‘विवादों और इस्तीफों’ से परेशान स्मृति ईरानी

Edited By ,Updated: 30 Mar, 2015 03:19 AM

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मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी एक बार फिर से एक और संकट से रू-ब-रू हैं और इस बार उनका सामना आई.आई.टी. बॉम्बे के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के चेयरमैन अनिल काकोड़कर से हुआ है,

(दिलीप चेरियन): मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी एक  बार फिर से एक और संकट से रू-ब-रू हैं और इस बार उनका सामना आई.आई.टी. बॉम्बे के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के चेयरमैन अनिल काकोड़कर से हुआ है, जिन्होंने अपना त्यागपत्र दे दिया है। काकोड़कर परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व चेयरमैन भी हैं और बताया जा रहा है कि उन्होंने आई.आई.टी. डायरैक्टर के चयन के मुद्दे पर एच.आर.डी. मंत्रालय के साथ ‘असहमति’ के चलते त्यागपत्र दिया। 

हालांकि मंत्रालय ने दावा किया कि काकोड़कर ने मंत्रालय के दखल के बाद अपना इस्तीफा वापस ले लिया है और स्पष्ट किया कि अब मामला सुलझ गया है। बहरहाल, काकोड़कर इस सबके बाद भी आई.आई.टी. के 3 डायरैक्टर्स के चयन की महत्वपूर्ण बैठक में नहीं आए। पैनल के 3 अन्य सदस्य भी इस बैठक से दूर ही रहे। स्पष्ट है कि काकोड़कर और उनके समर्थक मंत्रालय द्वारा चयन प्रक्रिया को हटाने के फैसले से असहमत हैं जोकि अपने स्तर पर ही 3 पदों के लिए नए इंटरव्यू कर रहा है। 
 
मैडम ईरानी के लिए एक और विवाद भारी पड़ सकता है क्योंकि वह पहले से ही कई बार विवादों में आ चुकी हैं। फिर चाहे तीसरी भाषा का विवाद हो या फिर आई.आई.टी. दिल्ली के डायरैक्टर आर.के. शेवगांवकर का इस्तीफा हो या फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी के उप-कुलपति दिनेश सिंह के साथ उनके चल रहे विवाद हों, विवादों का हर नया एपिसोड कई सारे सवाल पैदा कर देता है कि आखिर क्यों मंत्रालय की नई रणनीतियां भारत के प्रमुख एजुकेशनल इंस्टीच्यूट्स के साथ मेल नहीं खाती हैं। इस दौरान इस सबके बीच काकोड़कर की स्थिति उनके विवादास्पद इस्तीफे के चलते अभी भी अस्पष्ट ही है। 
 
सचिवों के आने से पहले विदा होने से परेशान मेनका
वे आते-जाते रहते हैं। केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी ने जब से महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का कामकाज संभाला है, वह तभी से इसके प्रबंध से खुश नहीं हैं। मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारियों की काफी अधिक कमी बनी हुई है और कई प्रमुख पद कई महीनों से खाली पड़े हुए हैं। इसके साथ ही सुश्री गांधी देख रही हैं कि संयुक्त सचिवों का आना-जाना भी लगातार बना हुआ है। सूत्रों के अनुसार मंत्रालय में से सबसे पहले बाहर जाने वाले संयुक्त सचिव विवेक जोशी हैं जिन्होंने एक और मंत्रालय में तबादला ले लिया है। एक अन्य संयुक्त सचिव को जबरदस्ती सिक्किम ट्रांसफर कर दिया गया है क्योंकि उनके खिलाफ यौन प्रताडऩा की एक शिकायत आई थी। 
 
इसके साथ ही यू.टी. काडर के आई.ए.एस. अधिकारी के.के. शर्मा के मामले के बारे में तो सभी जानते हैं। वह मंत्रालय में आने वाले थे लेकिन आखिरी मिनट पर उन्हें गोवा में मुख्य सचिव बनाकर भेज दिया गया। वहां ही बस नहीं है। शर्मा अब वापस राजधानी आ गए हैं और उन्हें दिल्ली का मुख्य सचिव बना दिया गया है। मंत्रालय के कुछ अन्य अधिकारियों को भी उनके गृह राज्यों में भेजा जा रहा है। मंत्रालय में सबसे ताजा और चर्चित विदाई डी.वी. प्रसाद की हुई है जोकि एडीशनल सचिव थे और उन्हें उनके गृह काडर कर्नाटक भेजे जाने का आदेश जारी हो चुका है। 
 
बाबुओं के लिए कोई आराम नहीं 
‘आप’ सरकार ने एक नई तरह की राजनीति के वायदे के साथ सत्ता की तरफ कदम बढ़ाए थे और एक नए तरह का प्रशासन देने का वायदा भी किया था। पार्टी के अंदर मचे घमासान के बीच भी ‘आप’ सरकार सरकारी कार्यालयों में कामकाज को बेहतर करने का प्रयास कर रही है। अधिकांश बाबू बकाया काम को निपटाने के लिए अक्सर शनिवार को भी काम करते रहते हैं और ऐसे में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक नया फैसला कर दिल्ली सरकार के कर्मियों के लिए 6 दिनों के सप्ताह का ऐलान कर दिया है। 
 
सूत्रों के अनुसार अनिदो मजूमदार, प्रिंसीपल सैक्रेटरी, सामान्य प्रशासन विभाग ने शनिवार को अवकाश संबंधी आदेश को निरस्त कर उसे कामकाजी दिन में बदल दिया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री भी अपने अन्य मंत्री सहयोगियों के साथ शनिवार को भी काम के लिए सचिवालय में आने लगे हैं और ऐसे में बाबुओं के पास भी कोई विकल्प नहीं बचता है कि वे भी आफिस आएं क्योंकि वे अपने राजनीतिक आकाओं को मना नहीं कर सकते हैं। स्पष्ट है कि वे ‘आप’ के काम करने के अंदाज से दूर नहीं हट सकते हैं और उन्हें अपने आराम के दिन भी काम करना पड़ रहा है। पर, क्या केजरीवाल अपने नए 6 दिनों के सप्ताह पर टिके रहेंगे या बाबू उन्हें पुराने ढर्रे पर लौटने के लिए मजबूर कर देंगे?
 
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