Edited By ,Updated: 04 Jul, 2015 03:20 AM
पश्चिम बंगाल में 2016 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। प्रदेश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि उन चुनावों में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का पलड़ा भारी रहेगा।
(बचन सिंह सरल): पश्चिम बंगाल में 2016 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। प्रदेश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि उन चुनावों में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का पलड़ा भारी रहेगा। इस संबंध में माक्र्सवादियों ने अपनी कमजोरी खुद ही जाहिर कर दी है। माकपा के प्रदेश सचिवालय के सदस्य कामरेड गौतम देब ने सुझाव दिया है कि इन चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को हराने के लिए वाममोर्चा, कांग्रेस और अन्य वामपंथी पार्टियों का गठजोड़ (महाजोट) बनाया जाएगा।
कामरेड गौतम देब का कहना है कि वाममोर्चे ने 4 वर्ष तक यू.पी.ए.-1 की सरकार को समर्थन दिया था और सैद्धांतिक मतभेद होने के बावजूद कई सांझा आंदोलन चलाए थे, इसलिए ममता बनर्जी को हराने के लिए कांग्रेस के साथ गठजोड़ बनाने में कोई हर्ज नहीं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी माना है कि वाम पार्टियों में अब उतनी शक्ति नहीं जितनी 2011 में थी, जब उन्हें 35 साल लगातार सत्ता में रहने के बावजूद पराजय का मुंह देखना पड़ा था। इसके साथ ही कामरेड देब ने यह भी कहा है कि भारतीय जनता पार्टी के अभ्युदय से वाम मोर्चे को बहुत धक्का लगा है।
‘महाजोट’ बनाने के कामरेड गौतम देब के सुझाव को कहीं से भी सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली। लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि चाहे वह किसी भी तरह पार्टी मामलों से संबंधित नहीं हैं, लेकिन इस समय प्रदेश में जो स्थिति बनी हुई है, उसके मद्देनजर लोकतंत्र की रक्षा के लिए हमख्याल पार्टियों के बीच तालमेल की घोर आवश्यकता है।
दूसरी ओर माकपा के महासचिव ने कहा है कि ‘‘पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए माकपा और कांग्रेस के बीच कोई गठजोड़ नहीं होगा। इसलिए माकपा हाल में ही हुए अपने सम्मेलन के प्रस्ताव पर कायम है।’’ कामरेड सीताराम येचुरी का यह भी कहना है कि कुछ सांझे मुद्दों पर कांग्रेस से मेल-जोल को छोड़ माकपा का कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं होगा।
माकपा को छोड़कर जहां तक वाम मोर्चे के अन्य घटकों का सवाल है, उनमें से किसी को भी कांग्रेस से गठजोड़ बनाने का सुझाव स्वीकार नहीं। भाकपा, आर.एस.पी. और फारवर्ड ब्लाक का कहना है कि कांग्रेस से गठजोड़ बनाने का सुझाव माकपा का निजी है। उन्होंने वाम मोर्चे की मीटिंग में इस पर चर्चा कराने की मांग की है।
उनका यह भी कहना है कि वाम मोर्चे को सशक्त बनाने की संभावनाएं ढूंढी जानी चाहिएं। दूसरी ओर कांग्रेस भी दबे स्वर में अपनी कमजोरी स्वीकार कर रही है। पार्टी के एक नेता मानस भुइयां का कहना है कि यदि कांग्रेस माकपा नीत गठजोड़ में शामिल होती है तो इसकी वोट शक्ति को देखते हुए इसे वाम मोर्चे में दब्बू बनकर ही रहना होगा। ऐसी स्थिति में वाम मोर्चा और कांग्रेस के बीच किसी महाजोट की कोई संभावना नहीं।
वाम मोर्चा कांग्रेस पर आरोप लगा रहा है कि कांग्रेस ही उन आर्थिक सुधारों की जननी है, जिन्होंने आम आदमी के लिए मुसीबतें खड़ी की हैं। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि वाम मोर्चा शासन दौरान कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं पर इतने अत्याचार हुए कि अब कोई भी कांग्रेसी कार्यकत्र्ता सच्चे मन से वाम मोर्चा-कांग्रेस गठजोड़ के लिए काम नहीं करेगा।
माकपा और कांग्रेस दोनों ही निराश और हताश हैं। कांग्रेस के कई वर्तमान सांसद पार्टी छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में चले गए हैं। स्थितियां यह संकेत देती हैं कि 2016 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ही हावी रहेगी। राज्य के अंदर हाल ही में हुए म्यूनिसीपल कमेटियों और निगम चुनावों के नतीजे इसी बात का संकेत हैं।
कोलकाता नगर निगम में जहां तृणमूल की सीट संख्या में 14 की वृद्धि हुई है, वहीं सिलीगुड़ी की म्यूनीसिपैलिटी को छोड़कर माकपा और उसका वाम मोर्चा कहीं भी अपना शक्ति प्रदर्शन नहीं कर सके।
तृणमूल कांग्रेस की सरकार बेशक जनाकांक्षाओं के अनुरूप काम नहीं कर सकी तो भी पार्टी नेता ममता बनर्जी की सादगी की हर कोई तारीफ करता है। उनकी सरकार को केन्द्र से आशानुरूप सहयोग नहीं मिला है, लेकिन सीमित आर्थिक संसाधनों के चलते सरकार ने जो कुछ किया है, उसकी प्रशंसा हो रही है।
ममता बनर्जी आज भी उसी झोंपड़ीनुमा घर में रहती हैं, जहां वह मुख्यमंत्री बनने से पहले रहा करती थीं। वह अपने लिए छोटी कार ही प्रयुक्त करती हैं। कार पर कोई लाल बत्ती नहीं लगी होती और न ही इसके आगे-पीछे हूटर वाली पुलिस की कोई गाड़ी होती है लेकिन फिर भी पुलिस सतर्क रहती है कि मुख्यमंत्री का कोई पता नहीं, कब किधर का रुख कर लें और लोगों का दुख-सुख पूछने के लिए कहां कार खड़ी कर दें। इसीलिए तो हर कोई ममता को ‘दीदी’ कहता है।
ममता के बराबर के राजनीतिक कद वाला नेता न तो कांग्रेस के पास है और न ही माकपा के पास। इसी कारण ममता के विरुद्ध मैदान में उतरने की इन दोनों पार्टियों की हिम्मत नहीं हो रही। भारतीय जनता पार्टी इस स्थिति का लाभ उठाने का प्रयास कर रही है और समय-समय पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी करती है। केन्द्रीय नेता भी इसे हल्लाशेरी देने के लिए पश्चिमी बंगाल की यात्रा करते रहते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो जहां माकपा नीत वाम मोर्चे के साथ कांग्रेस का ‘महाजोट’ बनने की कोई संभावना नहीं, वहीं भाजपा विपक्ष का स्थान लेने के योग्य हो सकती है।