Edited By Pardeep,Updated: 06 Jun, 2018 04:22 AM
क्या किसान राजनीतिक साजिश के शिकार बन रहे हैं? क्या किसान राजनीतिक हथकंडे बन रहे हैं? अगर यह सही है तो फिर किसानों का भला होने वाला नहीं है। किसान अपनी विश्वसनीयता खोएंगे और जब विश्वसनीयता खोएंगे तब जाहिर-सी बात है कि उन्हें जनसमर्थन से भी हाथ धोना...
क्या किसान राजनीतिक साजिश के शिकार बन रहे हैं? क्या किसान राजनीतिक हथकंडे बन रहे हैं? अगर यह सही है तो फिर किसानों का भला होने वाला नहीं है। किसान अपनी विश्वसनीयता खोएंगे और जब विश्वसनीयता खोएंगे तब जाहिर-सी बात है कि उन्हें जनसमर्थन से भी हाथ धोना पड़ सकता है।
किसानों की असली समस्या बढ़ सकती है। किसान जिस राजनीतिक साजिश, राजनीतिक हथकंडे के शिकार हो रहे हैं, उसकी जड़ केन्द्र सरकार के विरोधियों के पास है। यह सच्चाई है कि किसान आज की व्यवस्था में सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। इनकी स्थिति तो मजदूरों से भी बदतर हो गई है। पूरे देश के किसान कर्ज में डूबे हुए हैं और कर्ज अदायगी न होने से अवसाद ग्रसित होकर आत्महत्याएं कर रहे हैं। किसानों की ऐसी स्थिति कोई एक-दो दिन में नहीं हुई है, इसके लिए प्राय: सभी भूत-वर्तमान की सरकारें जिम्मेदार रही हैं।
अभी-अभी किसानों का जो आंदोलन खड़ा हुआ, वह किसी तरह से गरीब, फटेहाल और जर्जर किसानों का आंदोलन नहीं लगता। यह आंदोलन अमीर किसानों का, राजनीतिक दल द्वारा तैयार और संचालित लगता है। किसानों का यह आंदोलन सिर्फ और सिर्फ केन्द्रीय सरकार की छवि को खराब करना, उसको खलनायक घोषित कराने जैसा है। इसलिए ऐसा माना जा रहा है और इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा रहा है कि किसान हिंसा पर उतारू हो गए हैं, जोर-जबरदस्ती पर उतर रहे हैं। जो गरीब किसान अपने उत्पादन को लेकर बेचने के लिए शहर या बाजार में जा रहे हैं उन्हें मारा-पीटा जा रहा है, रोका जा रहा है, उनके उत्पादन को लूट कर सड़कों पर फैंका जा रहा है।
अगर कोई गरीब किसान अपने उत्पादन को शहर या बाजार में जाकर बेचना चाहता है तो तथाकथित किसानों के संघों को उसे रोकने का अधिकार है क्या? खुद बड़े किसान जो कर रहे हैं उससे किसी भी प्रकार की सहानुभूति उत्पन्न होने वाली नहीं है। बड़े किसान दूध, सब्जियों को सरेआम सड़कों पर फैंक रहे हैं। यह सब अन्न का और गरीब का अपमान है। अगर किसान अपनी सब्जियों और दूध को गरीब लोगों में बांटते तो निश्चित तौर पर किसान संगठन ज्यादा हमदर्दी हासिल करते। जब किसान राजनीतिक हथकंडे के सहचर बन जाएंगे तब राजनीति भी उन्हें या तो बेनकाब करेगी या फिर उनकी समस्याएं और भी बढ़ाएगी।
बड़े किसानों के खिलाफ देश का आर्थिक जगत पहले से ही गर्म रहा है, असहिष्णु रहा है। आॢथक जगत की हमेशा मांग रही है कि बड़े किसानों पर इन्कम टैक्स लगाया जाए और उनको मिल रही सुविधाओं में कटौती की जाए। यह सही है कि देश में किसानों की आत्महत्याओं का ग्राफ देखेंगे और उनका विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि अधिकतर वही किसानों ने आत्महत्याएं की हैं जो बड़े किसान की श्रेणी में आते थे और जिनके ऊपर बैंकों का कर्ज था, जबकि छोटे किसानों को तो बैंक कर्ज ही नहीं देते हैं, वे तो खुद मजदूरी कर खेती करते हैं। इसलिए किसानों के बीच यह विभाजन कोई नहीं चाहता है।
मध्य प्रदेश और राजस्थान ही किसान आंदोलन की अधिक चपेट में क्यों हैं? इन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। खास कर कांग्रेस को यह उम्मीद है कि अगर किसानों को विरोधी बना दिया जाए तो फिर मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बन सकती है। अप्रत्यक्ष तौर पर इसमें कांग्रेस की गंभीर सक्रियता है। सिर्फ इतनी-सी ही बात नहीं बल्कि कई जगहों पर तो किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कांग्रेसी करते देखे गए हैं। क्या कांग्रेस सही में किसान हितैषी है। मोदी की सरकार तो मात्र चार साल से है। देश में अधिकतर समय तो कांग्रेस की ही सरकार रही है। कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में कौन-सा किसानों का विकास किया था। मोदी से पहले कांग्रेस की 10 साल सरकार चली थी। तब भी किसानों की समस्याएं आज जैसी ही थीं। तब भी किसान आत्महत्याएं कर रहे थे। अभी तक ऐसा कोई तुलनात्मक अध्ययन सामने नहीं आया है जिससे यह साबित हो सके कि कांग्रेस की 10 साल की सरकार वर्तमान मोदी सरकार से बहुत अच्छी थी और किसानों के लिए बहुत अच्छे कार्य किए थे।
सिर्फ कर्ज माफी से ही किसानों की समस्याएं नहीं सुलझेंगी। कई बार किसानों के कर्ज माफ हुए हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार ने आते ही 2 लाख तक के कर्ज माफ किए हैं, महाराष्ट्र में भी किसानों के कर्ज माफ हुए हैं। किसानों की कर्ज माफी पर मध्य प्रदेश की सरकार ने भी बहुत कार्य किए हैं। मोदी सरकार की भी कई योजनाएं हैं। धान, गेहूं, गन्ना खरीद के मूल्य बढ़ाए हैं। यह अलग बात है कि मोदी की लाभकारी योजनाएं किसानों तक नहीं पहुंची हैं। ये नौकरशाही और भ्रष्टाचार की समस्याएं हैं। फिर भी किसान हमारे अन्न दाता हैं, हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, हमारी खुशहाली के केन्द्रबिन्दू हैं। इसलिए किसानों की समस्याओं की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। किसानों को उनकी उपज का लागत मूल्य तो मिलना ही चाहिए। किसानों के लिए राजनीतिक मोहरा बनना किसी भी स्थिति में हितकर नहीं है। ऐसा होने पर उनका नुक्सान ही होगा। किसान अपनी लड़ाई स्वतंत्र होकर क्यों नहीं लड़ सकते?-विष्णु गुप्त