Edited By ,Updated: 09 Jul, 2015 11:45 PM
कांग्रेस पार्टी इस वक्त लड़ाकू मूड में है और 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद खोया अपना राजनीतिक स्थान हासिल करने का प्रयास कर रही है।
(कल्याणी शंकर): कांग्रेस पार्टी इस वक्त लड़ाकू मूड में है और 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद खोया अपना राजनीतिक स्थान हासिल करने का प्रयास कर रही है। इसे उम्मीद नहीं थी कि मोदी सरकार पर हमला करने के लिए उसे इतनी जल्दी पर्याप्त बारूद मिल जाएगा। अब उसके पास गफ्फे के तौर पर ललितगेट, व्यापमं तथा महाराष्ट्र घोटालों जैसे मुद्दे हैं ताकि संसद के मानसून सत्र में सरकार को घेर सके। चाहे संयोग से अथवा योजनाबद्ध तरीके से, ये तथाकथित घोटाले कुछ भाजपा शासित राज्यों से एक के बाद एक सामने आ रहे हैं। जहां कांग्रेस की अपने घोटालों को लेकर याददाश्त कमजोर है वहीं विपक्षी दल भाजपा में हो रहे इन घटनाक्रमों से कुछ अधिक ही खुश हैं और आशा कर रहे हैं कि इसके विरोधी गुटों में और लड़ाई देखने को मिलेगी।
दुर्भाग्य से प्रधानमंत्री मोदी, जिन्होंने अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने पर घोषणा की थी कि उनका शासन घोटाला मुक्त रहा है, के लिए इसके शीघ्र बाद ही मुसीबतें शुरू हो गईं। कांग्रेस को मोदी सरकार पर निशाना साधने का एक और रास्ता मिल गया। कांग्रेस का उन पर हमला बोलने के लिए हौसला बढ़ गया है और उसने राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा महाराष्ट्र को अपने निशाने पर ले लिया है। भाजपा पहले ही ललितगेट कांड में परेशानी का सामना कर रही है, जिसमें उसकी दो शीर्ष नेता आई.पी.एल. के पूर्व प्रमुख ललित मोदी, जो 2010 से लंदन में भगौड़े के तौर पर रह रहे हैं, की मदद करने में भूमिका को लेकर शामिल हैं-राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तथा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज।
मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले का मामला लेते हैं, जो बड़ी तेजी से देश के साथ-साथ शीर्ष अदालत का ध्यान आकॢषत कर रहा है। धन के अतिरिक्त चिन्ताजनक बात व्यापमं से जुड़े 40 से अधिक लोगों की रहस्यमयी मौत है और संख्या बढ़ती जा रही है। हैरानीजनक बात यह है कि गत कुछ दिनों से प्रत्येक मौत को व्यापमं हत्या के रूप में देखा जा रहा है।
यद्यपि शुरू में भाजपा इस बात पर अड़ी हुई थी कि उच्च न्यायालय की देखरेख में जांच चल रही है, मगर आखिरकार शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पार्टी तथा विपक्ष के दबाव के अन्तर्गत सी.बी.आई. जांच करवाने का फैसला किया। इससे फिलहाल इस मुद्दे पर शोर कुछ कम हुआ है। हालांकि चौहान हमले की जद से बाहर नहीं हुए क्योंकि कांग्रेस लगातार सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में जांच तथा यह आरोप लगाते हुए कि उनके परिवार के सदस्य घोटाले में शामिल हैं, चौहान के इस्तीफे की मांग कर रही है। उसका मानना है कि इसने भाजपा को राज्य में तथा साथ ही केन्द्र में मोदी सरकार को काफी नुक्सान पहुंचाया है।
दूसरे हैं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, जिन पर 3600 करोड़ रुपए के धान घोटाले को लेकर हमला किया जा रहा है। कांग्रेस ने रमन सिंह व उनकी पत्नी पर बहुकरोड़ी घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया है और मुख्यमंत्री का पर्दाफाश करने के लिए एक अभियान छेड़ा है, जो अपनी जन वितरण प्रणाली अच्छी होने का दम भरते हैं, जिससे उन्हें ‘चावल बाबा’ का नाम मिला है।
अब कांग्रेस जन वितरण प्रणाली में खामियां ढूंढ रही है, जो मार्च में राज्य भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो के छापे में सामने आईं, जिसमें कुछ बाबुओं को रंगे हाथ 4 करोड़ रुपयों व पैनड्राइव्स और डायरियों के साथ पकड़ा गया है, जिनसे इस लूट में शामिल लाभाॢथयों की सूची का खुलासा हुआ। इस छापे से आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया है और मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग को लेकर कांग्रेस सड़कों पर उतर आई।
तीसरा है राजस्थान, जहां मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे आई.पी.एल. के पूर्व प्रमुख ललित मोदी की सहायता करने में भूमिका को लेकर हमला झेल रही हैं। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी यह कहते हुए उनके इस्तीफे की मांग कर रही है कि उन्होंने संवैधानिक गलती की है। और तो और उनके बेटे दुष्यंत के साथ ललित मोदी के व्यवसाय को लेकर भी प्रश्र उठाए जा रहे हैं। वसुंधरा राजे अपना आधार तलाश रही हैं, जबकि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व दुविधा में है।
अगले हैं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस, जो अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा करने से पहले ही हमले के घेरे में आ गए हैं। उनके दो मंत्रियों पंकजा मुंडे तथा विनोद तावड़े पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। दोनों पर अनुबंध देने में अनियमितताएं बरतने का आरोप है। भाजपा इस चिन्ता में है कि इन आरोपों से कैसे निपटा जाए, जबकि इस समय वह अपनी सहयोगी शिवसेना के गुस्से का सामना कर रही है। स्वाभाविक है कि शिवसेना भाजपा द्वारा अपने मंत्रियों की अनदेखी करने से खुश नहीं है।
इस पृष्ठभूमि में पार्टी के भीतरी लोग हैरान हैं कि क्या यह भीतर ही भीतर भाजपा बनाम भाजपा लड़ाई उभर रही है। सबसे पहले रमन सिंह तथा शिवराज सिंह चौहान जन नायक हैं। जहां ये दोनों नेता कम प्रभाव वाले हैं, वहीं राजे प्रभावशाली नेता हैं, जिनका व्यापक जनाधार है तथा उन्हें राज्य इकाई का समर्थन हासिल है। कुदरती तौर पर इन सभी राज्यों में असंतुष्ट हैं जो इस समय सक्रिय हैं।
दूसरे, फडऩवीस, जो खुद प्रधानमंत्री की पसंद हैं, के अतिरिक्त अन्य तीन को मोदी की पसंद के रूप में नहीं देखा जाता। इसलिए यदि कभी उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाता है तो कोई आंसू नहीं बहाएगा। 2014 के चुनावों से पूर्व चौहान को मोदी के विरोधी के रूप में देखा जाता था पर उन्हें लाल कृष्ण अडवानी के नेतृत्व वाले मोदी विरोधी गुट ने बढ़ावा दिया था। राजे का पार्टी में एक अपना स्थान है और रमन सिंह का भी, जो एक राजपूत हैं।
केन्द्रीय स्तर पर भी पार्टी के कुछ भीतरी लोग इस वर्तमान शर्मनाक स्थिति को भाजपा की भीतरी कलह के परिणाम के तौर पर देखते हैं। जहां परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने राजे को क्लीन चिट दी है, वहीं गृह मंत्री राजनाथ ने यह कहते हुए चौहान का समर्थन किया है कि व्यापमं घोटाले में सी.बी.आई. जांच की जरूरत नहीं है। दूसरी ओर वित्त मंत्री अरुण जेतली ने निष्पक्ष जांच की मांग की है। इन विरोधाभासी संकेतों से पार्टी में दुविधा है।
कांग्रेस नीत विपक्ष इन विरोधाभासों को लेकर अत्यधिक उत्साहित है और इनका इस्तेमालमोदी सरकार पर निशाना लगाने के लिए करना चाहता है। कांग्रेस ने अपनी राज्य इकाइयों को सड़कों पर लड़ाई के लिए सक्रिय कर दिया है, मगर यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि इस गति को कितनेलंबे समयतक बनाए रखा जा सकेगा और भाजपा कैसे हमलों का सामना करती है।