Edited By ,Updated: 08 Feb, 2015 01:48 AM
हरियाणा से होकर किसी जमाने में बहने वाली सरस्वती नदी को पुनर्जीवित किया जाएगा या फिर उसके उद्गम स्थल और प्रवाह मार्ग पर सिर्फ पर्यटन स्थलों का विकास होगा? इस सवाल का ...
(संजीव शुक्ल) हरियाणा से होकर किसी जमाने में बहने वाली सरस्वती नदी को पुनर्जीवित किया जाएगा या फिर उसके उद्गम स्थल और प्रवाह मार्ग पर सिर्फ पर्यटन स्थलों का विकास होगा? इस सवाल का जवाब अभी तक साफ नहीं है। हाल में सूरजकुंड मेले के उद्घाटन अवसर पर बोलते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इतना ही कहा कि कुछ महत्वपूर्ण स्थानों को विकसित किया जा रहा है जिसके लिए एक बोर्ड बनाया जाएगा और राज्य सरकार कोशिश करेगी कि इसके माध्यम से आदिबद्री जैसा तीर्थ स्थल विकसित हो।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) की मंशा बताई जाती है कि वह सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करना चाहता है। इस मंशा के अनुरूप केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती पिछले वर्ष संसद में घोषित कर चुकी हैं कि सरकार नदी को पुनर्जीवित करना चाहती है। उनका कहना था कि सरस्वती हकीकत में थी जिसके सबूत देश के विभिन्न स्थानों पर मिले हैं। उन्होंने अधिकारियों से भी कहा है कि वे इस संबंध में और जानकारी व साक्ष्य जुटाएं ताकि नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा सकें।
अब सवाल उठता है कि क्या सिर्फ नदी के प्रवाह मार्ग में पर्यटन स्थल ही विकसित किए जाएंगे? जैसा कि मुख्यमंत्री ने कहा या फिर 4000 साल पहले विलुप्त हुई नदी को पुनर्जीवित किया जाएगा? जैसा कि उमा भारती कह चुकी हैं। यदि मुख्यमंत्री की बात सही है तो पर्यटन स्थल विकसित करना एक सामान्य बात है। यदि केन्द्रीय मंत्री की बात सही है तो यही कहा जा सकता है कि यह मुंगेरी लाल के हसीन सपनों से ज्यादा कुछ नहीं। इसका अर्थ है कि नदी के प्रवाह स्थल में पडऩे वाले इलाके की भौगोलिक स्थिति को 4000 साल पहले की हालत में लाया जाए। यह तो वैसी ही बात हो गई कि समय-चक्र उलटा चलाकर समाज को रामराज युग में या फिर उससे भी पहले पाषाण युग में ले जाने की बात की जा रही हो।
यह बात तो सही है कि सरस्वती के एक समय मौजूद होने के जो प्रमाण सामने आए हैं उन्होंने उन लोगों की बोलती बंद कर दी है जो पाश्चात्य इतिहासकारों के चक्कर में आकर नदी को मात्र एक मिथक करार देते थे। इसके साथ ही यह बात भी सही है कि किसी नदी को पुनर्जीवन देना असंभव है और वह भी सरस्वती जैसी विशाल नदी को जिसका प्रवाह मार्ग सैंकड़ों कि.मी. का रहा हो। आई.आई.टी. रुड़की के हाइड्रोलॉजी विभाग में जल संसाधन विकास के प्रोफैसर ऐमेरिटस उमेश चन्द्र चौबे ने इस मसले पर कहा था कि नदी को पुनर्जीवित करना कतई संभव नहीं। किसी विलुप्त नदी को पुनर्जीवित किए जाने का दुनिया में कोई उदाहरण नहीं है। नदी के विलुप्त होने का कारण भूमि में आए बदलाव हैं जो भूगर्भीय गतिविधियों (टैकटॉनिक एक्टिविटी) के कारण आते हैं। हजारों सालों में उन स्थानों पर पता नहीं कितने और कैसे बदलाव आ चुके होते हैं। सारे हालातों को पूर्व की स्थिति में ले जाने का अर्थ है समय चक्र को उलटा चलाना।
ऋग्वेद और यजुर्वेद में वर्णित इस नदी के बारे में मान्यता है कि यह 4000 साल पहले विलुप्त हो गई। सूखने के पूर्व इसके दोनों ओर जो जंगल थे उन्हीं में वैदिक सभ्यता का जन्म हुआ और वह वहीं फली-फूली। माना जाता है कि वेदों की रचना भी वहीं हुई। वैज्ञानिकों ने उपग्रह से प्राप्त चित्रों से एक बहुत विशाल नदी के प्रवाह-मार्ग का मानचित्रण किया है, जो भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र हिमालय से निकलकर लगभग 1600 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए अरब सागर में मिलती थी।
फरवरी 2009 में हरियाणा विधानसभा में एक प्रश्न के जवाब में तत्कालीन सिंचाई तथा लोक निर्माण मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव ने बताया था कि पुरातत्व विभाग ने इस धारणा को गलत साबित किया है कि सरस्वती नदी आदिबद्री के पास से निकलती थी। उसके अनुसार नदी का मार्ग बिलासपुर शहर के कपालमोचन क्षेत्र के पास है और आगे चलकर चौतांग नाले में मिल जाता है।
यहां सोचने वाली बात यह भी है कि पिछले 4000 सालों में नदी के प्रवाह-मार्ग में कितने शहर, कस्बे और गांव बस चुके हैं तो क्या उन सबको उजाड़ा जाएगा? जानकारी के लिए बताना जरूरी है कि भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सरकार भी इस दिशा में काफी प्रयास कर चुकी है लेकिन हुआ कुछ नहीं।