क्या अमरीका में एक महिला राष्ट्रपति बनेगी

Edited By ,Updated: 16 Apr, 2015 03:33 AM

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तो आखिर हिलेरी क्लिंटन ने घोषणा कर ही दी कि वह 2016 में अमरीका के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ेंगी।

(क्षमा शर्मा) तो आखिर हिलेरी क्लिंटन ने घोषणा कर ही दी कि वह 2016 में अमरीका के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ेंगी। देखा जाए तो यह एक महत्वपूर्ण घोषणा है। इससे पहले 2008 में  वह ओबामा से पराजित हो चुकी हैं लेकिन ओबामा ने उन्हें अपनी सरकार में जगह दी थी, उन्हें अपनी प्रतिद्वंद्वी की हैसियत से नहीं देखा था। हिलेरी पेशे से वकील हैं। भूतपूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हैं। ओबामा की सरकार में सैक्रेटरी ऑफ स्टेट्स के महत्वपूर्ण पद पर रह चुकी हैं। 

अमरीका में दो दलीय  प्रणाली है। ये दो दल हैं रिपब्लिकन्स और डैमोक्रेट्स। चुनावों के बारे में कहा जाता है कि वहां की जनता एक बार डैमोक्रेट्स को चुनती है तो दूसरी बार रिपब्लिकन्स को मौका देती है लेकिन  पिछले 15 सालों में दो बार जॉर्ज बुश राष्ट्रपति रहे और उनके  बाद ओबामा भी दो बार चुनाव जीते हैं और फिलहाल राष्ट्रपति हैं। उन्होंने हिलेरी के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के संबंध में कहा भी कि वह बहुत अच्छी और योग्य राष्ट्रपति साबित होंगी।

हिलेरी के सामने एक चुनौती यह भी है कि क्या तीसरी बार अमरीकी जनता किसी डैमोक्रेट को मौका देना चाहेगी और क्या हिलेरी का औरत होना इसमें मदद करेगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि राजनीति वेत्ताओं को पता है कि तीसरी बार शायद ही किसी डैमोक्रेट को चुनाव जीतने का मौका मिले। 

आखिर रिपब्लिकन्स इतने सालों से सत्ता से दूर हैं। वे भी तो एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे होंगे जीतने के लिए इसलिए डैमोक्रेट्स की तरफ से जानबूझ कर एक औरत को खड़ा कर दिया गया हो और मान लीजिए हिलेरी न जीत पाईं तो कोई याद नहीं करना चाहेगा कि लोगों ने डैमोक्रेट्स को तीसरी बार राज करने का मौका नहीं दिया। बल्कि कहा यह जाएगा कि हमने तो एक औरत को राष्ट्रपति बनवाने की कोशिश की थी मगर क्या करें, देश ही अभी इसके लिए तैयार नहीं है।

क्योंकि अमरीका औरतों की आजादी, उनके समान अधिकार, शिक्षा, रोजगार, राजनीति में उनकी भूमिका, ग्लास सीङ्क्षलग तोडऩे  आदि की चाहे जितनी बात करे, फाच्र्यून पत्रिका चाहे जितनी बार दुनिया की 100 ताकतवर औरतों की लिस्ट निकाले, मगर यह एक कड़वी सच्चाई है कि आज तक अमरीका में कोई भी महिला राष्ट्रपति नहीं बन सकी है।

जब ओबामा पहली बार चुनाव लड़ रहे थे तो वहां के मीडिया ने दो तरह की बहसें चलाई थीं। एक यह कि क्या इस बार राष्ट्रपति का चुनाव हिलेरी जीतेंगी या ओबामा जैसा कोई  अश्वेत? बहस का दूसरा मुद्दा यह था कि क्या अमरीका महिला राष्ट्रपति के लिए तैयार है? जैसे कि महिला का राष्ट्रपति होना कोई ऐसी बात है जो दुनिया में इससे पहले कभी नहीं हुई।

ओबामा के चुनाव जीतने के बाद कुछ कट्टरपंथी महिला ग्रुप्स ने कहा भी था कि अमरीका में बेहद नस्लवाद है। वे अश्वेतों के साथ रंग के आधार पर भेदभाव करते हैं। मगर जब औरतों या पुरुषों में चुनने की बात हो तो वे पुरुष को ही चुनते हैं। औरतों की बराबरी को आज भी वहां पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है। 

अमरीका का रिकार्ड देखें तो यह जानकर हैरत ही होती है कि आखिर कारण क्या है कि इतनीशिक्षा, इतनी पढ़ाई-लिखाई, इतनी बराबरी के दावे मगर आज तक कोई औरत वहां सर्वोच्च पद पर नहींपहुंची। जब कभी ऐसा मौका आता है तो बहस होने लगती है कि ऐसा करने को अमरीका तैयार है कि नहीं। 

पश्चिमी देश तीसरी दुनिया और एशियाई देशों को जैंडर सैंसेटाइजेशन पर अक्सर नसीहत देते रहते हैं। वे चाहे जितनी नसीहतें दें, मगर इन देशों का रिकार्ड महिलाओं को सत्ता सौंपने के मामले में अमरीका और बहुत से यूरोपियन देशों से बहुत अच्छा है। भारत में इंदिरा गांधी 1966 में इस देश की प्रधानमंत्री बन चुकी हैं। श्रीलंका की सिरीमाओ भंडारनायके, पाकिस्तान में  बेनजीर भुट्टो, बंगलादेश में शेख हसीना और खालिदा जिया आदि बहुत से नाम ऐसे हैं जहां औरत होने के नाते उन्हें सत्ता से दूर रखने की कोशिश नहीं की गई।

अमरीका में हिलेरी क्या औरत होने के कारण राष्ट्रपति नहीं बनेंगी। अगर ऐसा होगा तो यह वाकई शर्मनाक होगा। फिर किस मुंह से अमरीका दूसरों को औरतों की  बराबरी का पाठ पढ़ाएगा। ऐसी बातें उन दिनों की याद दिलाती हैं जब अमरीका की औरतें वोट का अधिकार मांग रही थीं। तब उनका खासा मजाक उड़ाया जाता था। 

कहा जाता था कि ये औरतें वोट देने का अधिकार क्यों मांग रही हैं। उनके खिलाफ लेख दर लेख छपते थे। प्रदर्शन होते थे। जो महिलाएं वोट के अधिकार के आंदोलन में शामिल थीं, उनका तरह-तरह से अपमान किया जाता था। तरह-तरह के कार्टून्स बनाए जाते थे। लोग औरतों का मजाक उड़ाते कहते थे-ये औरतें, चौके-चूल्हे से बाहर निकलकर क्या करेंगी। इनकी जगह तो घर में है। आखिर इन्हें वोट का अधिकार क्यों चाहिए। सिर्फ वोट देने का अधिकार प्राप्त करने के लिए वहां की औरतों को  70 साल तक संघर्ष करना पड़ा था। वोट का अधिकार न होता तो सोचिए कि हिलेरी चुनाव भी नहीं लड़ सकती थीं लेकिन औरत होने के नाते वह जीत ही जाएंगी, कहा नहीं जा सकता।

वैसे जब देखिए तब अमरीका के लोग हमें नसीहतें देते रहते हैं कि औरतों को अधिकार दिए बिना किसी देश का भला नहीं हो सकता। वे ऐसा ज्ञान उन देशों को नहीं देते जहां औरतों को मामूली मानव होने के अधिकार भी प्राप्त नहीं हैं और यदि औरतों के अधिकार की इतनी ही ङ्क्षचता है तो अमरीका के लोगों को चाहिए कि वे अगली बार किसी औरत जोकि हिलेरी होंगी, को राष्ट्रपति बनाएं। हिलेरी घोषणा कर ही चुकी हैं कि वह अगली बार राष्ट्रपति का चुनाव लडऩा चाहती हैं।

हालांकि बहुत से विचारक यह मानते हैं कि अमरीका अभी उस मानसिकता से बाहर ही नहीं निकला है, जहां औरतों का काम सिर्फ घर चलाना और बच्चे पैदा करना है। इससे ज्यादा असहिष्णुता और क्या हो सकती है। यदि ओबामा की पत्नी मिशेल के फैशन आइकन बनने से अमरीकी खुश हो सकते हैं, तो हिलेरी जैसी महिला के राष्ट्रपति बनने से तो और खुशी होनी चाहिए। 

क्या औरतें सिर्फ सजने-संवरने और पतिदेव के पीछे चलने के लिए ही हैं। यहां प्रसंगवश यह बताते चलें कि हिलेरी के पति और भूतपूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पर जब उनकी ही एक सहयोगी मोनिका लेविंस्की ने सैक्सुअल हरासमैंट का आरोप लगायाथा, तो यह जानते हुए भी कि क्लिंटन गलती पर थे,हिलेरी उनके पीछे मजबूत दीवार की तरह खड़ी रही थीं। 

तब कई लोगों ने कहा था कि पत्नी आखिर पत्नी ही होती है। पति पर कोई विपत्ति आए तो वह रॉक ऑफ जिब्राल्टर बन जाती है। तब बहुतों को हिलेरी में किसी भारतीय पत्नी के दर्शन हुए थे। लोग मजाक में कहते थे कि किस ने कह दिया कि सती सावित्री होने का ठेका सिर्फ भारत के पास है। हिलेरी को देख लो। अगर हिलेरी 2016 का चुनाव जीतती हैं तो यह जीत सिर्फ अमरीका ही नहीं पूरी दुनिया के लिए ऐतिहासिक होगी।

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