Edited By ,Updated: 26 Feb, 2015 01:39 AM
अनुच्छेद-370 का अस्तित्व 20 अगस्त, 1952 में उसी समय समाप्त होकर रह गया था, जब शेख अब्दुल्ला की अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने 20 अगस्त, 1952 को महाराज हरि सिंह की राजशाही को एक प्रस्ताव में खत्म कर दिया
(प्रो. भीम सिंह): अनुच्छेद-370 का अस्तित्व 20 अगस्त, 1952 में उसी समय समाप्त होकर रह गया था, जब शेख अब्दुल्ला की अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने 20 अगस्त, 1952 को महाराज हरि सिंह की राजशाही को एक प्रस्ताव में खत्म कर दिया और महाराजा के सुपुत्र युवराज कर्ण सिंह को राज प्रमुख के पद से हटा कर रातों-रात जम्मू-कश्मीर का सदर बना दिया। इस समय भारत की सरकार खामोश क्यों रही?
1950 में संविधान लागू होने के दिन से ही अनुच्छेद-370 के कारण पूरे राष्ट्र में असंतोष फैला हुआ है। पूरे राष्ट्र में 2 विचारधाराएं हैं, एक के अनुसार अनुच्छेद-370 को जड़ से उखाड़ फैंक देना चाहिए और दूसरी विचारधारा के अनुसार यह जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच संबंधों में एक पुल का काम कर रही है। सबसे बड़ी दुविधा की बात मेरे जैसे जम्मू-कश्मीर से संबंध रखने वाले कार्यकत्र्ताओं के लिए यह है कि जिस सभा में, चाहे वह इंडिया इंटरनैशनल सैंटर हो, सुप्रीम कोर्ट हो, प्रैस क्लब ऑफ इंडिया हो या कोई अन्य महफिल हो, हर व्यक्ति एक ही सवाल पूछता है कि जम्मू-कश्मीर में क्या होने वाला है? जम्मू-कश्मीर में सरकार कब बनेगी? क्या जम्मू-कश्मीर भारत से खिसकता जा रहा है, इत्यादि-इत्यादि। मैं इन प्रश्रों को लगभग 40 वर्षों से सुनता आया हूं और ये प्रश्र आम आदमी के नहीं हैं, हर पढ़ा-लिखा व्यक्ति, वकील, बुद्धिजीवी या पत्रकार मुझसे यही सवाल करता है जैसे कि हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है।
मैं इस नतीजे पर पहुंच रहा हूं कि जम्मू-कश्मीर की समस्या/उलझन/ अफरा-तफरी के 2 कारण हैं, एक विदेश नीति और दूसरा अंदरूनी कलह। जहां तक विदेश नीति का संबंध है, भारत के नेताओं ने भयंकर गलतियां की हैं और आज भी कर रहे हैं और एक राजनीतिक पार्टी ही नहीं, लगभग सभी राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं, जो केंद्र में सत्ता से जुड़े रहे।
भारत आज तक विश्व को यह नहीं बता सका कि राष्ट्र संघ के प्रस्ताव क्या हैं, जिनकी दुहाई पाकिस्तान और उसके हुक्मरान बार-बार देते हैं। सिर्फ इतना पैगाम क्यों नहीं जा सकता कि राष्ट्र संघ के प्रस्तावों को पाकिस्तान ने किस तरह ठुकराया है और इन प्रस्तावों की अवहेलना पाकिस्तान ने की है। लगभग एक तिहाई जम्मू-कश्मीर, जिसमें गिलगित-बाल्तिस्तान शामिल हैं, पर पाकिस्तान ने राष्ट्र संघ की उल्लंघना करके अपना आधिपत्य वैधानिक बनाने की कोशिश की है। लगभग 5000 वर्ग मील भूमि जो पाकिस्तान ने 1963 में चीन को दे दी थी, उसके बारे में भारत के नेता क्यों खामोश हैं? यह तो जो हुआ, सो हुआ, अब मामला है आंतरिक कलह का।
1950 में भारत का संविधान लागू हुआ और उसके साथ एक कैंसर जैसा अनुच्छेद-370 जोड़ दिया गया, जिसका कोई भी मतलब नहीं था और स्वयं संविधान सभा ने यह स्वीकार किया कि यह धारा एकदम अस्थायी है और इसका उद्देश्य सिर्फ महाराजा हरि सिंह की राजशाही पर नियंत्रण रखना था। अनुच्छेद-370 में इस बात का उल्लेख था कि भारत के राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर में कोई भी कानून बनाने का अधिकार रखते हैं, परन्तु उन्हें 5 मार्च, 1948 में जम्मू-कश्मीर में शेख अब्दुल्ला द्वारा बनाई गई सरकार से स्वीकृति लेनी होगी, महाराजा हरि सिंह ने इस दिन शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर का वजीर-ए-आजम नियुक्त किया था।
बहुत बड़ा प्रश्र यह है कि भारत के संविधान में अनुच्छेद-370 लाने की क्या आवश्यकता थी? महाराजा के अधिकार बाकी राजाओं और महाराजाओं की तरह समाप्त क्यों नहीं कर दिए गए, जबकि 500 के करीब राजाओं और महाराजाओं ने भी जम्मू-कश्मीर के महाराजा जैसी शर्तों पर ही विलयपत्र पर हस्ताक्षर किए थेे।
प्रश्र यह उठता है कि जम्मू-कश्मीर में महाराजा की राजशाही को 1950 के विधान के अनुसार समाप्त किया जाना ही क्या वह कारण था जिसके अंतर्गत अनुच्छेद-370 में राष्ट्रपति के अधिकार पर संविधान ने अंकुश लगा दिया क्योंकि वह जम्मू-कश्मीर के कानून में परिवर्तन ला सकते थे, परन्तु केवल जम्मू-कश्मीर में महाराजा की बनाई हुई सरकार की अनुमति के बाद। इस विषय पर कोई गोष्ठी नहीं हुई, संसद में कोई बहस नहीं हुई, देश के बड़े-बड़े विचारक, इतिहासकार, कानूनी सलाहकार खामोश क्यों रहे?
अनुच्छेद-370 का अस्तित्व 20 अगस्त, 1952 में उसी समय समाप्त होकर रह गया था, जब शेख अब्दुल्ला की अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने 20 अगस्त, 1952 को महाराज हरि सिंह की राजशाही को एक प्रस्ताव में खत्म कर दिया और महाराजा के सुपुत्र युवराज कर्ण सिंह को राज प्रमुख के पद से हटा कर रातों-रात जम्मू-कश्मीर का सदर बना दिया। इस समय भारत की सरकार खामोश क्यों रही?
तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के आदेश से शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को 9 अगस्त, 1953 को उनके पद से बर्खास्त करके तुरंत जेल में बंद कर दिया था। यह क्या वजह थी, इसके बारे में देश के इतिहासकारों और विचारकों की खामोशी क्यों रही? क्या यह सच नहीं था कि शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने महाराजा हरि सिंह को महाराजा के पद से अलग इसलिए किया था कि वह स्वयं जम्मू-कश्मीर के सुल्तान बनना चाहते थे या वह राष्ट्र संघ के सलाहकार ओवन डिक्सन के फार्मूले को जम्मू-कश्मीर में लागू करके वहां एक इस्लामिक रिपब्लिक आफ कश्मीर की घोषणा करने वाले थे और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ओवन डिक्सन फार्मूले को एकदम रद्द करने का फैसला भी सुना दिया था, जो भी हो जिस दिन महाराजा के अधिकार को खत्म कर दिया गया, जिस दिन संविधान में राजशाही खत्म कर दी गई, उसी दिन अनुच्छेद-370 का अस्तित्व ही खत्म हो गया क्योंकि अनुच्छेद-370 में केवल और केवल महाराजा हरि सिंह की बनाई हुई सरकार को भारत के राष्ट्रपति से पूछना जरूरी था।
अब न शेख अब्दुल्ला सत्ता में रहे, न महाराजा हरि सिंह की बनाई हुई सरकार रही और न ही संविधान सभा रही, जो 1956 में एक प्रस्ताव के तहत बंद कर दिया गया और जम्मू-कश्मीर में जनवरी, 1957 को जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू किया गया, जो आज भी मौजूद है। इसकी धारा-3 के अनुसार, ‘‘जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा के लिए रहेगा।’’ अब अनुच्छेद-370 का क्या अर्थ रह जाता है या इसका क्या लाभ है या इसकी क्या आवश्यकता है? इस धारा को चालू रखना सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लोगों का शोषण करना है।
देश की रक्षा, एकता और सार्वभौमिकता के लिए जम्मू-कश्मीर में शांति लाने का और जम्मू-कश्मीर के तीनों खित्तों को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक अधिकार व न्याय देने का एक ही रास्ता है-जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन। और पुनर्गठन तभी संभव है, जब अनुच्छेद-370 में संशोधन होगा, इससे दोनों विचारधारा रखने वालों के लिए कोई आपत्ति नहीं होगी और न ही होनी चाहिए क्योंकि सबसे बड़ा मुद्दा है राष्ट्रीय एकता, शांति और प्रगति।