विदेशी निवेशक भारत के ‘टैक्स ढांचे’ से खुश नहीं

Edited By ,Updated: 22 Feb, 2015 03:11 AM

article

जहां तक देश की आर्थिकता का संबंध है भारत में एक विचित्र-सी स्थिति बनी हुई है जबकि सारे संसार में मंदे की लहर पूरी तरह दिखाई दे रही है। चीन की आर्थिकता लगातार नीचे की ओर जा रही है।

(पी.डी. शर्मा) जहां तक देश की आर्थिकता का संबंध है भारत में एक विचित्र-सी स्थिति बनी हुई है जबकि सारे संसार में मंदे की लहर पूरी तरह दिखाई दे रही है। चीन की आर्थिकता लगातार नीचे की ओर जा रही है। रूस पूरी तरह पिट रहा है और यूरोप की स्थिति दयनीय बनी हुई है। जापान की स्थिति भी यथावत बहुत धीमी चल रही है। कुल मिला कर अमरीका को छोड़कर सभी देश मंदे की लहर में से गुजर रहे हैं। भारत की स्थिति भी ज्यादा उत्साहवर्धक नहीं है।

वर्ष 2008 में भारत संसार में आर्थिक तौर पर 12वें स्थान पर था और वर्ष 2013 में 10वें स्थान पर आ गया है। इस प्रकार भारत कनाडा तथा स्पेन से आगे निकल गया है और इस वर्ष संभवत: भारत विश्व में रूस तथा इटली को पछाड़ता हुआ 8वें स्थान पर आ जाएगा। चीन तीसरे स्थान से दूसरे स्थान पर खिसक गया है।

इस स्थिति में भारत पूरी तरह प्रयत्नशील है और बाहर के निवेशकों को प्रोत्साहित करके देश में विदेशी निवेश को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इस दिशा में दो बड़ी भूलें नजर आ रही हैं। विदेशी निवेशक भारत के टैक्स ढांचे से पूरी तरह असंतुष्ट हैं। भारत सरकार फूंक-फूंक के कदम उठा रही है ताकि इस ढांचे को सरल, भरोसेमंद और संसार के दूसरे देशों की तरह बनाया जाए परन्तु डर इस बात का है कि देश के उद्योगपति और व्यापारी सरकार पर दोषारोपण करेंगे कि वह विदेशी निवेशकों को नाजायज लाभ दे रही है। बात सीधी-सी है कि यह सरकार विशेष करके छोटे और मध्यम वर्ग के उद्यमियों को पूरी तरह नजरअंदाज कर रही है। इसके बहुत से मुख्य उदाहरण भी हैं।

अब भारत सरकार ने वोडाफोन और शैल कम्पनियों के पक्ष में मुम्बई हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध  सुप्रीमकोर्ट में अपील न करने का निर्णय किया है। यह एक बहुत ऐतिहासिक फैसला है और एक बड़े आर्थिक सुधार का आगाज भी है। यह फैसला भारत के अटार्नी जनरल की सलाह पर किया गया है जबकि इन्कम टैक्स विभाग का रुझान अपील करने में ही रहता।

देश में इस समय 2.67 लाख इन्कम टैक्स के मामले लटक रहे हैं। आम तौर पर इन्कम टैक्स विभाग के औसतन ट्रिब्यूनल तथा हाईकोर्ट के स्तर पर 80 प्रतिशत मामले विभाग के विरुद्ध जाते हैं और 90 प्रतिशत मामले सुप्रीम कोर्ट में भी विभाग के विरुद्ध जाते हैं। इस स्थिति को देखते हुए इस बजट में वित्त मंत्री को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि भविष्य में विभाग अपील में नहीं जाएगा। ऐसे ही नियम अप्रत्यक्ष टैक्सों के मामलों में भी होने चाहिएं।

इस संदर्भ में यह तर्कसंगत है कि मोदी सरकार में भ्रष्ट अधिकारियों की छुट्टी करने का पूरा सामथ्र्य है जोकि पहले ही दर्शाया भी गया है जैसे कि विदेश सचिव और गृह सचिव जैसे विभागों में हो चुका है। ट्रिब्यूनल में नियुक्तियां गुणवत्ता के आधार पर होनी चाहिएं। जैसे कि सी.बी.आई. के डायरैक्टर के मामले में हुआ है । जहां तक जजों की नियुक्तियों का संबंध है सरकार पहले ही कानून बना कर अपना पक्ष स्पष्ट कर चुकी है।

टैक्सों के मामले में एक और सुझाव भी सुधार की ओर ले जाने में बहुत महत्वपूर्ण है। वह यह है कि टैक्स विभागों के देश के भिन्न-भिन्न स्थानों में उच्चाधिकारी अपना फैसला देते हैं और ये फैसले एक-दूसरे की अपेक्षा उलट भी होते हैं। इस संदर्भ में वित्त मंत्री को एक स्पष्ट नीति की इस बजट में ही घोषणा करके इस समस्या का यथायोग समाधान कर देना चाहिए।

वित्त मंत्री पूर्वकालीन टैक्स के मामलों के बारे में अपना पक्ष पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वह किसी न्यायालय के फैसले के विरुद्ध अपील नहीं करेंगे। यह आम तौर पर अनुभव किया गया है कि टैक्स के मामलों में जो फैसले किए जाते हैं वे विश्व स्तर (ग्लोबल स्टैंडर्ड) से बहुत भिन्न होते हैं और विदेशी निवेशकों में डर बैठा हुआ है जैसे नोकिया की भारत में एक इकाई के साथ हुआ है, वैसा ही उनके साथ भी हो सकता है।

जहां तक अपील करने का संबंध है यह फैसला टैक्स विभाग के अलावा दूसरे मंत्रालयों में भी लागू होना चाहिए। इसके लिए रक्षा मंत्रालय के एक केस का उदाहरण उचित होगा। एक सैनिक सियाचिन क्षेत्र में नियुक्त था और उसकी तब मृत्यु हो गर्ई जब वह अपने ड्यूटी स्थान से थोड़ा दूरी पर लघुशंका आदि के लिए जाने लगा। वह फिसल गया और उसकी मृत्यु हो गई । रक्षा मंत्रालय ने उसकी विधवा की पैंशन इसलिए रोक दी क्योंकि वह अपनी ड्यूटी पर नहीं था। विभाग न्यायालय के हर स्तर पर अपना केस हार गया और विधवा को बहुत ज्यादा जद्दोजहद और समय बर्बाद करने के बाद पैंशन मिल सकी।

इसी प्रकार छोटे वर्ग के लोग हर सरकारी विभाग से दुखी होते रहते हैं। मोदी सरकार इतना अच्छा प्रदर्शन करते हुए भी अब लोगों का विश्वास धीरे-धीरे खोती हुई नजर आ रही है। दिल्ली चुनाव में कोई भी पार्टी जीते या हारे परन्तु एक चीज स्पष्ट हो गई है कि आम आदमी की जीवनयापन संबंधी कठिनाइयां जस की तस बनी हुई हैं।

उपरोक्त के संदर्भ में देश में एक अद्भुत परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण वातावरण लगातार बनता जा रहा है। हर मंत्रालय और अधिकारी स्तर पर चाहे वह केन्द्र सरकार या प्रांत सरकार का हो, छोटे से छोटा और साधारण से साधारण मामला भी न्यायालय की ओर धकेला जा रहा है।

देश में मोदी सरकार और उनकी पार्टी द्वारा शासित प्रदेशों में तो यह व्यवस्था यकीनन बनाई जा सकती है कि फैसले स्वयं ही किए जाएं क्योंकि जितने भी फैसले न्यायालयों की ओर धकेले जाएंगे, उतनी ही संबंधित अधिकारियों और सरकार की नकारात्मक छवि बनेगी। एक तर्कसंगत सुझाव यह है कि वाणिज्य मामलों के निपटारे के लिए अलग वाणिज्य न्यायालय होने चाहिएं।

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!