क्यों न देश के पानी का ‘राष्ट्रीयकरण’ कर दिया जाए

Edited By ,Updated: 22 Feb, 2015 01:49 AM

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लम्बे समय से खामोश पड़ी पानी की राजनीति पिछले कुछ दिनों से फिर से गर्मा गई है। एक ओर दिल्ली को हरियाणा से और अधिक पानी चाहिए तो दूसरी ओर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ...

(संजीव शुक्ल) लम्बे समय से खामोश पड़ी पानी की राजनीति पिछले कुछ दिनों से फिर से गर्मा गई है। एक ओर दिल्ली को हरियाणा से और अधिक पानी चाहिए तो दूसरी ओर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल हरियाणा को पानी देने के नाम पर कहते हैं कि उनके राज्य के पास एक बूंद भी अतिरिक्त पानी नहीं है जो वे पड़ोसियों को दे सकें। कहने का अर्थ है कि पंजाब हरियाणा को पानी नहीं दे सकता लेकिन उसी पानी के पाकिस्तान जाने में उसे कोई हर्ज नहीं है।

पानी के मामले में हरियाणा की स्थिति सबसे खराब है। एक तो यहां पानी के निरंतर स्रोत के नाम पर सिर्फ यमुना नदी है जिसके पानी में हिमाचल प्रदेश, दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश सभी का हिस्सा है जबकि पंजाब के  तो नाम का मतलब ही 5 दरियाओं वाला राज्य है। हरियाणा के हिस्से का पूरा पानी पंजाब से न मिलने के कारण प्रदेश में नहरी पानी की भी काफी कमी है। इन सबके अलावा अब जो बचता है वह है भूमिगत जल जिसके कुल भंडार का 60 फीसदी पानी खारा है अर्थात उसका उपयोग पीने या सिंचाई दोनों के लिए ही नहीं किया जा सकता। शेष 40 फीसदी उपयोग लायक जो पानी है उसके 80 प्रतिशत का दोहन किया जा चुका है क्योंकि यही एक मात्र स्रोत है जो सारे प्रदेश में उपलब्ध है और अभी भी इस पर किसानों की निर्भरता बनी हुई है। नतीजा है कि भूमिगत जल का स्तर प्रदेश में खतरनाक ढंग से गिर रहा है।

इन हालातों के बावजूद पानी पर बने कमीशनों द्वारा हरियाणा के हक में फैसले दिए जाने के बाद भी पंजाब अपने पड़ोसी को पानी देने को तैयार नहीं है। इतना ही नहीं, इस विषय में जो भी फैसले पूर्व में दिए जा चुके हैं उन्हें राज्य विधान सभा से पारित करा कर पंजाब पहले ही रद्द कर चुका है। अब फिर उसकी मांग है कि जल विवाद पर एक ट्रिब्यूनल बनाया जाए। ऐसे में सवाल उठता है कि जब पंजाब ने पहले के फैसलों को सम्मान नहीं दिया तो इस बात की क्या गारंटी है कि वह नए ट्रिब्यूनल के फैसले को मानेगा ही। यदि फैसला उसके हक में नहीं हुआ तो कोई न कोई बहाना बना कर वह पुन: पानी देने से मना कर सकता है।

राज्यों के ऐसे रवैये को देखते हुए अब जरूरी हो गया है कि देश में पानी का राष्ट्रीयकरण किया जाए और इसके बंटवारे का काम किसी स्वशासी राष्ट्रीय संस्था को दिया जाए जो संबंधित राज्यों के बीच पानी की उपलब्धता और राज्यों की आवश्यकताओं के अनुरूप जल का बंटवारा करे।

यह काम जितनी जल्दी किया जाए उतना ही बेहतर होगा अन्यथा जिस प्रकार से पानी की उपलब्धता में कमी आ रही है उसे देखते हुए भविष्य में राज्यों के लिए पानी का इंतजाम करना और भी मुश्किल हो जाएगा। पंजाब का ही उदाहरण यदि लें तो उसका कहना है कि पानी की उपलब्धता पहले से कम हुई है। ऐसे में यदि ट्रिब्यूनल बनाया भी गया तो उसके द्वारा स्थिति का जायजा लिए जाने और रिपोर्ट के आने के बीच ही पानी कम हो सकता है। ऐसे में वे राज्य समझौते से मुकर सकते हैं जिनको जल बंटवारे से नुक्सान हो रहा हो।

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