नहीं होने दिया था हिमाचल में ‘व्यापमं’ जैसा घोटाला

Edited By ,Updated: 21 Jul, 2015 01:42 AM

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स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कुछ बुनियादी समस्याओं पर बिल्कुल विचार ही नहीं किया गया। वे धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते पहाड़ बन गईं।

(शांता कुमार ): स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कुछ बुनियादी समस्याओं पर बिल्कुल विचार ही नहीं किया गया। वे धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते पहाड़ बन गईं। 1947 में भारत की आबादी केवल 35 करोड़ थी। आज भारत 125 करोड़ का देश बन गया।  आबादी में बहुत जल्दी चीन को पीछे छोड़ देंगे। एमरजैंसी के समय संजय गांधी ने इस दिशा में कुछ करने की कोशिश की, परन्तु एक अच्छा काम गलत तरीके से  गलत समय पर किया गया और अब हालत यह है कि आबादी रोकने का कोई नाम तक नहीं लेता। 
 
शिक्षा के अवसर बढ़े। शिक्षित युवाओं की संख्या बढ़ी। सरकारी नौकरी आकर्षण का केन्द्र बन गई।  उसमें जिम्मेदारियां कम, आय अधिक और वेतन के अतिरिक्त भी ऊपर की कमाई का एक धंधा बन गया।  सरकारी पदों में उस अनुपात में बढ़ौतरी नहीं हुई।  धीरे-धीरे प्रतिस्पर्धा बढ़ती गई।  पद कम, उम्मीदवार अधिक। बेरोजगारी से युवाओं में निराशा आने लगी। सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए गला-काट प्रतिस्पर्धा पैदा हुई। 
 
बड़ी अच्छी नीयत से शिक्षा में निजीकरण प्रारम्भ हुआ,  परन्तु उसका परिणाम सब जगह बहुत अच्छा नहीं रहा। निजी संस्थाओं और विश्वविद्यालयों की होड़ लग गई। छोटे से हिमाचल प्रदेश में 20 से अधिक निजी विश्वविद्यालय और यहां तक कि  एक जिले में 7 विश्वविद्यालय खुल गए। उस जिले में 7 कालेज भी  नहीं हैं। सरकार निजी संस्थाओं के स्तर पर कोई नियंत्रण नहीं रख सकी।  धीरे-धीरे शिक्षा का स्तर गिरने लगा। आज अधिकतर संस्थाएं केवल धन कमाने और डिग्री बेचने वाली दुकानें बनकर रह गई हैं।  विश्वविद्यालयों की सड़कों की दीवारों पर और अखबारों में विज्ञापन ऐसे दिखाई देते हैं जैसे कभी साबुन बेचने वाली कम्पनियों के विज्ञापन होते थे।  एक निजी विश्वविद्यालय ने कई विद्यार्थियों को उत्तर-पूर्व के किसी विश्वविद्यालय से पीएच.डी. करवाई परन्तु उस विश्वविद्यालय के स्टाफ में एक भी पीएच.डी. नहीं था।
 
डाक्टर बनने के लिए सबसे अधिक मारामारी है। कुछ स्थानों पर सीटें बिकती हैं। हिमाचल के एक छात्र ने दक्षिण के एक कालेज में एक करोड़ 7 लाख रुपए देकर प्रवेश पाया।  लाखों की बात तो आम है पर करोड़ सुनकर दंग रह गया।  विश्वास नहीं हुआ, पूरा पता किया तो सच निकला। ऐसे लोग डाक्टर बनकर क्या करेंगे, यह अनुमान लगाया जा सकता है। जिस देश में डिग्रियां बिकती हों, सीटें बिकती हों और कुछ नेता भी बिकते हों, वह 25 साल तो क्या एक हजार साल में भी विश्व गुरु नहीं बन सकता। 
 
सरकारी संस्थाओं में भी शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है।  हिमाचल में सरकार का मैडीकल कालेज टांडा में है।  मैडीकल कौंसिल की टीम जब यहां निरीक्षण के लिए आती है तो आसपास के डाक्टरों को तबदील करके कालेज में पढ़ाने वाले दिखा दिया जाता है।  जब निरीक्षण समाप्त हो जाता है तो वे डाक्टर अपने-अपने अस्पताल में आ जाते हैं।  जब सरकारी कालेज का यह हाल है कि वह धोखा देकर मैडीकल कौंसिल से मान्यता प्राप्त करता है तो निजी संस्थाओं की स्थिति क्या होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। 
 
इस सारी स्थिति के कारण सरकारी पदों की भर्ती में भ्रष्टाचार पनपने लगा।  मध्य प्रदेश का व्यापमं घोटाला सबकी नजरों में आ गया, परन्तु सच्चाई यह है कि इस प्रकार के घोटाले हर प्रदेश के हर विभाग में होते रहे हैं।  ये घोटाले वे हैं जो पकड़े गए। यह सब घोटालों का एक प्रतिशत भी नहीं है।
 
हरियाणा में अध्यापकों की भर्ती में घोटाला पकड़ा गया। पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला 10 वर्ष की सजा काट रहे हैं। और भी कई स्थानों पर कई घोटाले हुए। मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले ने एक विकराल रूप धारण किया। उसकी कहानी ज्यों-ज्यों सामने आ रही है पूरे देश में एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति व ङ्क्षचता पैदा हो रही है।  इस प्रकार धोखा करके अयोग्य लोग ऊंचे पदों पर बैठते गए।  सब प्रकार की सेवा का स्तर गिरता गया।  अध्यापक, डाक्टर, इंजीनियर व अन्य अयोग्य लोग धोखे से योग्य पर साधनहीन उम्मीदवारों का गला काट कर इन पदों पर आसीन हो गए। 
 
आज से 38 साल पहले 1977 में मैं हिमाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री बना था।  एक विभाग में 500 नियुक्तियां की जा रही थीं। इस विभाग के मंत्री मेरे विश्वसनीय मित्र और हमारे प्रमुख नेता थे।  मैं शिमला जिला के एक स्थान पर कार्यक्रम में गया था। वहां मुझे मिलने के लिए बहुत से लोग खड़े थे। मैंने देखा, मैले कपड़ों में एक लड़की उस भीड़ से रास्ता बना कर मुझे मिलना चाह रही है, पुलिस उसे रोक रही है।  मैंने उसे अपने पास लाने को कहा।  वह आते ही फूट-फूट कर रोने लगी।  
 
मैंने प्यार से उसे अपनी बात कहने को कहा, वह बोली ‘‘मैं इस गांव के एक गरीब हरिजन परिवार की लड़की हूं।  मैंने बिजली विभाग में टैस्ट दिया था। मैं प्रथम श्रेणी में पास हूं लेकिन मैं उस टैस्ट को पास नहीं कर सकी परन्तु पड़ोस के गांव का तृतीय श्रेणी में पास एक नेता का लड़का पास हो गया है।  ऐसे और भी कई पास हो गए।’’ मैंने उसका नाम-पता लिखा।  शिमला पहुंचा। सारा रिकार्ड मंगवाया।  अपने प्रमुख अधिकारी को जांच पर लगाया। मेरी हैरानी की सीमा नहीं रही जब यह पता लगा कि 500 में से लगभग 200 के परिणामों को बदल दिया गया। नम्बरों को काटा गया, नीचे वाले को ऊपर और ऊपर वाले को नीचे कर दिया गया था। 
 
मैं गहरी सोच में पड़ गया। मैं केवल एक वोट से मुख्यमंत्री बना था।  जनता पार्टी के 54 विधायकों में जनसंघ के केवल 16 थे।  सबने कहा चुप रहो, आंखें बंद कर लो, यदि कुछ किया तो कुर्सी जाएगी। मैंने फाइल उठाई, दिल्ली श्री अटल जी के पास पहुंच पूरी बात रखी।  मंत्री का नाम सुन वे भी एक बार चिंता में पड़ गए। फिर मेरी ओर देख पूछा-क्या करना चाहते हो ? मैंने कहा कितना भी मूल्य चुकाना पड़े इन्हें रद्द करूंगा। अटल जी का आशीर्वाद लेकर शिमला आया।  सारी परीक्षा रद्द कर दी।  उसी दिन से हिमाचल जनता पार्टी में भयंकर संकट आया। कुछ मित्र शत्रु बन गए। जिनके बच्चे पास हो गए थे वे नाराज हो गए। पर पूरे प्रदेश में मेरे इस साहस भरे कदम की प्रशंसा भी बहुत हुई।  
 
मुझे दो बार विश्वास-मत लेना पड़ा। बड़ी कठिनाई सही, पर आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि तब मैंने हिमाचल में व्यापमं नहीं होने दिया था। एक लोकतंत्र में कानून की सरकार में सभी को न्याय मिलना चाहिए।  लोकतंत्र की कसौटी यही है कि गांव का सबसे गरीब व्यक्ति भी सरकार को अपना समझे। दुर्भाग्य से आज यह स्थिति नहीं है। ललित मोदी  जैसे अरबपति और प्रभावशाली कुछ भी कर सकते हैं और किसी से भी लाभ उठा सकते हैं। इस प्रकार के लोग कानून की पकड़ में भी पूरी तरह नहीं आते। उधार में दबे लगभग 3 लाख गरीब किसान आज तक आत्महत्या कर चुके हैं पर कुछ बड़े उद्योगपतियों ने सरकारी बैंकों का लगभग 2 लाख करोड़ उधार नहीं चुकाया लेकिन उन्हें बुखार तक नहीं आया। उस 2 लाख करोड़ को नया नाम (हृक्क्र-गैर निष्पादित सम्पत्तियां) देकर सरकार भी चुप बैठी है।  
 
एक तरफ तो बेरोजगारी और महंगाई के कारण लोग दुखी होते हैं।  कहीं नौकरी के लिए प्रयत्न करते हैं तो कई बार साक्षात्कार देने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिलती।  यदि सब ओर धारणा यह हो कि जो योग्य लोग थे उनको ही नौकरी दी गई है तो नौकरी न पाने वाले लोगों को एक संतोष हो सकता है कि वे योग्यता में कम हैं  इसलिए उन्हें नियुक्ति नहीं मिली। आज ऐसा नहीं हो रहा।  बेरोजगार युवकों में एक तो बेरोजगारी के कारण निराशा हो रही है दूसरे उन्हें यह विश्वास होता है कि सिफारिश और धन के कारण उनसे अयोग्य लोग नौकरी प्राप्त कर रहे हैं। इस प्रकार की स्थिति से धीरे-धीरे निराशा की आंच एक आक्रोश की आग का रूप ले सकती है। 
 
गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी की मजबूरी ही सबसे बड़ा कारण है इस देश में बढ़ते अपराध, नक्सलवाद और माओवाद का। छोटे-बड़े व्यापमं तो सब जगह होते रहे हैं परन्तु मध्य प्रदेश के व्यापमं ने पूरे देश की आत्मा को हिला दिया है। इसे यूं ही टाला नहीं जा सकता। भारतीय जनता पार्टी को गंभीरता से आत्म निरीक्षण करना होगा। कुछ कठोर कदम उठाने की हिम्मत दिखानी होगी। 
 

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