पंजाब को फिर ‘सुलगाने की कोशिश’

Edited By ,Updated: 23 Jan, 2015 05:10 AM

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क्या पंजाब में मानवाधिकार के नाम पर आतंकवाद को पुनर्जीवित करने का प्रयास हो रहा है? अभी हाल में ही पंजाब सरकार द्वारा 5 राज्यों के मुख्यमंत्रियों और 2 केन्द्र शासित क्षेत्रों के उपराज्यपालों को पत्र ...

(बलबीर पुंज) क्या पंजाब में मानवाधिकार के नाम पर आतंकवाद को पुनर्जीवित करने का प्रयास हो रहा है? अभी हाल में ही पंजाब सरकार द्वारा 5 राज्यों के मुख्यमंत्रियों और 2 केन्द्र शासित क्षेत्रों के उपराज्यपालों को पत्र लिखकर वहां की जेलों में बंद खालिस्तानी आतंकियों की रिहाई की मांग की गई। क्यों? अदालत के फैसलों के बाद जेल में अपने  किए की सजा भोग रहे आतंकियों के प्रति यह सहानुभूति किस कारण है?

उम्रकैद की सजा पाए कैदियों की निर्धारित समय से पूर्व रिहाई पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंध के बावजूद राज्य सरकार द्वारा ऐसे कैदियों की रिहाई की मांग न तो विधि सम्मत है और न ही सभ्य समाज, पंजाब व देश के हित में है। ऐसे समय में जब पाकिस्तान एक बार फिर पंजाब में अलगाववाद की आग सुलगाने में जुटा है, खालिस्तानी आतंकवादियों की रिहाई की मांग आत्मघाती साबित हो सकती है।

पिछले दिनों केन्द्र सरकार बब्बर खालसा इंटरनैशनल से जुड़े जगतार सिंह तारा को थाईलैंड से प्रत्यार्पित कर भारत लाने में सफल रही है। जगतार सिंह तारा सन् 1995 में बम विस्फोट कर पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह समेत 17 निरपराधियों की हत्या का मुख्य आरोपी है। 2004 में वह चंडीगढ़ की जेल से फरार हो गया था। राज्य सरकार ने बेअंतसिंह की हत्या में शामिल 2 अन्य आतंकियों की रिहाई की भी मांग की है। आतंकियों की रिहाई को लेकर उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल एक प्रतिनिधिमंडल के साथ केन्द्रीय गृहमंत्री से मिल चुके हैं।

इस मुलाकात के बाद उप मुख्यमंत्री केन्द्र सरकार पर सिखों के साथ जानबूझ कर भेदभाव करने का आरोप लगा रहे हैं। एक आतंकी, जिसने इस देश की संप्रभुता को ललकारने और सभ्य समाज को रक्तरंजित और पंजाब में भाईचारे को ध्वस्त करने का अपराध किया हो, उसकी रिहाई के लिए यह बेचैनी क्यों? एक पुरानी कहावत है; जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते, वे इतिहास को दो हराते हैं।

80 के दशक में कांग्रेस ने पंजाब में अलगाववाद को हवा दी थी, अकाली दल-भाजपा एकता को हाशिए पर डालने के लिए भिंडरांवाले को सिर माथेपर बिठाया। उसका क्या हश्र हुआ? लम्बे समय तकदेश को इस साम्प्रदायिक खेल का खमियाजा भुगतनापड़ा था। क्या अकाली दल आज कांग्रेस की उसी देशघाती और पंजाब विरोधी नीति का अनुसरण नहीं कर रहा है?

बर्बर आपातकाल के दौरान अकाली दल द्वारा दिखाए गए कड़े प्रतिरोधी तेवर के कारण इंदिरा गांधी ने सिख एकता को तोडऩे के लिए खालिस्तानी आतंकवाद का पोषण किया था। 1980 में सत्ता पर दोबारा काबिज होने के बाद उन्होंने खालिस्तान आंदोलन से जुड़े भिंडरांवाले को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया। तत्कालीन कांग्रेस के महासचिव राजीव गांधी ने भिंडरांवाले को संत की उपाधि से नवाजा। यह सब सिखों के सर्वमान्य नेता संत लौंगोवाल और सरदार प्रकाश सिंह बादल को हाशिए पर डालने के उद्देश्य से किया गया था।

कांग्रेसी छत्रछाया में भिंडरांवाले इतने बेखौफ हो गए थे कि अपने सशस्त्र अनुयायियों के साथ दिल्ली आ धमके। केन्द्र की कांग्रेसी सरकार ने उन्हें रोकने-टोकने की आवश्यकता नहीं समझी। उलटे इंदिरा सरकार के गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह उन्हें दंडवत् प्रणाम करने उनके दरबार पहुंच गए। भिंडरांवाले ने उस भूमिका को बाखूबी निभाया जिसके लिए उन्हें प्रोत्साहन व संरक्षण प्रदान किया गया था।

किन्तु इंदिरा गांधी को शीघ्र ही यह एहसास हो गया कि वह एक सांप को पाल रही थीं। भिंडरांवाले की देशघाती और पंजाबी विरोधी करतूतें जल्दी ही उजागर हो गईं। उन पर अंकुश लगाना इंदिरा गांधी की मजबूरी बन गई और इसी कारण उन्हें ‘आप्रेशन ब्ल्यू स्टार’ को अंजाम दिलाना पड़ा। इस सैनिक कार्रवाई से स्वर्ण मंदिर की पवित्रता  तो भंग हुई ही, 300 से अधिक निर्दोष श्रद्धालुओं को भी जान से हाथ धोना पड़ा।

क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के कारण इंदिरा गांधी ने जो रास्ता चुना था, उन्हें उसकी कीमत अपनी जान से चुकानी पड़ी। अकाली दल को कुचलने के लिए की गई इस दुरभि संधि के कारण पंजाब में उग्रवाद का लंबा दौर चला, जिसमें हजारों निरपराधियों को जान से हाथ धोना पड़ा। क्या अकाली दल उस रक्तरंजित दौर को भूल चुका है?

1980 से 1995 के 15 वर्ष के काल में पंजाब ने पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इस आतंकवाद (जो स्वतंत्र खालिस्तान के नाम पर किया गया) का दंश झेला। हजारों हिन्दू और सिख पंजाबियों ने इस दहशतगर्दी के खिलाफ आवाज उठाई और अपनी जान की कीमत देकर पंजाब और देश की अखंडता की रक्षा की। शहीदों की सूची बहुत लम्बी है। पंजाब केसरी परिवार के पुरोधा लाला जगत नारायण, उनके सुपुत्र रमेश जी और केसरी परिवार के कई पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारी भी देश की अखंडता की बलिवेदी पर शहीद हो गए। खालिस्तानी चरमपंथ की आग में हजारों हिन्दू-सिख नौजवानों के साथ हरचंद सिंह लौंगोवाल, बेअंत सिंह, जनरल वैद्य, हित अभिलाषी और खुद श्रीमती इंदिरा गांधी भी इस आग की भेंट चढ़े।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और लगभग सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्त्ता, प्रमुख रूप से अकाली दल, भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टी के कामरेड भी खेत रहे। उस रक्तरंजित दौर को आमंत्रण देना सभ्य समाज और देश की अखंडता को खतरे में डालना है। उचित तो यह था कि पंजाब सरकार और पंजाब की आम जनता उन शहीदों, जिन्होंने हिन्दू-सिख एकता की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दी और गुरु साहिबान के बताए हुए मार्ग का अपनी जान देकर अनुसरण किया, उनकी स्मृति में एक भव्य स्मारक का निर्माण करते।

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी जेलों में बंद आतंकवादियों की रिहाई की मांग की है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है क्योंकि इसकी ही सरपरस्ती में जिन लोगों ने देश की एकता और अखंडता के लिए अपनी कुर्बानी दी, उनकी शहादत को विस्मृत करते  हुए हिन्दुओं और सिखों की आराध्य स्थली, अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में ‘आप्रेशन ब्ल्यू स्टार’ में मारे गए आतंकी भिंडरांवाले और उसके सहयोगियों की स्मृति में ‘शहीदी स्मारक’ बनाने की नींव रखी गई। अलग खालिस्तान के लिए साजिश रचने वालों में से एक, बलवंत सिंह राजोआणा को ‘अकाल तख्त’ ने जिंदा शहीद का दर्जा दिया। राजोआणा बब्बर खालसा का सदस्य है, जिसे अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। ऐसी मानसिकता के रहते ही पाकिस्तान को दोबारा पंजाब में अलगाववाद सुलगाने का साहस मिल रहा है।

पिछले दिनों पाकिस्तान के लाहौर में खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के रंजीत सिंह मीता, खालिस्तान टाइगर फोर्स के जगतार सिंह, बब्बर खालसा इंटरनैशनल के वधावा सिंह और खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के हरमिंद्र सिंह मिंटू आदि के साथ कुख्यात आतंकी हाफिज सईद की बैठक का खुलासा हुआ है। आई.एस.आई. विदेशों में छिपे खालिस्तानी आतंकियों की मदद से पुन: खालिस्तान को जिंदा करने की साजिश रच रहा है। खालिस्तान की मांग को जिंदा करने में लगे आतंकियों का वित्तपोषण आई.एस.आई. सहित जर्मनी, फ्रांस, इंगलैंड, कनाडा, अमरीका आदि से भी हो रहा है।

पाकिस्तान पंजाब को आतंकवाद और नशा, दोनों से कमजोर  करने में जुटा है। यह सर्वविदित है कि अस्सी के दशक में पंजाब में खालिस्तान का संकट खड़ा करने के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. और वहां के हुक्मरानों की साजिश थी, जो निरंतर 1971 की शर्मनाक पराजय का बदला लेने के लिए ‘ऑप्रेशन टोपाक’ में जुटे हैं।

भारत को अस्थिर करने के लिए पाकिस्तान उसे हजार टुकड़ों में बांटने का असफल प्रयास करता आया है। पाक पोषित खालिस्तानी आतंकवाद को तब स्थानीय जनता के सहयोग से पुलिस और सैन्य कार्रवाई के बूते सख्ती से कुचल दिया गया था। आतंकियों से सहानुभूति रखने की बजाय पंजाब को नशा और आतंकवाद से दूर रखना सभी देशभक्त पंजाबियों की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। (लेखक पंजाब भाजपा के प्रभारी रह चुके हैं।)

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