नीलामी प्रक्रिया से सरकार ही ‘मालामाल’ होती है, लोग नहीं

Edited By ,Updated: 12 Mar, 2015 03:37 AM

article

जैसा कि पहले ही अनुमान था, यू.पी.ए. की जनकेन्द्रित नीतियों का मजाक उड़ाते हुए प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का धन्यवाद करते समय कांग्रेस के घावों पर फिर से नमक छिड़कते हुए

(कपिल सिब्बल): जैसा कि पहले ही अनुमान था, यू.पी.ए. की जनकेन्द्रित नीतियों का मजाक उड़ाते हुए प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का धन्यवाद करते समय कांग्रेस के घावों पर फिर से नमक छिड़कते हुए इसे गत लोकसभा चुनाव में इसकी ऐतिहासिक पराजय का स्मरण करा दिया। वह शब्दों के जादूगर हैं। फिर भी उनके भाषण में अत्यंत जटिल नीतिगत मुद्दों की समझदारी की कमी जाहिर हो गई। 

कोयला खण्डों की हाल ही की नीलामी के मद्देनजर प्रधानमंत्री ने कैग के इस दावे का समर्थन करने का संकेत दिया कि यू.पी.ए. ने उद्योग जगत को कोयला खण्डों के आबंटन के माध्यम से सरकारी खजाने को 1.85 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक का नुक्सान पहुंचाया था। मोदी ने यह संकेत दिया कि केवल 19 खण्डों की हाल में हुई नीलामी से राज्यों को 1 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक का लाभ हुआ है और यदि 204 खण्डों का आबंटन हुआ है तो कल्पना कीजिए कि राज्यों की झोली कितनी भर जाएगी।  राज्यों को यह राशि रायल्टी के रूप में मिलनी है। 
 
प्रधानमंत्री को शायद यह विदित नहीं कि जिन कोयला खण्डों की नीलामी की गई है, वे या तो चालू स्थिति में हैं या फिर चालू होने के करीब हैं। जो कोयला खण्ड ऐसी स्थिति में नहीं हैं, उनकी नीलामी से इतनी भारी-भरकम राशि जुटने वाली नहीं। नए कोयला खण्डों के मामले में प्रधानमंत्री के सपने धरे-धराए रह जाएंगे। 
 
अपने बयान में प्रधानमंत्री यह समझने में भी असफल रहे कि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के पीछे उद्देश्य क्या होता है? नीलामी के माध्यम से अधिक से अधिक राजस्व अर्जित करना ही प्राकृतिक संसाधनों के आबंटन के पीछे एकमात्र उद्देश्य नहीं होता। उदाहरण के तौर पर यदि दिल्ली जैसे शहर में शिक्षण या स्वास्थ्य संस्थानों को आबंटित की जाने वाली भूमि की नीलामी की जाए तो निजी क्षेत्र न शिक्षण संस्थाएं स्थापित कर पाएगा और न ही स्वास्थ्य संभाल के लिए अस्पताल। प्राकृतिक संसाधनों का आबंटन चाहे नीलामी के माध्यम से हो या किसी अन्य ढंग से, वे व्यापक सार्वजनिक उद्देश्यों की सेवा करते हैं। संसाधनों का अधिकतम विवेकपूर्ण उपयोग केवल तभी हो सकता है यदि किसी विशेष उद्देश्य के लिए उनके दोहन हेतु गहरे चिन्तन-मनन से नीतिगत ढांचा तैयार किया गया हो।
 
इस्पात, बिजली और सीमैंट तीन प्राथमिकता युक्त क्षेत्र हैं, जो हमारी उदीयमान अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं। मोदी सरकार ने इनकी नीलामी कोई बहुत युक्तिपूर्ण ढंग से नहीं की और इनका एकमात्र उद्देश्य केवल राजस्व में बढ़ौतरी करना है,न कि इन तीनों क्षेत्रों में नई जान फूंकना। यदि इन कोयला खण्डों का उपरोक्त तीनों प्राथमिकता युक्त क्षेत्रों में समतापूर्ण वितरण नहीं होता तो अध्यादेशके पक्ष में दी जाने वाली तमाम दलीलें अर्थहीन होजाएंगी। फिर भी यह तो समस्या का केवल एक ही पहलू है। 
 
प्रति मीट्रिक टन कोयले के लिए दी जाने वाली नीलामी की राशि उद्योग जगत को बैंकों से उधार लेनी होगी। अपने परिचालन के दौरान उद्योग जगत ने जहां अपनी लागतें पूरी करनी हैं, वहीं कर्ज की किस्तें भी अदा करनी हैं। बैंक ऋण के अलावा उद्योगों को खदानों की गहराई में उपलब्ध कोयला निकालने के लिए भारी पूंजीगत निवेश करना होगा। जब वे सरकार को नीलामी के दौरान ही भारी-भरकम राशियां दे चुके होंगे तो अधिकतर उद्योगों के लिए नए पूंजीगत निवेश की व्यवस्था करना कठिन हो जाएगा। ऐसे में यदि उद्योग अपने ऋण की किस्तों का भुगतान समय पर नहीं कर पाते, तो बैंकों के एन.पी.ए. में वृद्धि हो जाएगी। ऐसे में कहा जा सकता है कि अध्यादेश में चिन्हित प्राथमिकता युक्त क्षेत्रों में नई जान फूंकने के सार्वजनिक उद्देश्य हेतु केवल कोयला खण्डों की नीलामी ही एकमात्र जीवनामृत नहीं है। 
 
महंगी दरों पर बैंकों से भारी ऋण लेने का अर्थ यह है कि उद्योग जगत को उत्कृष्टतम उत्पादन के लिए निवेश करने की क्षमता भी विकसित करनी होगी। अनुभव बताता है कि नीलामी की ऊंची दरों से सरकार की हित साधना तो बेशक हो जाए, लेकिन इससे सार्वजनिक कल्याण कभी-कभार ही होता है। दूरसंचार क्षेत्र में 3-जी स्पैक्ट्रम की नीलामी से सरकार ने लगभग 1 लाख करोड़ रुपया जुटा लिया था लेकिन दूरसंचार क्षेत्र के पास आम आदमी को 3-जी सेवाएं उपलब्ध करवाने हेतु आधारभूत ढांचे में निवेश करने के लिए निवेश क्षमता ही नहीं थी। यानी सरकार ने जो पाया, आम आदमी ने वही खो दिया। 
 
इससे पहले सरकार की नीति थी जिसके अन्तर्गत स्पैक्ट्रम के आबंटन के बाद एक न्यूनतम अदायगी करने के पश्चात निवेशक को सरकार के साथ लाभांश हिस्सेदारी की व्यवस्था करनी पड़ती थी। यह नीति बहुत कारगर रही। यही कारण था कि 2-जी स्पैक्ट्रम का आबंटन बहुत सफल रहा। उद्योग जगत ने अपने राजस्व की हिस्सेदारी से सरकार को मालामाल कर दिया। 
 
परन्तु 3-जी स्पैक्ट्रम के मामले में नीलामी की दरें इतनी ऊंची थीं कि दूरसंचार क्षेत्र सस्ती दरों पर 3-जी सेवाएं उपलब्ध नहीं करवा पाया। मुझे डर है कि बिजली, स्टील और सीमैंट जैसे अर्थव्यवस्था के आधारभूत क्षेत्रों में भी भविष्य में यही होने वाला है। 
 
अधिकतर कोयला खण्डों की नीलामी उन उद्योगों ने हासिल की है, जो न तो स्टील पैदा करते हैं और न ही सीमैंट या बिजली। नीलामी के सबसे सफल बोलीदाता एल्युमीनियम तैयार करते हैं। परिणाम यह हुआ है कि नीलामी से पहले जिस स्टील क्षेत्र की कोयला खण्डों के आबंटन में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, वह अब घटकर 25 प्रतिशत रह गई है जबकि एल्युमीनियम उद्योग की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत कोयला खण्डों से बढ़कर 45 प्रतिशत हो गई है। 
 
यह कहने का मेरा अभिप्राय केवल यह है कि अर्थव्यवस्था के लिए अति महत्वपूर्ण संसाधनों की नीलामी की प्रक्रिया बहुत जटिल है। केवल कुछ कोयला खण्डों की नीलामी से ही एक लाख करोड़ का लाभ अर्जित करके प्रधानमंत्री का इतराना इस बात का सूचक है कि वे नीलामी प्रक्रिया के पीछे कार्यरत विवेकशीलता से पूर्णत: अनभिज्ञ हैं। 
IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!