Edited By ,Updated: 22 Aug, 2015 12:44 AM
पिछले दिनों एक ऐसी हकीकत से सामना हुआ जो दुखद तो है ही पर ङ्क्षचताजनक भी है। नैशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के मुताबिक सन् 2011 की जनगणना के अनुसार
(पूरन चंद सरीन): पिछले दिनों एक ऐसी हकीकत से सामना हुआ जो दुखद तो है ही पर ङ्क्षचताजनक भी है। नैशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के मुताबिक सन् 2011 की जनगणना के अनुसार इस दशक में देश के एक करोड़ लड़के-लड़कियों का विवाह कानून द्वारा तय की गई आयु से कम आयु में हुआ अर्थात ये सब बाल विवाह हुए। आश्चर्यजनक यह है कि उससे पिछले दशक यानी सन् 2001 की जनगणना के अनुसार यह संख्या लगभग 8 लाख थी।
जनगणना के अनुसार प्रत्येक 5वीं विवाहित महिला 15 से 19 वर्ष की थी। इस वर्ग में विवाहित पुरुष 5 प्रतिशत से भी कम थे, मतलब नाबालिग लड़की से काफी अधिक उम्र के लोगों ने शादी की। इसका कारण लड़कियों की सुरक्षा बताया गया। 80 प्रतिशत लोगों को यह जानकारी नहीं थी कि बाल विवाह गैर-कानूनी है। 60 प्रतिशत मां-बाप ऐसे थे जिन्होंने अपने बच्चों से नाबालिग अवस्था में उनकी शादी करने के बारे में पूछा तो बच्चे राजी नहीं थे लेकिन उन्होंने जबरदस्ती उनकी शादी कर दी।
ये सब तब है जब हमारी सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए कड़े कानून बना दिए हैं लेकिन यह कुप्रथा समाप्त होने या कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। जिन देशों में बाल विवाह सबसे अधिक होते हैं उनमें बंगलादेश, भारत, नेपाल और अफगानिस्तान सबसे आगे हैं, इसका मतलब यह हुआ कि विकासशील देश ही इस कुप्रथा को पाल-पोस रहे हैं।
देखने में आया है कि बालिग होने से पहले लड़के-लड़कियों की शादी तीन तरह से की जाती है। एक तो जब वे अभी ज्यादातर अबोध होते हैं, मतलब उन्हें गोदी में खिलाया जा सकता है, दूसरे वे होते हैं जिनके मां-बाप जल्दी से जल्दी बच्चों की शादी करके जिम्मेदारी से बरी होना चाहते हैं और तीसरे वे हैं जो अपनी नाबालिग संतान की शादी जबरदस्ती करा देते हैं।
ऐतिहासिक कारणों पर जाएं तो पता चलेगा कि लगभग हजार वर्ष पहले हुए विदेशी आक्रमणों से इस प्रथा की शुरूआत हुई। इसका हल यह निकाला गयाकि लड़कियों की बाल्यावस्था में ही शादी कर उन्हें हमलावरों की हवस का शिकार होने से बचाया जा सकता है।
एक घटना के मुताबिक नादिरशाह के भयंकर कत्लेआम को रोकने के लिए जो तरकीब निकाली गई थी वह यह थी कि एक अति सुंदर कुंवारी कम उम्र की लड़की को सजा-धजा कर उसकी खिदमत में भेजा जाए। अपनी काम-पिपासा शांत करने के बाद जब नादिरशाह ने उसकी तरफ देखा तो उस लड़की ने कहा कि यह कत्लेआम वह क्यों कर रहे हैं। कहते हैं कि इसका असर उस जालिम पर ऐसा पड़ा कि उसने आगे होने वाले कत्लेआम को रोक दिया और लूटपाट करने के बाद शांत हो गया।
खैर, इतिहास जो भी आईना हमें दिखाए, यह सोचना जरूरी हो जाता है कि आज भी समाज में बाल विवाह क्यों होता है और क्या इस पर विकसित देशों की तरह रोक नहीं लगाई जा सकती?
गांव-देहात से शहरों में लड़के काम-धंधा खोजने के लिए आते हैं। मां-बाप की शर्त होती है कि चले तो जाओ लेकिन पहले शादी कर लो और बहू जो कि ज्यादातर नाबालिग होती है उसे रख लेते हैं ताकि वह घरेलू काम में हाथ बंटाए और मजदूरी कर पैसे कमा परिवार की मदद करे।
अब एक नई बात देखने में आ रही है कि लड़के अपने साथ अपनी पत्नी को भी लेकर शहरों में आ रहे हैं। जहां लड़के रिक्शा चलाने से लेकर कारखानों आदि में मजदूरी करने लग जाते हैं वहां उनकी नाबालिग पत्नियां घरेलू नौकरानी बन जाती हैं। दोनों में से किसी एक की नौकरी या काम-धंधा छूट जाता है तो दूसरे की आमदनी से उनका खर्च चलने लगता है।
इसका एक दुष्परिणाम यह भी सामने आ रहा है कि एक बार पति की नौकरी या काम छूटा तो फिर वह नई नौकरी या काम खोजने की बजाए अपनी पत्नी की कमाई पर ही गुजर-बसर करने लगता है। इस तरह शहरों में एक नई तरह की ही आबादी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। शहरों में आजकल चोरी-चकारी की वारदातें बढऩे का कारण यही है क्योंकि जिन घरों में ये काम करती हैं वहां के लगभग सभी लोग नौकरीपेशा होते हैं या रोजगार के लिए घर नौकरानी के हवाले कर जल्दी निकल जाते हैं।
गांव-देहात में बाल विवाह इसलिए किया जाता है कि घरेलू काम के लिए एक औरत की जरूरत होती है। पहले जमाने का बार्टर सिस्टम यानी अदला-बदली आज भी जारी है। ऐसा घर खोजा जाता है जहां अपनी लड़कियों की शादी हो जाए और उनकी लड़कियों से अपने लड़कों की शादी करा दी जाए।
अब जिन परिवारों में लड़की की कम उम्र में शादी नहीं की गई और उसे पढऩे-लिखने की छूट है तो वहां समस्या यह होने लगती है कि वह शादी के लिए अपने से ज्यादा पढ़े-लिखे लड़के से ही शादी करना चाहती है।
बाल विवाह या यूं कहें कि जबरदस्ती की शादियों की बाढ़ एक और घटना के बाद सामने आई जिसे जानकर आश्चर्य होता है। सन् 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जो दंगे हुए, उसके दौरान वहां बाल विवाह की घटनाओं में बेतहाशा बढ़ौतरी दिखाई दी। लड़कियों को बलात्कार का शिकार होने से बचाने के लिए माता-पिता ने फौरन उनकी शादी करने में ही उनकी भलाई समझी और इस तरह कम उम्र की लड़कियों को पूरी उम्र के लिए एक कुप्रथा का शिकार बना दिया।
रोकथाम कैसे हो आंकड़ों के मुताबिक आज 7 करोड़ के लगभग ऐसी महिलाएं हैं जिनकी शादी बालिग होने से पहले ही हो गई थी। अनुमान लगाइए कि कितनी बड़ी स्त्री शक्ति को बाल विवाह की खाई में धकेलकर जीवन भर के लिए अभिशप्त बना दिया गया।
इसके लिए जरूरी है कि समाज और सरकार को ऐसे कार्यक्रम चलाने होंगे और नीतियां बनानी होंगी जिनसे इस बुराई पर शत-प्रतिशत रोकथाम लग सके। मतलब यह कि यह सोचने का वक्त आ गया है कि मौजूदा कानूनों, नीतियों और कार्यक्रमों को अलमारियों में बंद कर नए सिरे से इस समस्या का हल खोजा जाए।
स्कूली शिक्षा की ऐसी व्यवस्था हो कि कोई भी लड़का या लड़की बालिग होने पर शादी के बारे में सोचने से पहले इतना तो पढ़-लिख जाए कि उसे यह समझ में आने लगे कि उसके भविष्य के लिए क्या सही है और क्या नहीं? एक बात और, ऐसा नहीं है कि बाल विवाह केवल हिन्दू समाज में ही पनप रहा है, यह मुस्लिमों में भी उतनी ही तेजी से बढ़ रहा है। एक स्टडी के मुताबिक शादीशुदा मुस्लिमों में आधी महिलाएं 18 वर्ष से कम उम्र की हैं।
मुस्लिमों में जहां एक ओर बाल विवाह को लेकर आंदोलन हो रहा है, वहां केवल 3 बार तलाक कहने पर तलाकशुदा मान लिए जाने और पहली बीवी के होते हुए दूसरी शादी करने के विरोध में भी मुस्लिम समाज खड़ा हो रहा है। भारतीय मुस्लिम महिला आन्दोलन द्वारा 10 राज्यों में कराए गए अध्ययन से यह बात सामने आई है कि 92 प्रतिशत महिलाओं ने पति द्वारा दूसरी शादी करने का विरोध किया है। सर्वे में शामिल लगभग 5 हजार महिलाओं में तीन-चौथाई की पारिवारिक आमदनी 50 हजार रुपए सालाना से कम थी, 82 प्रतिशत के नाम कोई जायदाद नहीं और आधी से ज्यादा घरेलू ङ्क्षहसा का शिकार हुई हैं। सन् 2014 में 235 तलाक के मुकद्दमों में 80 प्रतिशत मामले 3 बार तलाक कहने से जुड़े थे। 93 प्रतिशत महिलाएं चाहती हैं कि ऐसे मुकद्दमे बहस के जरिए लड़े जाएं और 85 प्रतिशत तो अपने समाज के कानून को बदलने की बात कर रही हैं। इसमें शादी की उम्र तय करने की बात प्रमुखहै।
इसका मतलब यह हुआ कि भारत के दो प्रमुख समुदाय हिन्दू और मुसलमान एक ही बीमारी से पीड़ित हैं और वह है बालिग होने से पहले अबोध उम्र में होने वाली शादी। जल्दी और जबरदस्ती होने वाली शादी के बाद यदि हिन्दू और मुस्लिम महिलाएं दोनों ही इस कुरीति के खिलाफ हो जाएं तो यह देश बाल विवाह मुक्त होने के सपने को साकार कर सकता है।