत की अवमानना का मुकद्दमा दायर करवाया। जिसका मैंने डटकर मुकाबला किया और इस विषय को अंतर्राष्ट्रीय टैलीविजन और अखबारों में खूब प्रसारित किया। तब देश में ऐसा माहौल बन गया था कि न्यायमूर्ति भरूचा को यह कड़वा सच सार्वजनिक रूप से स्वीकारना पड़ा। 

इस संदर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि अदालत की अवमानना कानून का नाजायज उपयोग करके भ्रष्टाचार में लिप्त न्यायाधीश आवाज उठाने वाले को प्रताडि़त करते हैं। जो प्रयास मेरे विरुद्ध भी किया गया और तब मैंने पुस्तक लिखी ‘अदालत की अवमानना कानून का दुरुपयोग।’ इस पर टिप्पणी करते हुए ‘‘प्रैस कौंसिल ऑफ इंडिया’’ के अध्यक्ष न्यायमूर्ति पी.बी. सावंत का कहना था कि ‘‘इस संघर्ष ने अदालत की अवमानना कानून के दुरुपयोग को एक मुद्दा बना दिया।’’ दुख की बात यह है कि इतना संघर्ष करने के बाद भी आज तक स्थिति ज्यों की त्यों है। तभी तो न्यायपालिका के खिलाफ  सच बोलने वाले एक हम जैसे पत्रकार या साधारण नागरिक को नहीं, बल्कि स्वयं पटना हाईकोर्ट के न्यायाधीश को न्यायपालिका का आज कोपभाजन बनना पड़ा है। ऐसे में देश के जागरूक नागरिकों को सभी सांसदों से अपील करनी चाहिए कि संविधान में इस तरह का संशोधन हो, जिससे न्यायपालिका के सदस्यों पर भ्रष्टाचार या अनैतिक आचरण के प्रामाणिक आरोप लगाने वाला कोई भी साहसिक व्यक्ति अदालत की प्रताडऩा का शिकार न हो।-विनीत नारायण 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!