सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत होगा ‘इंटरव्यू वेटेज’

Edited By ,Updated: 01 Feb, 2015 02:02 AM

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अभी हाल में मनोहर लाल खट्टर सरकार ने तृतीय श्रेणी की सरकारी नौकरियों में इंटरव्यू की वेटेज को घटाकर 10 प्रतिशत करने का फैसला किया है। पिछली सरकारों में नौकरियों मेें हुए घपलों को यदि ...

(संजीव शुक्ल) अभी हाल में मनोहर लाल खट्टर सरकार ने तृतीय श्रेणी की सरकारी नौकरियों में इंटरव्यू की वेटेज को घटाकर 10 प्रतिशत करने का फैसला किया है। पिछली सरकारों में नौकरियों मेें हुए घपलों को यदि देखा जाए तो पता चलता है कि साक्षात्कार को अधिक वेटेज देना ही भर्ती संबंधी घपलों का मुख्य कारण रहा है। उस हिसाब से यह फैसला फिलहाल ठीक लगता है। पूर्व सरकारों के दौरान ऐसे बहुत से मामले सामने आए जिनमें पाया गया कि लिखित परीक्षाओं में कम नम्बर पाने वाले रसूखदारों को साक्षात्कार में अधिकतम नम्बर दे दिए गए ताकि उनका चयन हो जाए।

दूसरी ओर लिखित परीक्षा में अधिक अंक प्राप्त करने वाले ऐसे लोगों को जिनकी पहुंच ऊपर तक नहीं थी या साधन नहीं थे, इंटरव्यू में कम अंक देकर नौकरी से वंचित रखा गया। पिछली कांग्रेस सरकार में तो इस बात की भी तमाम शिकायतें थीं कि कुछ खास जिलों व खास जातियों के लोगों को ही सरकारी नौकरियां दी गईं। जाहिर है कि इससे अन्य लोगों में रोष तो पैदा होना ही था जिसका नतीजा कांग्रेस के सफाए के रूप में सामने भी आ गया।

उपरोक्त हालातों का फायदा उठाते हुए ही भाजपा ने चुनावों के समय कहा था कि वह भर्ती प्रक्रिया में बदलाव करेगी। अब इंटरव्यू में अंकों के वेटेज को कम करते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि हाल में किया गया बदलाव फिलहाल तृतीय श्रेणी के लिए ही है लेकिन जल्दी ही प्रथम व द्वितीय श्रेणी के लिए भी नई व्यवस्था की जाएगी। उनका कहना है कि सरकार की कोशिश है कि नौकरियों में पारदर्शिता लाई जाए और पात्र उम्मीदवारों को मैरिट के आधार पर नौकरी मिले।

हरियाणा में नौकरियों का संबंध आर्थिक गतिविधि और रोजगार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सरकारें इसे राजनीतिक हथियार की तरह भी इस्तेमाल करती रही हैं। पिछली सरकार ने नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया और कर्मचारियों को सहूलियत देने की कार्रवाई चुनावों के नजदीक ही शुरू की थी जो वोटरों को लुभाने के लिए दाना डालने जैसा काम था। यह बात अलग है कि मतदाताओं ने दाने को देखकर वोट डालने की बजाय अपनी अंतर्आत्मा की आवाज को सुना।

यदि नौकरियों को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के बजाय जरूरत के अनुसार समय-समय पर भर्तियां की जाती रही होतीं तो आज खाली पदों का अम्बार नहीं लगा होता। आज की तारीख में बताया जा रहा है कि तकरीबन 1.40 लाख पद खाली पड़े हैं। जाहिर है कि ये एक दिन या एक महीने या साल में तो खाली हुए नहीं होंगे। इतने समय तक इन्हें न भरे जाने के पीछे मकसद वोट की राजनीति के अलावा और क्या हो सकता है?

यह बात सही है कि मनोहर लाल खट्टर मंत्रिमंडल द्वारा विभिन्न बोर्डों द्वारा की जा रही भर्तियों पर रोक लगाने और हरियाणा पुलिस भर्ती बोर्ड को समाप्त करने से तकरीबन 10 लाख उम्मीदवारों को धक्का लगा है जो भर्ती की विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजर रहे थे। इस झटके के बीच इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि यदि सरकार कह रही है कि वह बेहतर व पारदर्शी प्रक्रिया लाने जा रही है तो फिर उसका इंतजार करने में कोई बुराई नहीं है बजाय इसके कि पुरानी व्यवस्था के तहत ही भर्तियां हों, अयोग्य तथा रसूखदार लोगों को नौकरियां मिलें और फिर उसके बाद कोर्टों में सालों तक मुकद्दमे चलें।

फिलहाल तो सरकार की सोच अच्छी ही लग रही है लेकिन इसके साथ ही जरूरत इस बात की है कि जो भी नई व्यवस्था लानी है उसे जल्दी लाया जाए और जो लोग आवेदन कर चुके हैं उनकी स्थिति के साथ कोई छेड़छाड़ न की जाए। यह नौकरी का इंतजार कर रहे उम्मीदवारों व आवेदकों के लिए तो जरूरी है ही, सरकारी कर्मचारियों के लिए भी जरूरी है जिनके लिए कहा जा रहा है कि वे काम के बोझ तले दबे जा रहे हैं, यदि वास्तव में ऐसा है तो।

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