संदिग्ध चंदे के मुद्दे पर ‘अरविंद केजरीवाल, आई.आर.एस.’ क्या करते

Edited By ,Updated: 05 Feb, 2015 04:08 AM

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आम आदमी पार्टी (आप) के कुछ असंतुष्ट सदस्यों ने पार्टी के कुछ संदिग्ध फंडों का मामला उठाया है। ‘आप’ को प्रचार हासिल करने में महारत हासिल है।

आम आदमी पार्टी (आप) के कुछ असंतुष्ट सदस्यों ने पार्टी के कुछ संदिग्ध फंडों का मामला उठाया है। ‘आप’ को प्रचार हासिल करने में महारत हासिल है। यह खुद पर ईमानदारी का मुखौटा चढ़ाए रखती है। इसने बड़ी संख्या में कार्पोरेट इकाइयों के नामों का खुलासा किया है, जिनसे इसे चैक के माध्यम से डोनेशन प्राप्त हुई है। ऐसा दिखाई देता है कि ‘आप’ के असंतुष्ट सदस्यों ने इसकी खोज रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीस में की है। इस खोज नेे दानकत्र्ता कंपनियों के विचित्र चरित्र से पर्दा उठाया है।

ये कंपनियां कोई व्यवसाय नहीं करतीं, उन्हें किसी कानूनी व्यवसाय से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। वे मात्र ‘एंट्री लैंैङ्क्षडग कंपनीज’ हैं। इन एंट्री लैंडिंग कंपनीज की कार्यप्रणाली बहुत साधारण है। ये बड़ी संख्या में आपस में जुड़ी हुई हैं जिन्हें बहुस्तरीय प्रक्रिया के माध्यम से गठित किया गया है। इनमें एक कंपनी से दूसरी कंपनी तक धन हस्तांतरित किया जाता है। ये कंपनियां अस्पष्ट पते पर पंजीकृत होती हैं। इन कंपनियों के निदेशक आमतौर पर अज्ञात लोग होते हैं जिनके नाम का इस्तेमाल लेन-देन के लिए होता है। ये निदेशक आमतौर पर कम आय वाले कर्मचारी होते हैं जो इस रैकेट के पीछे होते हैं। इन कंपनियों का इस्तेमाल या तो हवाला अदायगियों के लिए होता है या फिर अपने खुद के कोष को चुकाने के लिए। वे नकदी को चैक में बदल देती हैं।
 
ये सभी तत्व उन कंपनियों के मामले में मौजूद हैं, जिन्होंने ‘आप’ को दान दिया है। निश्चित तौर पर जब एक कंपनी किसी राजनीतिक दल को लाखों तथा करोड़ों रुपए दान करती है तो पार्टी यह जानने का प्रयास करेगी कि इन कंपनियों के पीछे किसके हित जुड़े हैं। केवल इस एक तथ्य से कि दान चैक के माध्यम से किया गया है, लेन-देन स्वच्छ नहीं हो जाता। स्विस बैंकों से भी धन चैक के माध्यम से निकाला जा सकता है। जहां एक राजनीतिक दल काले धन को सफेद में बदलता है, स्वाभाविक है कि इसे चैक के रूप में स्वीकार किया जाएगा। इससे दानकत्र्ता अथवा दान लेने वाले के पाप धुलेंगे नहीं क्योंकि यह पूरा लेन-देन धोखाधड़ीपूर्ण तथा टैक्स बचाने की कार्रवाई है। 
 
अरविंद केजरीवाल भारत के कर कानूनों से अंजान नहीं हैं। वह भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी हैं। वह अच्छी तरह से जानते हैं कि इस तरह के लेन-देन आयकर कानून के तहत निपटाए जाते हैं न कि इंडियन पीनल कोड के। फिर उन्होंने क्यों वित्त मंत्री को उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती दी? क्या यह केवल शेखी बघारने और हवाबाजी की कार्रवाई है?  
 
एक कंपनी किसी राजनीतिक दल को अपने लगातार 3 वर्षों के शुद्ध लाभ का अधिकतम साढ़े 7 प्रतिशत दान कर सकती है। क्या प्राप्तकत्र्ता आम आदमी पार्टी ने इस तथ्य की पुष्टि की? 
 
क्या उन्होंने इन कंपनियों के पीछे नियंत्रणकारी हितों की पुष्टि की? 
क्या यह अब हमें बता सकती है कि कौन सा व्यक्ति यह दान लाया और क्या उसके पास यह देने के लिए वित्तीय थे अथवा यह उसके पास उपलब्ध नकदी की ‘राऊंड ट्रिपिंग’ है?
 
यदि केजरीवाल अभी भी राजस्व सेवा में एक अधिकारी होते और धोखेबाज कंपनियों के माध्यम से धन को बदलने का ऐसा मामला, जिसका परिणाम एक राजनीतिक दल को डोनेशन के रूप में निकलता,  उनकी मेज पर आता तो वह क्या करते? क्या वह लेनदार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखने के लिए कहते अथवा उसे यह विवाद करने की आज्ञा देते कि एक राजनीतिक दल को चैक द्वारा की गई पेमैंट काले  धन को बदलने के सारे पाप माफ कर देती है।
 
क्या वह आयकर अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई चलाने की बजाय इंडियन पीनल कोड के अंतर्गत धोखेबाज लेनदार को गिरफ्तार कर लेते? 
निश्चित तौर पर केजरीवाल कर कानूनों से अनभिज्ञ नहीं हैं। वह जानते हैं कि उनकी पार्टी क्या कर रही है। वह इतने ईमानदार होने चाहिएं कि लोगों को बता सकें कि ‘अरविंद केजरीवाल, आई.आर.एस.’ इन परिस्थितियों में क्या करते।
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