देश की ‘खाद्यान्न व्यवस्था’ का सच

Edited By ,Updated: 03 Feb, 2015 04:41 AM

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विगत 6 दशकों से देश के किसानों को उनके उत्पादों का प्रभावी मूल्य न मिलने के कारण किसानों का कर्ज में डूब जाना और आत्महत्याएं करना आम बात हो गई है। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में ...

(शांता कुमार) विगत 6 दशकों से देश के किसानों को उनके उत्पादों का प्रभावी मूल्य न मिलने के कारण किसानों का कर्ज में डूब जाना और आत्महत्याएं करना आम बात हो गई है। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में जो योजनाएं कृषि के विकास के लिए बनाई जाती थीं वे आधी-अधूरी और अल्पकालिक, अधिकतर अविवेकपूर्ण दिखाई देती थीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही सबसे पहले किसानों और सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा अनाज प्राप्त करने वाले करोड़ों उपभोक्ताओं को अनाज दिलाने के लिए खाद्यान्न प्रबंधन को युक्ति संगत बनाने तथा भारतीय खाद्य निगम की कार्यप्रणाली के पुनर्नवीकरण हेतु गठित उच्च स्तरीय समिति की अध्यक्षता का मुझे अवसर दिया। इस समिति में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डा. अशोक गुलाटी के अतिरिक्त हैदराबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के डीन प्रोफैसर जी. नानचल्लैया और भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद के डीन प्रोफैसर रघुराम प्रमुख सदस्य थे। समिति ने पिछले सप्ताह अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को प्रस्तुत की।

भारत की खाद्य व्यवस्था के संबंध में एक भ्रमपूर्ण धारणा समूचे देश में व्याप्त थी कि सरकार न्यूनतम मूल्य तय करके किसानों से अनाज खरीदती है और उसके कारण देश के किसानों को बहुत लाभ होता है। भारतीय खाद्य निगम के पुनर्नवीकरण हेतु गठित उच्च स्तरीय कमेटी ने जब इस तथ्य की गहराई में जाने की कोशिश की तो अत्यधिक निराशा हुई। कड़वा सत्य यह है कि देश के केवल 6 प्रतिशत बड़े किसानों से ही सरकार अनाज खरीदती है। 94 प्रतिशत छोटे गरीब किसानों को इस व्यवस्था का कोई लाभ नहीं होता। अनाज की खरीदारी केवल 8 प्रदेशों में होती है, बाकी प्रदेशों के किसान कम मूल्य पर अपनी उपज बेचने पर विवश होते हैं। बहुत से किसान साहूकारों के कर्ज में दबे हैं। इससे बड़ी लज्जा की बात और कोई नहीं हो सकती कि देश के लाखों किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

भारत सरकार लगभग एक लाख करोड़ रुपए खाद सबसिडी पर खर्च करती है। इसका अधिकांश हिस्सा कम्पनियों को जाता है। बहुत सी खाद पड़ोसी देशों में तस्करी द्वारा चली जाती है। यूरिया के अधिक सस्ता होने के कारण उसका खेती में आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल होता है। इसी के कारण कई जगह भूमि की उर्वरता कम हो रही है। इसी के कारण कई स्थानों पर जैविक खेती की ओर जाने की बात हो रही है। इस एक लाख करोड़ की उर्वरक सबसिडी का किसानों को बहुत कम लाभ होता है।

इन तथ्यों के दृष्टिगत कमेटी ने यह सिफारिश की है कि देश के सभी 9 करोड़ किसानों के खाते में 7000 रुपए प्रति हैक्टेयर वार्षिक के हिसाब से इनपुट सबसिडी सीधे जमा करवा दी जाए। कर्ज में दबे गरीब किसान के लिए यह एक बहुत बड़ी राहत सिद्ध होगी।

खाद्यान्न व्यवस्था का दूसरा बड़ा उद्देश्य देश के गरीबों को सस्ता अनाज पहुंचाना था। योजना आयोग की जांच के अनुसार लगभग आधे गरीबों तक यह अनाज पहुंचता ही नहीं है। सरकार इस व्यवस्था पर लगभग 2 लाख करोड़ रुपए खर्च करती है। इसके बावजूद राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार विश्व के सबसे अधिक भूखे लोग भारत में रहते हैं। विश्व भूख सूचकांक में भारत बहुत नीचे है। कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या भारत में सबसे अधिक है। कई बार कुछ अति गरीब अपने बच्चों को बेचने पर विवश हो जाते हैं। इस सारी व्यवस्था पर व्यर्थ के खर्च की सीमा यह है कि योजना आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि एक रुपए का अनाज उपभोक्ता तक पहुंचाने में सरकार 3 रुपए 65 पैसे खर्च करती है।

इस दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति के दृष्टिगत कमेटी ने यह सिफारिश की है कि सभी गरीब उपभोक्ताओं के खाते में 700 रुपए प्रति माह प्रति परिवार के हिसाब से सीधे जमा करवा दिए जाएं। समिति ने यह भी सिफारिश की है कि जिन 8 प्रदेशों में प्रदेश सरकारें भारतीय खाद्य निगम के लिए अनाज खरीद का काम कर रही हैं वहां यह काम पूरी तरह से राज्य सरकारों को दे दिया जाए और जिन अन्य प्रदेशों में अनाज खरीद का काम बिल्कुल नहीं होता वहां खाद्य निगम अनाज खरीदने का काम शुरू करे ताकि वहां भी किसानों को लाभप्रद मूल्य मिल सके।

कमेटी ने अनाज के भंडारण और परिवहन के काम को केंद्र व राज्यों की विभिन्न एजैंसियों तथा निजी क्षेत्र की कम्पनियों को प्रतिस्पर्धात्मक टैंडर पद्धति पर देने की सिफारिश की है। इस नई व्यवस्था से देश के अति गरीब उपभोक्ता और किसानों को सीधे सहायता उनके खाते में जमा हो जाएगी। पूरी व्यवस्था  में होने वाला भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। भारत सरकार को लगभग 40,000 करोड़ रुपयों की बचत होगी। लगभग 15 करोड़ गरीबों की आय में इतनी बढ़ौतरी हो जाएगी कि वे गरीबी की रेखा से ऊपर उठ जाएंगे और इसके लिए सरकार कोई अतिरिक्त धन खर्च नहीं करेगी। जो धन इधर-उधर प्रशासनिक खर्चों, फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार में नष्ट होता था उसी को समेट कर करोड़ों गरीबों को सीधे देने से उन्हें राहत मिलेगी।

व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए समिति ने यह सिफारिश भी की है कि अनाज लेते समय गुणवत्ता नियंत्रण पूरी तरह से यांत्रिक तरीके से और पारदर्शी हो। कमेटी ने यह भी सिफारिश की है कि देश के गोदामों में आवश्यक बफर स्टाक रखा जाए और उससे अधिक अनाज अधिक समय के लिए न रखा जाए। पिछले कई वर्षों में बफर स्टाक से दोगुना अनाज गोदामों में रहा और खराब हुआ। पिछले दिनों पंजाब में ही 1200 करोड़ रुपए की 6 लाख टन गेहूं रखी-रखी खराब हुई है। कमेटी ने सिफारिश की है कि बफर स्टाक से अधिक अनाज एक निश्चित अवधि में बेच दिया जाए या निर्यात कर दिया जाए परन्तु खराब न होने दिया जाए।

एक निराधार भ्रम फैलाया जा रहा है कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत पात्र व्यक्तियों की प्रतिशतता 67 से घटाकर 40 कर दी गई है। वस्तुत: खाद्य सुरक्षा को और अधिक तर्कसंगत बनाने के लिए 40 प्रतिशत व्यक्तियों की खाद्यान्न पात्रता 5 किलोग्राम प्रतिमाह से बढ़ाकर 7 किलोग्राम कर दी गई है।

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