मदर टैरेसा के बारे में भागवत कुछ नहीं जानते

Edited By ,Updated: 01 Mar, 2015 01:58 AM

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के सरसंघचालक की मदर टैरेसा के बारे में टिप्पणी पूर्वाग्रह की बू मारती है। इससे भी बढ़कर हैरानी की बात तो यह है कि ‘मदर’ द्वारा उपलब्ध करवाई गई सेवा के बारे में ...

(करण थापर) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के सरसंघचालक की मदर टैरेसा के बारे में टिप्पणी पूर्वाग्रह की बू मारती है। इससे भी बढ़कर हैरानी की बात तो यह है कि ‘मदर’ द्वारा उपलब्ध करवाई गई सेवा के बारे में वह बिल्कुल ही नहीं जानते। और भी बुरी बात यह है कि अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण अडवानी की मदर टैरेसा के बारे में ऊंची राय की उन्हें कोई जानकारी तक नहीं।

सरसंघचालक के पूर्वाग्रह का कारण शायद यह है कि वह ईसाइयों को पसंद ही नहीं करते। यह सर्वविदित है कि सरसंघचालक और आर.एस.एस. को संदेह है कि ईसाई व्यापक स्तर पर धर्मांतरण अभियान चलाते हैं, जिसे ये दोनों ‘लूटपाट’ तक का नाम देते हैं।

यहां कुछ तथ्य प्रस्तुत किए जा रहे हैं जो स्वयं सिद्ध कर देंगे कि वास्तविकताओं के बारे में उनकी जानकारी कितनी कम है। 1971 में ईसाइयों का भारत की कुल जनसंख्या में हिस्सा 2.6 प्रतिशत था। यदि व्यापक धर्मांतरण अभियान चलाने के बावजूद वे अभी कुल जनसंख्या का केवल 2.3 प्रतिशत हिस्सा ही बन पाए हैं तो इसका अर्थ यही है कि इस काम से उन्हें कोई बड़ी उम्मीदें नहीं हैं। प्रताडि़त करने की तो जरूरत ही नहीं। उन्हें तो यह सिखाए जाने की जरूरत है कि धर्मांतरण को बेहतर ढंग से कैसे अंजाम दिया जा सकता है?

बिल्कुल यही हाल सरसंघचालक जी का है। वह भी मदर टैरेसा द्वारा किए गए सेवा कार्यों से अपरिचित हैं। वह केवल दीन और दुखी की ही नहीं, बल्कि मर रहे लोगों की भी सेवा संभाल करती थीं। ऐसे लोग जिन्हें उनके परिजनों ने घर से धकेल दिया था और जो बदहाली में दिनकटी कर रहे थे। मदर ने उन्हें सुख-सुविधाएं दीं और साथ ही दिलासा भी ताकि वे चैन से अंतिम सांस ले सकें।

मदर टैरेसा की जीवनकथा में दर्ज है कि ‘‘मिशनरी ऑफ चैरिटी’’ ‘‘अपनी सेवा संभाल में लिए हुए लोगों में प्रत्येक देहावसान पर उसके व्यक्तिगत मजहब के अनुसार उसकी रस्म किरया करती है।’’ उनका एक कथन बिल्कुल इसी बात को रेखांकित करता है। ‘‘आप अपने मजहब के अनुसार प्रार्थना करें और मैं जैसे रोज करती हूं, वैसे ही करूंगी।’’

इस प्रकार की सेवा का कोई मोल- भाव नहीं लगाया जा सकता और इसके पीछे कोई छद्म उद्देश्य होने का आक्षेप नहीं लगाना चाहिए। अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने से अधिक ये लोग मदर टैरेसा को और दे भी क्या सकते थे? यह तो तय है कि मदर ने यह सारा कुछ परमात्मा के नाम पर ही किया, क्योंकि केवल प्रभु प्रेम की दीवानगी में ही कोई ऐसे सेवा कार्य कर सकता है।

यदि मदर टैरेसा चाहतीं तो इन मरणासन्न लोगों के कृतज्ञता भाव का दुरुपयोग करके उनका धर्मांतरण कर सकती थीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। जिन पलों में वे अधिकतम असहाय होते थे तब भी मदर ने उनके विशेष धार्मिक विश्वास का सम्मान ही किया। यही मदर टैरेसा की सच्ची महानता थी।

मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं कि मदर टैरेसा जैसे बहुत ही कम लोग होते हैं। न श्री भागवत ऐसे लोगों में आते हैं और न ही मैं। यही कारण था कि उन्होंने नोबेल शांति पुरस्कार हासिल किया और ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित की गईं। न भागवत जी को यह सम्मान मिल पाएगा और न ही मुझे।

अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण अडवानी ने मदर की खूबियों की पहचान की और उनकी प्रशंसा की। श्री वाजपेयी ने कहा, ‘‘आज जब मानव जाति निहित स्वार्थ की भावना से ही अधिक से अधिक प्रेरित हो रही है, मदर टैरेसा ने नि:स्वार्थ भाव से अपना सर्वस्व उन लोगों को समर्पित कर दिया जिन्हें समाज ने भुला दिया था और भाग्य भरोसे छोड़ दिया था। सनकीपन के इस दौर में भी वह मजहबी श्रद्धा की गहरी समझदारी की प्रतीक बनी रहीं। ऐसी ही भावनाओं को स्वर प्रदान करते हुए लाल कृष्ण अडवानी ने कहा, ‘‘मदर ने आजीवन लाखों-करोड़ों लोगों को जिस प्रकार प्रेरणा दी कि अपने से कम भाग्यशाली लोगों के लिए योगदान करना न भूलें, मृत्योपरांत भी वह ऐसी ही प्रेरणास्रोत बनी रहेंगी।’’

दुर्भाग्यवश श्री वाजपेयी इस समय कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं परन्तु मैं चाहूंगा कि श्री अडवानी कुछ कहें और श्री भागवत की गलती ठीक करें। बेशक दोषारोपण करते हुए नहीं, बल्कि विनम्रतापूर्वक, लेकिन गलती जरूर ठीक करवाएं। मैं अपने प्रधानमंत्री से भी इस विषय में कुछ सुनना चाहूंगा- इस मामले में इतनी विनम्रता भरी मुद्रा में नहीं बल्कि अधिक उंगली उठाते हुए।

इसकी बजाय जो मुझे सुनने को मिला है वह है कि आर.एस.एस. के प्रवक्ता मुंह छिपाते फिर रहे हैं। बेशक श्री भागवत के शब्द वीडियो रिकार्डिड हैं और इनसे इंकार नहीं किया जा सकता, फिर भी उनके प्रवक्ता यह कह रहे हैं कि उनके शब्दों का तात्पर्य यह नहीं था। एक बात का संदेश तो मिल ही जाता है कि इन लोगों को श्री भागवत की भयावह गलती का एहसास हो गया है।

भागवत खुद को जितना बड़ा नेता मानते हैं, वास्तव में उसके आधे के बराबर ही हैं, इसलिए वह कम से कम यही कर सकते हैं कि क्षमायाचना कर लें। अपनी गलती मानने के लिए सच्ची चरित्रवादिता की जरूरत होती है। मैं ईमानदारी से कहता हूं कि मैं भी उतनी क्षमायाचना नहीं करता जितनी मुझे करनी चाहिए। मैं तो केवल इसी उम्मीद पर हूं कि लोग मेरी गलतियां भूल जाएंगे और क्षमा कर देंगे। मैं लोगों का कोई बहुत बड़ा नेता होने की नौटंकी नहीं करता।

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