जंगल की आग की तरह फैली संजय द्वारा इंदिरा को ‘थप्पड़ मारने’ की खबर

Edited By ,Updated: 28 Jun, 2015 01:40 AM

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जब आपातकाल थोपा गया तो उस समय पुलिट्जर पुरस्कार विजेता वाशिंगटन पोस्ट का पत्रकार लेविस एम. साइमन्स दिल्ली में तैनात था।

(एजाज अशरफ): जब आपातकाल थोपा गया तो उस समय पुलिट्जर पुरस्कार विजेता वाशिंगटन पोस्ट का पत्रकार लेविस एम. साइमन्स दिल्ली में तैनात था। उसने समाचार भेजा था कि दिल्ली में एक डिनर पार्टी दौरान संजय गांधी ने इंदिरा गांधी को 6 बार थप्पड़ मारा था। 

साइमन्स ने यह समाचार एक बेनाम सूत्र के हवाले से तैयार किया था। थप्पड़ मारने की यह घटना आपातकाल की घोषणा होने से पूर्व एक प्राइवेट डिनर पार्टी में हुई। जैसा कि पत्रकारों में प्रचलन है, साइमन्स ने भी तत्काल इस घटना के बारे में नहीं लिखा बल्कि भविष्य में प्रयुक्त करने के लिए इसे संभाल लिया। 
 
एक साक्षात्कार दौरान साइमन्स ने मुझे बताया कि वास्तव में उनके 2 सूत्र थे और दोनों ही एक-दूसरे को जानते थे तथा इस डिनर में भी दोनों उपस्थित थे। उनमें से एक को जब हमारे घर आने का मौका मिला तो उसने मेरे और मेरी पत्नी के साथ थप्पड़ वाली घटना का उल्लेख किया। यह बात आपातकाल की घोषणा होने से एक दिन पहले की है। दूसरे सूत्र ने इस घटना की पुष्टि की थी। यह पुष्टि तब हुई जब वे संजय गांधी और उनकी माता के आपसी संबंधों के बारे में चर्चा कर रहे थे। 
 
वरिष्ठ पत्रकार कूमी कपूर ने अभी-अभी प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘एमरजैंसी : ए पर्सनल हिस्ट्री’ में लिखा है कि यह समाचार मौखिक संदेशों के माध्यम से जंगल की आग की तरह फैल गया। बेशक सैंसरशिप के कारण किसी भी भारतीय समाचार पत्र ने साइमन्स द्वारा निकाली गई खबर को प्रकाशित नहीं किया था फिर भी देश भर में इसका आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा था। भारतीय समाज में ‘गपशप’ की प्रवृत्ति बहुत ही शक्तिशाली है और इसने सैंसरशिप को भी मात दे दी थी। वाशिंगटन पोस्ट के बाद यह समाचार अन्य कई विदेशी अखबारों में भी प्रकाशित हुआ। इसी संबंध में प्रतिष्ठित लेखक वेद मेहता का एक आलेख भी ‘न्यूयार्कर मैगजीन’ में प्रकाशित हुआ था। 
 
कूमी कपूर का कहना है कि इस कहानी की सच्चाई संदिग्ध है क्योंकि न तो किसी सूत्र का नाम लिया गया था और न ही किसी ने यह समाचार प्रकाशित होने के बाद सार्वजनिक रूप में इसकी पुष्टि की है। संबंधित डिनर में अन्य कई व्यक्ति भी शामिल रहे होंगे। क्या उनमें से किसी ने कालांतर में इस समाचार की पुष्टि की है? वैसे साइमन्स ने यह समाचार तैयार करने के लिए कभी भी खेद व्यक्त नहीं किया। 
 
कपूर के अनुसार उनके ‘सूत्रों’ की  विश्वसनीयता और ईमानदारी पर आज तक उंगली भी नहीं उठी। साइमन्स का मानना है कि जब भारत में इंदिरा गांधी और उनके बेटे की तूती बोल रही थी, ऐसे समय में उनके आपसी संबंधों पर प्रकाश डालने वाला यह समाचार बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। 
 
साइमन्स ने साक्षात्कार में बताया कि आपातकाल समाप्त होने के बाद भी उन्हें देश-विदेश में कई बार अपने ‘सूत्रों’ से मिलने का मौका मिला है लेकिन अभी भी इनकी पहचान सार्वजनिक करने का उसका कोई इरादा नहीं क्योंकि उसने पहले दिन से ही उन्हें ऐसा न करने का वचन दे रखा है। साइमन्स ने कहा कि अपने अन्य कई ‘समाचार सूत्रों’ की गोपनीयता बनाए रखने के लिए भी उसने ऐसे ही वचन का पालन किया था। उसने कहा कि मैं अपने वायदे पर हमेशा पूरा रहूंगा, क्योंकि एक इन्सान और भरोसेमंद पत्रकार के रूप में मेरी प्रतिष्ठा के लिए यह बात जरूरी है। 
 
साइमन्स ने बताया कि उन्हें 5 घंटे के अंदर-अंदर भारत को छोड़ जाने का आदेश दिया गया। वैसे उनका दावा है कि इस आदेश का थप्पड़ मारने का समाचार से कोई संबंध नहीं था, क्योंकि यह समाचार अभी प्रकाशित नहीं हुआ था। उसने बताया कि यह समाचार वास्तव में उस ‘स्टोरी’ से संबंधित था, जिसमें भारतीय सेना के कई अधिकारियों ने उसे बताया था कि वे  न तो आपातकाल पसंद करते हैं और न ही इंदिरा गांधी के रवैये को। 
 
इस समाचार के बाद साइमन को बंदूकधारी पुलिसियों ने उनके घर/ कार्यालय से गिरफ्तार किया और सीधे आव्रजन कार्यालय में ले गए, वहां मौजूद अधिकारी, जिसके साथ उसका नियमित तौर में कई वर्षों से मेल-जोल था, उसने उसके साथ बहुत भद्र व्यवहार किया। उस अधिकारी ने उसे बताया कि दिल्ली से रवाना होने वाले प्रथम विमान पर उसे उसी दिन रवाना कर दिया जाएगा। जब साइमन्स ने इसका कारण पूछा तो अधिकारी ने पहले अपनी हथेलियां आंखों पर रखीं, फिर कानों पर और अंत में मुंह पर। 
 
5 घंटे बाद अमरीकी दूतावास के अधिकारी की संगत में उसे हवाई अड्डे ले जाया गया। वहां भारतीय सीमा शुल्क विभाग के एक अधिकारी ने उनकी  लगभग आधा दर्जन डायरियां जब्त कर लीं जो कई माह बाद उन्हें वापस मिलीं। इन डायरियों में प्रत्येक नाम को बहुत सलीके से लाल पैन से रेखांकित किया गया था। इन डायरियों में जिन व्यक्तियों के नाम दर्ज थे, उनमें से अधिकतर को जेलों में बंद कर दिया गया था। उसके बाद साइमन्स ने यह कसम खा ली कि किसी भी संवेदनशील समाचार से संबंधित व्यक्तियों के नाम डायरियों पर दर्ज नहीं करेगा।  साइमन्स ने बताया कि उसे दिल्ली से बैंकाक जाने वाले विमान पर चढ़ा दिया गया था और इसी सफर दौरान उसने ‘थप्पड़ प्रकरण’ वाला समाचार कलमबद्ध किया था। 
 
साइमन्स ने बताया कि उस पर और उसकी पत्नी पर आपातकाल का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा था। फिर भी उसका कहना है कि उसने सैंसरशिप का पालन न करने का दृढ़ संकल्प लिया था और इसके लिए किसी प्रकार के भी नतीजे भुगतने को तैयार था। 
 
साइमन्स को बेशक देश से बाहर निकाल दिया गया था, लेकिन उसकी पत्नी 2 छोटे बच्चों सहित पीछे रह गई  ताकि वाशिंगटन पोस्ट ब्यूरो को बंद करने की औपचारिकताएं पूरी कर सकें। पुलिस ने उनके इस काम को भी बहुत दूभर बना दिया क्योंकि दम्पति का टैलीफोन काटने के अलावा उनके बैंक अकाऊंट भी सील कर दिए गए थे और उनके घर के बाहर सशस्त्र गार्ड बिठा दिए गए थे, जो उनसे मिलने आने वाले हर व्यक्ति के वाहन का नम्बर नोट कर लेते थे। यहां तक कि साइमन्स की पत्नी और छोटी बेटी को भयभीत करने से भी बाज नहीं आते थे। 
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