‘केवल चेतावनियों’ से आतंकवाद का उत्तर नहीं दिया जा सकता

Edited By ,Updated: 01 Aug, 2015 02:49 AM

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कई वर्षों के अंतराल बाद पंजाब के गुरदासपुर में पाकिस्तान की आई.एस.आई. के फिदायीन दस्ते द्वारा आतंकी हमला बादल नीत सरकार की नींद तोडऩे के लिए एक बहुत ही सदमे भरा झटका है

(हरि जय सिंह): कई वर्षों के अंतराल बाद पंजाब के गुरदासपुर में पाकिस्तान की आई.एस.आई. के फिदायीन दस्ते द्वारा आतंकी हमला बादल नीत सरकार की नींद तोडऩे के लिए एक बहुत ही सदमे भरा झटका है क्योंकि अपनी गठबंधन सहयोगी भाजपा के साथ यह ऐसा आभास दे रही है कि व्यावहारिक रूप में प्रत्येक मुद्दे पर यह ‘साफ्ट स्टेट’ वाली नीति अपना रही है। कभी पंजाब के लोग उत्साही, साहसी और भविष्य के प्रति आशावाद से भरे होते थे, यानी कि ‘चढ़दी कला’ उनकी विशिष्ट पहचान थी, लेकिन आजकल यह चीज पता नहीं कहां गायब हो गई?

गवर्नैंस के किसी भी पहलू पर दृष्टिपात करके देख लें  आपको हर जगह ढुलमुलपन और हर तरह से नीचे की ओर फिसल रहा सत्ता तंत्र दिखाई देगा। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल निश्चय ही पंजाब के सबसे कद्दावर नेता हैं। उनके प्रति लोगों में अपार प्रशंसा और सद्भावना मौजूद है। फिर भी लोग उनके उपमुख्यमंत्री पुत्र से यह उम्मीद करते आए हैं कि वह राज्य को आगे ले जाने के लिए मजबूती से कदम उठाएंगे। सुखबीर सिंह बादल नि:संदेह नेक इरादों वाले इन्सान हैं, लेकिन औद्योगिक और कृषि के दोनों ही मोर्चों पर पंजाब को समृद्धि के नए स्तर तक ले जाने के लिए उन्होंने वह उत्साह और गतिशीलता नहीं दिखाई जिसकी उनसे उम्मीद थी। वास्तव में हम सबको पंजाब के सत्ता तंत्र से यह  अपेक्षा थी कि बहुप्रचारित द्वितीय हरित क्रांति के मामले में वह देश को नई संभावनाओं का साक्षात्कार कराएंगे। 
 
पंजाब में संसाधनों की कोई कमी नहीं है। जरूरत इस बात की है कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था को तेज गति प्रदान करने के लिए घरेलू और सागर पारीय निवेशकों के लिए सौहार्दपूर्ण वातावरण सृजित किया जाए। इसके अलावा आज भी मुठ्ठी गर्म करने के लिए लाल फीताशाही की पुरानी परम्परा का ही बोलबाला है और  ‘सिंगल विंडो’ निर्णय प्रक्रिया कहीं दिखाई नहीं देती। नशीले पदार्थों के अवैध धंधे के बलबूते विकास का मार्ग प्रशस्त नहीं किया जा सकता। नशीले पदार्थों का तंत्र सीमा के इस ओर कुछ शक्तिशाली माफिया सरगनाओं के लिए आसानी से दौलत कमाने का उपकरण सिद्ध हो सकता है, लेकिन इस प्रक्रिया में एक संगठित ड्रग रैकेट पंजाबी युवाओं के जीवन और भविष्य का सत्यानाश कर देगा। 
 
मैं इन तथ्यों को रेखांकित करने के लिए यह बृहत्तर मुद्दे को उठा रहा हूं कि घटिया गुणवत्ता वाली गवर्नैंस ने पंजाब को किस प्रकार पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का आसान निशाना बना दिया है। मैं भली-भांति जानता हूं कि जब पाकिस्तान प्रशिक्षित खालिस्तानी आतंकी पंजाब में दनदना रहे थे तो पंजाब को कैसे नारकीय दिन देखने पड़े थे। अपनी कुछ कमियों के बावजूद ‘सुपर कॉप’ के.पी.एस. गिल ने दिखा दिया था कि आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब कैसे देना है। क्या पंजाब को आतंक के वे भयावह दिन भूल गए हैं? मुझे उम्मीद है कि ऐसा नहीं हुआ है।
 
परेशान करने वाला तथ्य तो यह है कि ए.के.-47 असाल्ट राइफलों, 18 मैगजीनों, ग्रेनेड लांचरों और अंधेरे में देखने वाले उपकरणों से लैस आतंकियों के सामने पंजाब पुलिस बढिय़ा हथियारों से लैस नहीं थी। 
 
राज्य के डी.जी.पी. सुमेध सिंह सैनी निश्चय ही एक बहुत सक्षम पुलिस अधिकारी हैं। उनकी ‘स्वैट’ कमांडो यूनिट ने सेना अथवा नैशनल सिक्योरिटी गार्ड (एन.एस.जी.) जैसे अभिजात्य आतंक विरोधी बल का मुंह बाए बिना अपने स्तर पर कार्रवाई करने की हिम्मत और दिलेरी दिखाई। फिर भी हमें यह बात स्मरण रखनी होगी कि इस पुलिस दस्ते को इसराईल की गुप्तचर पुलिस ‘मोसाद’ से प्रशिक्षण लेना पड़ा था और उसी ने इसे अति आधुनिक हथियारों से लैस किया था। इससे पहले मोसाद दिल्ली पुलिस की एक इकाई को भी प्रशिक्षण दे चुकी है। आतंक विरोधी कवायद के मामले में पंजाब  दूसरे राज्यों की तुलना में फिसड्डी कदापि नहीं लगना चाहिए। प्रदेश के गुप्तचर विंग को नए सिरे से चाक-चौबंद बनाना भी इतना ही जरूरी है। 
 
वैसे गुरदासपुर जिले में हुआ यह हमला राज्य में खालिस्तानी आंदोलन की बहाली का कोई संकेत नहीं देता। यह आई.एस.आई. द्वारा प्रायोजित फिदायीन हमला था। पंजाब एक प्रकार से आगे बढऩा जारी रखे हुए है। अन्य राज्यों की तरह पंजाब के युवा भी अब बेहतर भविष्य की तलाश में रहते हैं। उनकी भी नई आशाएं और उमंगें हैं जो अभी तक पूरी नहीं हुईं। बादल सरकार की जिम्मेदारी है कि वह भविष्य के इन संकेतों को समझने में चूक न करे और राज्य को आॢथक समृद्धि की बुलंदियों पर ले जाने के लिए समयबद्ध योजना का खाका तैयार करे। 
 
जबरदस्त आॢथक शक्ति वाले नए मजबूत पंजाब के अभ्युदय के लिए जमीन तैयार करने का बादल के पास ऐतिहासिक अवसर है। सुखबीर बादल को किसी भी कीमत पर यह अवसर गंवाना नहीं चाहिए। फिर भी सर्वप्रथम उन्हें पुलिस बल का सुधार और आधुनिकीकरण करना चाहिए। यह प्राथमिक एजैंडे के रूप में करने वाला काम है। इस परिप्रेक्ष्य में कभी पंजाब के लौह पुरुष रहे के.पी.एस. गिल से परामर्श लेना बहुत मूल्यवान होगा।
 
एक साक्षात्कार में के.पी.एस. गिल ने कहा था : ‘‘जब मुम्बई में आतंकी हमला हुआ तो उसके बाद क्या हुआ? दिल्ली बैठे अधिकारियों ने एन.एस.जी. का गठन किया। उन्होंने स्थानीय  मुम्बई पुलिस की बजाय एन.एस.जी. को शक्तियों से लैस किया। ऐसी परिस्थितियों में पहले हरकत में कौन आएगा? मैं खुद एन.एस.जी. प्रमुख रहा हूं और इसकी कार्यशैली को जानता हूं। पंजाब में किसने आतंकवादी आंदोलन का प्रभावशाली ढंग से मुंहतोड़ जवाब दिया था? निश्चय ही पंजाब पुलिस ने। एक बात याद रखें कि मुम्बई पुलिस के निहत्थे ए.एस.आई. को ही सबसे पहले आतंकवादियों की भनक लगी थी और उसने उनका मुकाबला किया। यह भी देखें कि बार्डर के पुलिस थानों की आप लोगों ने कैसी दुर्गति कर दी है? बी.एस.एफ. वाले तो यही कहेंगे कि वे तो सीमा के रक्षक हैं, ऐसे में घुसपैठ के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा?’’
 
के.पी.एस. ने कुछ लंबे-चौड़े मुद्दे उठाए हैं जिन पर दिल्ली बैठे उच्च अधिकारियों को कार्रवाई करनी होगी। पंजाब सरकार के लिए तात्कालिक चिन्ता की बात यह है कि अपने पुलिस बल का सुधार और आधुनिकीकरण कैसे किया जाए तथा गुप्त सूचनाएं जुटाने वाले तंत्र को पूरी तरह चाक-चौबंद कैसे बनायाजाए। 
 
शुक्र है कि प्रकाश सिंह बादल ने घटिया हथियारों से लैस सुरक्षा कर्मियों की शिकायतों का संज्ञान लेने का वायदा किया है। सवाल यह पैदा होता है कि क्या मुख्यमंत्री महोदय इस मामले में तेजी से कदम उठाएंगे? सुमेध सिंह सैनी के रूप में पंजाब सरकार के पास बहुत ही सक्षम अधिकारी हैं। वह तेजी से और सख्ती से कदम उठा सकते हैं। जरूरत ऐसी मजबूत इच्छाशक्ति की है जो पंजाब पुलिस को पूरी तरह प्रोफैशनल बनाने में उनकी पीठ थपथपाए। हम अतीत की गलतियों को दोहराकर सीमा पार बैठे आतंकियों के हाथ मजबूत नहीं कर सकते। 
 
पाकिस्तान बहुत ही जटिल देश है। इसके शांति के संदेश बहुत कपट भरे हो सकते हैं इसलिए हमें सदैव चौकस रहना होगा और यदि पाकिस्तान गुरदासपुर हमले जैसी आतंकी कार्रवाई जारी रखता है तो हमें भी अपनी पसंद की जगह और समय पर कार्रवाई करते हुए इस्लामाबाद को मुंहतोड़ जवाब देना होगा। केवल चेतावनी की बड़ी-बड़ी बातें करने मात्र से आतंकवाद का उत्तर नहीं दिया जा सकता। कुछ भी हो, शांति की प्रक्रिया एक ऐसी ताली है जो दो हाथों से ही बजती है। इस्लामाबाद यदि हमारे क्षेत्र में आतंकवाद का वातावरण सृजित करता है तो शांति कायम नहीं रह सकती।         
 
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