Edited By ,Updated: 19 Feb, 2015 04:12 AM
स्वाइन फ्लू से देश भर में अब तक 663 मौतें हो चुकी हैं जबकि अन्य हजारों लोग इसकी चपेट में आए हुए हैं। ऐसे में महामारी की तरह बढ़ रही इस समस्या से देश के लोगों और सरकार का चितित होना स्वाभाविक ही है।
स्वाइन फ्लू से देश भर में अब तक 663 मौतें हो चुकी हैं जबकि अन्य हजारों लोग इसकी चपेट में आए हुए हैं। ऐसे में महामारी की तरह बढ़ रही इस समस्या से देश के लोगों और सरकार का चितित होना स्वाभाविक ही है। अक्सर देखने में आता है कि जागरूकता की कमी के कारण लोग बीमारियों से बेवजह भयभीत हो जाते हैं। जिन लोगों में यह बीमारी नहीं होती, मौतों की चर्चा सुनकर वे भी चिंतित हो जाते हैं।
इसलिए सर्वप्रथम यह समझना जरूरी है कि स्वाइन फ्लू आखिर है क्या? यह बीमारी एच1एन1 वायरस के कारण शुरू होती है। ऐसा माना जाता है कि इस वायरस की शुरूआत सूअरों से हुई थी और धीरे-धीरे इसने खुद को इंसानी शरीर पर हमला करने के योग्य बना लिया। यह वायरस हवा से और पीड़ित व्यक्ति के साथ स्पर्श से फैलता है। जब इस विषाणु से संक्रमित व्यक्ति खांसी करता या छींकता है तो उसकी बलगम या थूक के छोटे-छोटे कण आसपास फैल जाते हैं और उसके समीप बैठे ऐसे व्यक्तियों को संक्रमित कर सकते हैं जिन्होंने अपना नाक-मुंह ढंका न हो। पीड़ित व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली चीजों पर भी इसके विषाणु मौजूद होते हैं और उनसे भी संक्रमण का खतरा होता है।
साधारण नजला-जुकाम (इन्फ्लुएंजा) की तरह स्वाइन फ्लू भी प्रारम्भ में श्वसन प्रणाली के ऊपरी भाग पर हल्ला बोलता है। दोनों मामलों में प्रारम्भिक अलामतें एक जैसी होती हैं- यानी बुखार, पठ्ठो में दर्द, असाधारण थकावट, सिर दर्द, खांसी, गला पकना, भूख न लगना, नाक बहना तथा सांस लेने में परेशानी। सामान्य नजला-जुकाम के विपरीत एच1एन1 विषाणु कभी-कभी फेफड़ों पर भी हल्ला बोलता है जिससे व्यक्ति का दम फूलने लगता है।
स्वाइन फ्लू की पहचान करने के लिए पीड़ित व्यक्ति के गले और नाक से ‘स्वैब’ लेकर इनका टैस्ट किया जाता है। इस टैस्ट की विशेष बात यह है कि यह पूरी तरह नि:शुल्क है। ये परीक्षण भारतीय आयुविज्ञान शोध परिषद (आई.सी.एम.आर.) द्वारा संचालित केन्द्रों में किए जाते हैं। जब भी किसी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल में स्वाइन फ्लू का कोई संदिग्ध मामला आता है तो मरीज के स्वैब लेकर उपरोक्त संबंधित केन्द्र में भेज दिए जाते हैं।
प्रारम्भ में तेज बुखार 3 दिन से अधिक समय तक जारी रहता है और कोई भी अलामत कम होने का संकेत नहीं देती तथा इसके साथ-साथ छाती में दर्द, अल्प रक्तचाप, रंगदार या खूनयुक्त थूक व लंबा सांस लेने में तकलीफ जैसे अन्य संकेत उभरने शुरू हो जाते हैं। जब बीमारी और बढ़ जाती है तो व्यक्ति की नर्वस प्रणाली प्रभावित होनी शुरू हो जाती है। इस तरह के मरीजों पर हर समय निद्रा हावी रहती है और बार-बार उन्हें ऐंठन के दौरे पड़ते हैं। वे मतिभ्रम और ड़ीहाईड्रेशन के शिकार हो जाते हैं और बेहद कमजोरी महसूस करते हैं। पेशाब की मात्रा में काफी कमी आ सकती है।
सबसे अधिक खतरा गर्भवती महिलाओं, 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों, 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों तथा दमा, हृदय संबंधित समस्याओं व लंबे समय से पुलमोनरी अवरोध से पीड़ितों को होता है। जो लोग ऐसी दवाइयों का सेवन करते हैं जो रोग निरोधी प्रणाली पर बुरा प्रभाव डालती हैं, उन्हें भी स्वाइन फ्लू की चपेट में आने का गंभीर खतरा होताहै।
स्वाइन फ्लू निश्चय ही एक इलाज योग्य बीमारी है। रोगी की हालत तभी गंभीर होती है जब समय पर उसकी सुध-बुध नहीं ली जाती। डाक्टरों का कहना है कि अधिकतर मामलों में केवल हल्का-सा संक्रमण होता है इसलिए बिना वजह घबराने की कोई बात नहीं। इस रोग के इलाज के लिए कई दवाइयां उपलब्ध हैं लेकिन इसका सेवन कदापि डाक्टर की सलाह के बिना नहीं करना चाहिए।
बेशक अभी स्वाइन फ्लू के लिए अलग से कोई वैक्सीन नहीं है लेकिन मौसमी नजला-जुकाम के लिए प्रयुक्त होने वाली वैक्सीन एच1एन1 विषाणु पर भी पूरी तरह प्रभावशाली होती है और हमारे शरीर में इस वैक्सीन का असर एक वर्ष तक रहता है।