भूकम्प आया तो दिल्ली हो जाएगी ‘जमींदोज’

Edited By ,Updated: 27 Apr, 2015 12:26 AM

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यदि भूकम्प थोड़ा तेज आया और उसका केन्द्र दिल्ली-नेपाल के बीच हुआ या दिल्ली के इर्द-गिर्द हुआ तो पूरी दिल्ली तहस-नहस होकर जमींदोज हो जाएगी।

(कृष्णमोहन सिंह): यदि भूकम्प थोड़ा तेज आया और उसका केन्द्र दिल्ली-नेपाल के बीच हुआ या दिल्ली के इर्द-गिर्द हुआ तो पूरी दिल्ली तहस-नहस होकर जमींदोज हो जाएगी। यहां की केवल गिनी-चुनी इमारतें ही ऐसी हैं जो भूकम्प के झटके को एक सीमा तक सह पाएंगी और दिल्ली का यमुना से सटा इलाका तो पूरी तरह से रेतीली जमीन की तहों पर बसा है जो ऐसे भरभराएगा जैसे ताश के पत्ते।  

कोलकाता, चेन्नई, मुंबई की भी स्थिति निरापद नहीं है। कहीं न तो भवन बने हैं और भूकम्प के मद्देनजर न ही आपदा प्रबंधन का इंतजाम है। 2001 में गुजरात में आए भूकम्प के बाद एक आपदा प्रबंधन विभाग खोला गया था जो खुद ही विपदा में है। उस पर सरकार का कोई ध्यान ही नहीं है। सब कुछ राम भरोसे चल रहा है।
 
गुजरात फोरैंसिक साइंस इंस्टीच्यूट/ लैबोरेटरी/ यूनिवर्सिटी गुजरात सरकार की : दस्तावेज, वीडियो, फोन पर बातचीत रिकार्ड ओरिजिनल है या उसमें छेड़छाड़ करके नया दस्तावेज, टेप बनाया गया है, इसकी जांच कराने के लिए गुजरात फोरैंसिक साइंस इंस्टीच्यूट लैब में भेजा जाता है, जो गुजरात सरकार की है। वह अब विश्वविद्यालय हो गया है। इस विश्वविद्यालय के फरवरी 2009 से महानिदेशक हैं डा. जे.एम. व्यास। इनका यह महानिदेशक पद कुलपति के बराबर है। व्यास इससे पहले 1993 से 2009 तक डायरैक्टोरेट आफ गुजरात फोरैंसिक साइंस में निदेशक रहे और अब भी इसका एडिशनल चार्ज इनके पास है। इस तरह यह दो पदों पर विराजे हुए हैं। 
 
सूत्रों का कहना है कि यह नरेन्द्र मोदी के बहुत खास हैं। इस फोरैंसिक साइंस इंस्टीच्यूट या वि.वि. की गवॄनग बाडी आदि में ज्यादातर राज्य के बड़े पुलिस अफसर और कुछ रिटायर जज, नौकरशाह आदि हैं  जिनमें से कुछ को छोड़ बाकी मोदी के कीर्तनी के तौर पर जाने जाते हैं। इसके चलते जो भी तटस्थ लोग राज्य सरकार के इस फोरैंसिक साइंस इंस्टीच्यूट के बारे में अच्छी तरह जानते हैं वे किसी भी महत्वपूर्ण राजनीतिक भ्रष्टाचार के मामले में दस्तावेज, सी.डी., वीडियो आदि की जांच यहां से कराने के पक्ष में नहीं रहते।
 
और यदि दस्तावेज भाजपा शासित राज्यों के किसी बड़े सत्ताधारी, मंत्रियों, उनके परिजनों, पार्टी नेताओं, उनके आकाओं के घोटालों के आरोपों से संबंधित हों और उसे गैर भाजपा दल के नेताओं ने दिया हो तब तो और भी नहीं। तब दस्तावेजों की जांच विदेश की फोरैंसिक लैबोरेटरी से कराने की सलाह दी जाती है।
 
‘आप’ को फंसाने के लिए गजेन्द्र सिंह की मौत को अच्छा मौका मान रही भाजपा : चर्चा है कि भाजपा जंतर-मंतर पर पेड़ से लटक  कर राजस्थान के किसान गजेन्द्र सिंह की आत्महत्या या मौत को आम आदमी पार्टी के नेताओं को फंसाने, निपटाने का अच्छा मौका मान रही है। तभी तो किसान गजेन्द्र के इस तरह मरने के बाद भी केन्द्र सरकार वर्षा, आंधी-तूफान से जिन किसानों की फसल बर्बाद हुई है उनकी जल्दी से जल्दी आर्थिक मदद करने का इंतजाम नहीं करके तरह-तरह के राजनीतिक तमाशे व जांच की खानापूर्ति कर रही है। 
 
भाजपा व नरेन्द्र मोदी सरकार यह नहीं कह रही हैं कि यदि जंतर-मंतर पर अरविन्द केजरीवाल की रैली के दौरान किसान गजेन्द्र ने अपनी फसल बर्बादी के बारे में ध्यान खींचने के लिए पेड़ पर चढ़कर फांसी लगा ली तो इसके लिए यदि अरविंद  केजरीवाल दोषी हैं तो उससे कई गुना दोषी राजस्थान की भाजपानीत वसुंधरा सरकार और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार हैं। गजेंद्र सिंह राजस्थान का किसान था।
 
वर्षा, ओले, तूफान से उसकी गेहूं  की फसल बर्बाद हुई तो वसुंधरा सरकार ने मुआवजा देने की घोषणा करके उसको व अन्य किसानों को जल्दी से जल्दी राहत दिलाने के लिए क्यों नहीं गांव-गांव में अधिकारियों, कर्मचारियों के कैम्प लगवा कर हर्जाना दिलवाया। क्यों नहीं केंद्र की मोदी सरकार ने ऐसे किसानों को मुआवजा देने की घोषणा करके उसे बिना घूसखोरी के दिलवाने का इंतजाम किया।
 
और रही बात जंतर-मंतर पर गजेंद्र सिंह को पेड़ पर चढ़कर गले में  गमछा बांध कर लटक जाने के लिए उकसाने वालों को पहचानने व पकडऩे की तो जब ऐसा कोई कर रहा था तो उस समय जंतर-मंतर पर तैनात पुलिसकर्मी क्या तमाशा देखने के लिए खड़ेे थे? उन पुलिस कर्मियों ने क्यों नहीं गजेंद्र को बचाया? दिल्ली पुलिस तो केंद्र की मोदी सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन है, ऐसे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से बहुत ज्यादा जिम्मेदार तो केंद्र की मोदी सरकार, केंद्रीय गृह मंत्रालय, उनकी दिल्ली पुलिस और राजस्थान की भाजपा सरकार हैं। देश में प्रतिदिन लगभग 40 किसान आत्महत्या कर रहे हैं, कोई सत्ताधरी नेता या उनके परिजन या उनके अघोषित भागीदार उद्योगपति या चहेते उद्योगपति या अफसर नहीं।
 
गरीब किसान की मौत पर राजनीतिक रोटियां सेंकने के बजाय यदि राज्य व केंद्र के सत्ताधारी दल किसानों को हफ्ते भर में मुआवजा दिला दें, उनकी जमीन को कभी सेज के नाम पर, कभी उद्योग, सड़क आदि के नाम पर औने-पौने दाम पर सरकारी अफसरों व गुंडों की मदद से जबरिया लेने पर रोक लगाएं तब तो लगेगा कि ये गरीब, किसान हितैषी हैं। वर्ना इनके व्यवहार व करनी के प्रमाण यही साबित कर रहे हैं कि गरीब किसानों की मौत पर ये राजनीतिक दल बेशर्मी से राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं।
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