Edited By ,Updated: 11 Jun, 2015 12:56 AM
कितना अजीब ख्याल है पाठकों के लिए और वह भी खास तौर पर पंजाबियों के लिए। दुर्भाग्यवश मास्टर तारा सिंह को एक साम्प्रदायिक और झगड़ालू नेता के रूप में ही प्रचारित किया गया है।
(तरलोचन सिंह): कितना अजीब ख्याल है पाठकों के लिए और वह भी खास तौर पर पंजाबियों के लिए। दुर्भाग्यवश मास्टर तारा सिंह को एक साम्प्रदायिक और झगड़ालू नेता के रूप में ही प्रचारित किया गया है। मीडिया जब प्रचार करता है तो जनता में किसी राजनीतिक या धार्मिक नेता की छवि अपनी इच्छानुसार ही सुदृढ़ करता है।
आज जो ऐतिहासिक तथ्य मैं प्रस्तुत कर रहा हूं, वे विचारोत्तेजक हैं। हमारी याददाश्त बहुत दीर्घकालिक है। लाला जगत नारायण जी को पंजाब में से राज्यसभा सदस्य अकाली पार्टी की सहायता से बनाया गया था। मास्टर तारा सिंह की एक अन्य समझदारी देखें कि कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत भी राज्यसभा में अकाली दल के सहयोग से ही पहुंचे थे।
28 मई को विनायक दामोदर सावरकर का जन्मदिन था। उनकी तस्वीर संसद के केन्द्रीय हाल में लगी हुई है। इसे अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में लगाया गया था। कांग्रेस पार्टी पक्के तौर पर सावरकर के विरुद्ध है। यह पार्टी हमेशा यह प्रचार करती रही है कि स्वतंत्रता आंदोलन में केवल इसी के नेता और वर्कर ही कुर्बानियां करते रहे हैं। कांग्रेसी नेता जनसंघ और अन्य हिन्दू संगठनों को उलाहना दिया करते थे कि इनके नेताओं ने आजादी के लिए कुछ भी नहींकिया।
लेकिन जनसंघ (अब भाजपा) के पास सबसे बड़ी तोप वीर सावरकर ही थे, जिनकी कुर्बानियां अद्वितीय थीं। इसलिए कांग्रेसी सदा ही सावरकर के विरुद्ध कुछ न कुछ ढूंढते रहते थे।
वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक (महाराष्ट्र) में हुआ था। पढ़ाई के लिए वह लंदन गए और वहां ‘बार एट लॉ’ की डिग्री पास की। वहीं से ही उन्होंने अंग्रेज सरकार के विरुद्ध प्रचार करना शुरू कर दिया। बहुत भाषण करते और साहित्य बांटा करते थे। आखिर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करके भारत भेजने का फैसला किया। मार्च 1910 में लंदन से वीर सावरकर को समुद्री जहाज में चढ़ा दिया गया। जब यह जहाज फ्रांस की मार्सलीज बंदरगाह पर खड़ा था तो वह समुद्र में कूद गए और बच निकले लेकिन बाद में फ्रांस की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और भारत भेज दिया। यहां आकर उन पर सरकार का तख्ता पलटाने के आरोप में मुकद्दमा चला और उन्हेें 25 वर्ष की काले पानी की सजा हुई थी।
1911 में उन्हें अंडेमान की सैलुलर जेल की एक काल-कोठरी में बंद कर दिया गया और सबसे अधिक तंग किया गया। 13 साल तक उन्हेें बिल्कुल अकेले रखा गया और किसी से भी मुलाकात नहीं करने दी गई। क्या यह कुर्बानी अद्वितीय नहीं? मैंने जेल की वह कोठरी, जहां वह कैद रहे थे, जब देखी तो रौंगटे खड़े हो गए।
1924 में उन्हें रिहा किया गया तो उन्होंने बाहर आकर हिन्दू महासभा गठित की और पूरे देश में घूम कर इसका प्रचार किया। जब दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ तो उन्होंने कांग्रेस की युद्ध नीति का विरोध किया। उन्होंने भारत विभाजन का भी डटकर विरोध किया था और पाकिस्तान के सृजन के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की। उन्हीं दिनों उनका मिलाप मास्टर तारा सिंह से हुआ। मास्टर जी हिन्दू महासभा के समागम में शामिल हुए थे। मास्टर जी युद्ध में सिखों को भर्ती करवाते थे। वीर सावरकर भी भारतीयों को अधिक से अधिक संख्या में सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित करते थे। दोनों ही नेता पाकिस्तान के सृजन के विरुद्ध डटे रहे थे।
30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या हो गई। उस समय जो नेता गिरफ्तार किए गए, उनमें वीर सावरकर भी शामिल थे। यह मुकद्दमा दिल्ली के लाल किले में चलाया गया था। गांधी का हत्यारा गोडसे भी आरोपियों में शामिल था। उस समय आर.एस.एस. पर प्रतिबंध लगाने के सरकारी आदेश दिए गए थे। सरकार की नीति के कारण उस समय अन्य सभी नेता तो दुबक गए लेकिन मास्टर तारा सिंह ने वीर सावरकर की सहायता की घोषणा कर दी।
मास्टर जी ने बयान दिया कि सावरकर निर्दोष हैं। वह महात्मा गांधी के विरुद्ध अवश्य हैं लेकिन उनकी हत्या में शामिल नहीं हो सकते। मास्टर जी स्वयं दिल्ली पहुंचे और वकील खड़े किए। पूरा खर्च उन्होंने अपने पास से किया। यहीं बस नहीं, मास्टर जी स्वयं कचहरी जाते और वहां बैठते, जोकि इस बात का प्रमाण था कि वह सावरकर के दोस्त थे। कांग्रेस सरकार ने इसका बुरा मनाया और मास्टर जी के विरुद्ध प्रचार किया कि वह गांधी के हत्यारे के साथी हैं। लेकिन जब तक वीर सावरकर मुकद्दमे से बरी नहीं हो गए, मास्टर जी हर प्रकार की सहायता करते रहे।
मैंने संसद में भाजपा के मंत्रियों को ये तथ्य बताए तो वे हैरान रह गए। राजनाथ सिंह, गडकरी, सुषमा स्वराज, अरुण जेतली भी वहां उपस्थित थे। उस दिन मैं अपने किसी काम के संबंध में पंजाब भाजपा प्रदेशाध्यक्ष कमल शर्मा तथा मंत्री मदन मोहन मित्तल के साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को मिला था। उन्होंने ये ऐतिहासिक तथ्य सुनकर अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त की।
कांग्रेस सरकार ने कुछ माह बाद मास्टर तारा सिंह को गिरफ्तार कर लिया था, जब वे दिल्ली में एक रैली को संबोधित करने के लिए जा रहे थे। स्वतंत्र भारत में यह प्रथम राजनीतिक गिरफ्तारी थी। वीर सावरकर का कमाल देखें कि वह उस समय के विख्यात वकील और हिन्दू महासभा नेता एन.सी. चटर्जी (माकपा नेता व पूर्व लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी के पिता) को साथ लेकर मास्टर जी के वकील बन गए।
वीर सावरकर ने भी दोस्ती की मर्यादा अदा की लेकिन यह एक अजीब करिश्मा ही था कि मास्टर जी सिखों के अधिकारों के लिए लडऩे वाले और वीर सावरकर हिन्दू महासभा के अध्यक्ष-दोनों इतनी गहरी दोस्ती का उदाहरण बन गए।