‘आपातकाल’ के चंद संस्मरण

Edited By ,Updated: 27 Jun, 2015 02:20 AM

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25 जून 1975 को मध्यरात्रि में देश पर आपातकाल लाद दिया गया। 26 जून प्रात: तक समस्त बड़े नेतागण सलाखों के पीछे पहुंच चुके थे।

(डा. राजीव बिन्दल): 25 जून 1975 को मध्यरात्रि में देश पर आपातकाल लाद दिया गया। 26 जून प्रात: तक समस्त बड़े नेतागण सलाखों के पीछे पहुंच चुके थे। अखबारों पर सैंसरशिप लागू हो गया था। अखबारों के पन्ने खाली आने लगे। देश भर में हो क्या रहा है? कौन कहां है? किस जेल में है? किस हाल में है? इसका आभास मात्र नहीं हो पाया। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूज्य सरसंचालक बाला साहेब देवरस व अन्य बड़े लोग जेलों में थे। प्रारंभ के दिनों में केवल एक संदेश आया कि स्वयंसेवक चंद दिन अपने आपको बचाकर रखें, आगामी योजना भेजी जाएगी। आपातकाल का डट कर विरोध करने का निर्णय हुआ, संगठन को अनेकानेक माध्यमों से बढ़ाने का संदेश आया, शाखाओं का स्वरूप बदला गया, सूचनाओं का आदान-प्रदान शुरू हुआ, देखते ही देखते पूर्ण तंत्र विकसित हो गया। सम्पूर्ण संगठन दुगनी ताकत से तानाशाही से मुकाबले के लिए तैयार था। 
 
अखबारों में खबरें नहीं थीं, अन्य कोई मीडिया नहीं था, रेडियो केवल सरकार का गुणगान करने के लिए थे। ऐसे में संदेश आया कि प्रतिदिन महत्वपूर्ण खबरें बिन्दु रूप में भेजी जाएंगी, उन्हें प्रचारित-प्रसारित करना है। मैं उन दिनों आयुर्वैदिक कालेज कुरुक्षेत्र में तृतीय वर्ष का छात्र था, संघ विभिन्न दायित्वों को निभाता चला आ रहा था। दायित्व मिला कि खबरों को छापना व उन्हें किसी भी रूप में महत्वपूर्ण लोगों तक पहुंचाना होगा। बहुत बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था, चप्पे-चप्पे पर सरकारी जासूस रहते थे, जिस भी व्यक्ति से आप बात कर रहे हैं, वह कब मुखबरी कर देगा पता नहीं था, केवल और केवल पुलिस का राज था।
 
हरियाणा में चौधरी बंसी लाल का राज था जोकि उन दिनों श्रीमती इंदिरा  जी के ‘राइट व लैफ्ट’ थे और सर्वाधिक ताकत से जहां आपातकाल लगाया गया था, वह हरियाणा था। संघ का आदेश था, देश का सवाल था, युवा अवस्था एवं विद्यार्थी जीवन-शहर थानेसर के एक किनारे गौशाला के साथ एक कमरा किराए पर लिया और एक साइक्लोस्टाइल मशीन लगाई गई। 
 
उसी कमरे में रहना शुरू कर दिया। खबरों का एक पर्चा आता था उस पर्चे की सामग्री को ढाल कर रातों-रात साइक्लोस्टाइल पर छापना और प्रात:काल 4 बजे से पहले कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय एवं महत्वपूर्ण लोगों के यहां उस पर्चे को पहुंचाना। रात्रि 2 से 4 बजे तक साइकिलों पर यह पर्चा लेकर भोर होने से पहले घरों में डालकर वापिस अपने कमरे में सो जाना। दिनभर कालेज जाना, किसी को शंका न हो जाए संभल कर रहना। पुलिस व प्रशासन की नींद हराम हो गई थी। एक के बाद एक व्यक्ति पकड़ा जाने लगा, गीता विद्यालय के अनेक अध्यापक, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अनेक प्राध्यापक पकड़े गए, सबको जेल मेें डाल दिया गया।
 
कई महीने ऐसा ही चलता रहा। हमारी कड़ी टूटने लगी, एक-एक करके लोग जेल में पहुंचने लगे, जो भी गिरफ्तार होता उसकी भारी पिटाई होती, कुछ लोग मार को सहन कर लेते, कुछ उगल देते। अंत में वह दिन आया जब पुलिस मुझे ढूंढती हुई कालेज पहुंची। मेरी आंखों से वह दृश्य ओझल नहीं होता, किस तरह वर्दी व बिना वर्दी वाले 100 से अधिक लोगों ने कालेज को घेर लिया, आवाजें लग रही थीं, कहां है बिन्दल, कहां है बिन्दल? विद्याॢथयों ने डरते व सहमते हुए मेरी ओर इशारा किया, फिर क्या था, अनके हाथ एक साथ मेरी ओर बढ़े, और उठा लिया गया। 15 दिन का पुलिस थाना थानेसर में पुलिस रिमांड, पुलिस के कहर अविस्मरणीय है। गिरफ्तारियों की अंतिम कड़ी बना बिन्दल। पुलिस संतुष्ट थी कि उन्हें असली गुनहगार मिल गया, जिसके कमरे से मशीन मिल गई, छपी सामग्री मिल गई।
 
पुलिस ने हमारे घर पर, सोलन संदेश भेजा कि तुम्हारा लड़का थाने में है, बड़े भाई साहब वैद्य रामकुमार बिन्दल मुझे मिलने थाने में आए। भाई साहब की उंगली पकड़ कर हम शाखा गए थे। भाई साहब भूमिगत रहकर संगठन का कार्य कर रहे थे। मुझे हवालात में मिले, हालचाल पूछा और जो कुछ मुझे कहा वह मेरे जीवन को सदा-सदा के लिए चिरागमय करा गया।
 
उन्होंने कहा हिम्मत से लडऩा, कभी माफी मत मांगना, यदि माफी मांग कर आए तो घर वापस मत जाना। सीना चौड़ा हो गया, हमारे काम पर मोहर लग गई थी, उस दिन के बाद से जेल के 4-5 महीने मानो मंदिर में बीत गए हों।
 
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