‘व्यापमं घोटाला’ : आखिर भ्रष्टाचार से कब तक आंखें मूंदेे रखेंगे मोदी

Edited By ,Updated: 14 Jul, 2015 01:21 AM

article

भ्रष्टाचार का तात्पर्य पारदर्शिता के बिना शक्ति और एकाधिकार है। भाजपा नीत राजग सरकार में यह कटु सच्चाई स्पष्टत: दिखाई दे रही है।

(पूनम आई कौशिश): भ्रष्टाचार का तात्पर्य पारदर्शिता के बिना शक्ति और एकाधिकार है। भाजपा नीत राजग सरकार में यह कटु सच्चाई स्पष्टत: दिखाई दे रही है। प्रधानमंत्री मोदी की विवादों में फंसी 4 देवियों- ललितगेट में सुषमा और वसुंधरा, जाली डिग्री में स्मृति ईरानी और 230 करोड़ रुपए के घोटाले में महाराष्ट्र की पंकजा मुंडे के बाद अब मध्य प्रदेश का व्यापमं (व्यावसायिक परीक्षा मंडल) घोटाला सरकार को हिला रहा है और इस घोटाले में मौतों का सिलसिला भी जारी है। इस घोटाले में पुलिस उपनिरीक्षक और इंजीनियरिंग तथा डाक्टरी के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित सरकारी नौकरियों में चयन प्रक्रिया में भारी हेरा-फेरी की गई। राज्य का व्यावसायिक परीक्षा मंडल रिश्वत और भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया है और जिसके लपेटे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी आ गए हैं और इससे जुड़े हुए लोग मक्खियों की तरह मारे जा रहे हैं।

इस घोटाले में पहले ही मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत वर्मा संविदा अध्यापक भर्ती परीक्षा में फंसे हुए हैं और वनरक्षक भर्ती में रिश्वत लेने के आरोप में राज्यपाल रामनरेश यादव के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट लंबित पड़ी हुई है। यह करोड़ों रुपए का घोटाला है जिसमें नेतागण, नौकरशाह, न्यायाधीश, व्यवसायी आदि संलिप्त हैं। यह घोटाला 2008 से 2013 के बीच हुआ और इसमें अधिकारियों को रिश्वत दी गई। उत्तर पुस्तिका में हेराफेरी की गई, जाली परीक्षार्थी बिठाए गए और परीक्षार्थियों की बैठने की व्यवस्था में हेराफेरी की गई। दिसम्बर 2009 में मुख्यमंत्री ने एक समिति का गठन किया जिसने रिपोर्ट दी कि डाक्टरी की परीक्षा में 114 जाली परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी। उसके बाद 2012 से मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की निगरानी में एक विशेष जांच दल इस घोटाले की जांच कर रहा है और इसमें अब तक 2000  लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। 
 
यह घोटाला कोई नया नहीं है। इससे पहले 2002 में पंजाब में भर्ती घोटाला सामने आया था। महाराष्ट्र में लोक सेवा आयोग भर्ती घोटाला और 1999-2000 में इंडियन नैशनल लोकदल के शासन के दौरान चौटाला ने 2316 अध्यापकों की भर्ती में हेराफेरी की थी जिसके चलते उन्हें 10 साल की सजा भी मिली, किन्तु इस घोटाले में गवाहों की रहस्यमय ढंग से मौतें होने लगीं। अब तक 48 गवाहों की मौतें हो चुकी हैं और उसके बाद केन्द्र सरकार जागी तथा उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में सी.बी.आई. जांच का आदेश दिया। व्यापमं ने विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा दे दिया। विपक्ष का कहना है कि ये मौतें नहीं, हत्याएं हैं जबकि राज्य सरकार का कहना है कि ये मौतें संयोग हैं और यह सब कुछ तब तक चलता रहेगा जब तक दूसरा घोटाला सामने नहीं आएगा। फिर इसे भुला दिया जाएगा। हमारी न्यायिक व्यवस्था की घोंघा चाल के कारण भी ऐसे मामलों को निपटाने में 10-12 साल लग जाते हैं। पंजाब भर्ती घोटाला में पहला दोषी 13 वर्ष बाद अप्रैल में घोषित हुआ और हमारे राजनेता कहते रहते हैं कि कानून अपना काम करेगा। 
 
व्यापमं से एक विचारणीय मुद्दा उठा है कि यदि स्वयं राज्य ही भ्रष्ट हो जाए तो फिर कोई क्या करे। अपना सिर फोड़े या रोए या यह कहे कि भारत चोरों का देश है। राज्य जितना अधिक भ्रष्ट होता है उतने  ही जोर-शोर से आरोपों का खंडन किया जाता है। हमारे नेतागणों और नौकरशाहों को उन्हें मिली छूट के कारण संरक्षण मिलता रहता है और इस संरक्षण का उपयोग वे राज्य के एक साधन के रूप में करते हैं जबकि यह छूट अपने आप में लोकतंत्र के विरुद्ध है। यह छूट अंग्रेजों के कॉमन लॉ से ली गई है 
 
जिसके अनुसार राजा कोई भी गलत कार्य नहीं कर सकता है, किन्तु हमारे यहां राजप्रथा समाप्त होने के साथ इस प्रथा को भी छोड़ दिया जाना चाहिए था किन्तु हमारे राजनेता इस राजसी विशेष अधिकार को नहीं छोड़ते और इसका उद्देश्य मूलत: लोक सेवकों को सुरक्षा देना था न कि उनके विरुद्ध अभियोजन चलाना, किन्तु आज के नेताओं ने इस सिद्धांत का उपयोग जांच प्रक्रिया के लिए भी कर दिया है। पिछले कुछ दिनों में हमारे नेताओं ने इस बात की पूर्णत: पुष्टि कर दी है कि हमारी व्यवस्था में भीषण विकृतियां आ गई हैं और कोई भी उनमें सुधार करना नहीं चाहता है। अन्यथा इस तरह के बड़े पैमाने के भ्रष्टाचार पर किस प्रकार प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए जिसने हमारे लोकतंत्र के स्तंभों को ही कमजोर कर दिया है, किन्तु न जाने क्यों हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा ने केन्द्र तथा राज्यों दोनों में अनुचित व्यवहार और भ्रष्टाचार के ऐसे गंभीर मामलों को नजरअंदाज किया है और वह भी तब जब मोदी कहते हैं कि मैं न तो खाता हूं और न खाने दूंगा। 
 
उनके इस वायदे का क्या हुआ? 
सबसे हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस नीत यू.पी.ए. सरकार में जब कोई नेता या मंत्री घोटालों में लिप्त पाया जाता था तो जनता के दबाव में उसे पद से हटा दिया जाता था, किन्तु संघ परिवार, मंत्री और पार्टी प्रवक्ता यू.पी.ए. पर उंगलियां उठाकर अपने नेताओं के कुकर्मों को उचित ठहराने का प्रयास करते हैं या कानूनी उदाहरण दे देते हैं। आज लगता है कि मोदी की चुप्पी बताती है कि हम ऐसा चलने देंगे चाहे परिणाम कुछ भी हो। केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा है कि हमारे मंत्री त्यागपत्र नहीं देंगे। यह कांग्रेस सरकार नहीं है यह राजग सरकार है। यह बताता है कि इस सरकार में शर्म नाम की कोई चीज नहीं है और वह भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना नहीं चाहती और जनता के प्रति जवाबदेह बनना नहीं चाहती। 
 
यह सच है कि रिश्वतखोरी, मनी लांड्रिग, सेवा के लिए शुल्क और घोटाले आज हमारी जीवन शैली बन गई है, किन्तु व्यापमं इससे भी एक कदम आगे बढ़ता है जिसने हमारी लोक सेवाओं की भर्ती प्रक्रिया को ही भ्रष्ट बना दिया है। इससे दो चीजें स्पष्ट होती हैं कि हमारे यहां अशिक्षित और औसत दर्जे के अध्यापकों, नौकरशाहों आदि की एक पीढ़ी तैयार हो गई है और हम उन्हें भ्रष्ट होने का प्रशिक्षण दे रहे हैं, किन्तु ऐसे देश में जहां पर लोक नैतिकता नाम की चीज ही नहीं है वहां हम किस भ्रष्टाचार की बात कर रहे हैं? क्या हम राशन कार्ड से लेकर ड्राइविंग लाइसैंस तक हर चीज के लिए रिश्वत नहीं देते हैं? फिर इसमें कौन-सी बड़ी बात है?
इसे आप व्यवस्था की विफलता कह सकते हैं और ऐसा कह कर फिर स्थिति यथावत बनी रहेगी और आज स्थिति यह है कि यदि आप किसी की ओर एक उंगली उठाते हैं तो आपकी ओर 4 उंगलियां उठेंगी और यह सिलसिला इसी तरह चलता रहेगा। राष्ट्रीय स्तर पर हमारे भ्रष्ट नेताओं और तुम्हारे भ्रष्ट नेताओं के बीच राजनीतिक तू-तू मैं-मैं चलती रहेगी, जबकि आम आदमी की जेब पर डाका जारी रहेगा। समय आ गया है कि हमारे ये नेता जो जिसकी लाठी उसकी भैंस के सिद्धांत को अपनाते हैं और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ की तरह कार्य करते हैं  उन्हें यह समझना चाहिए कि सुविधानुसार राजनीतिक आकलन गलत सिद्ध होते हैं। 
 
यदि सरकार इस रोग को दूर करना चाहती है तो उसे ईमानदारी से कदम उठाने होंगे। इस संबंध में प्रोफैसर गालब्रेट के शब्द उल्लेखनीय है : भारत के कानून, अर्थव्यवस्था या इसकी राजनीतिक और न्यायिक संस्थाओं में कुछ भी गलत नहीं है। भारत की सबसे बड़ी बीमारी नैतिक गरीबी है।’’ 
 
हमारे लोकतंत्र के हित में शीर्ष स्तर पर सत्यनिष्ठा के अभाव से कड़ाई से निपटा जाना चाहिए अन्यथा हमारा देश एक पंगु, भ्रष्ट लोकतंत्र बना रहेगा जहां पर कोई भी ईमानदारी को सर्वोत्तम नीति के रूप में स्वीकार नहीं करेगा। प्रधानमंत्री मोदी कब तक आंखें मूंदे रहेंगे और अपनी सफलता के मूल मंत्र को राजनीतिक कार्य साधकता में दफनाते रहेंगे? उन्हें इस बुनियादी सच्चाई को याद रखना होगा : ‘‘सच्चाई का निर्धारण बहुमत से नहीं होता है।’’ हम आशा करते हैं कि ईमानदारी और सत्यनिष्ठा भारतीय राजनेताओं के लिए विरोधाभास न बने।      
 
IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!