Edited By ,Updated: 14 Sep, 2015 12:28 AM
बड़ी, अच्छी तरह विकसित व स्थिर अर्थव्यवस्थाएं ऐसा नहीं करतीं और यदि वे यूरोपीय हों तब तो कतई नहीं-यानी अन्य देशों से शरणार्थियों को आमंत्रित करके खुले दिल से उनका स्वागत करना।
बड़ी, अच्छी तरह विकसित व स्थिर अर्थव्यवस्थाएं ऐसा नहीं करतीं और यदि वे यूरोपीय हों तब तो कतई नहीं-यानी अन्य देशों से शरणार्थियों को आमंत्रित करके खुले दिल से उनका स्वागत करना।
परंतु आजकल जर्मन अपने देश से हजारों मील दूर रह रहे सीरिया वासियों को आमंत्रित कर रहे हैं। इस ‘विलकोमनस्कुल्चर’ यानी ‘वैल्कम कल्चर’ (स्वागतम संस्कृति) की शुरूआत जर्मनी में हुई है। इसकी वजह सोशल मीडिया पर पोस्ट हुई अब्दुल्ला कुर्दी नामक सीरियाई की वह तस्वीर है जिसमें वह तुर्की के तट पर अपने 3 वर्षीय बेटे आयलान की मृत देह के साथ रोता दिखाई दे रहा था। अपनी पत्नी तथा बेटे के साथ सीरिया से दूर चले जाने के लिए जिस नौका में वे सवार थे, उसके डूबने से उन्होंने अपना पूरा परिवार गंवा दिया।
जर्मनी में रातों-रात ‘रिफ्यूजीस वैल्कम’ जैसी वैबसाइट्स तैयार हो गईं जिन पर लोग सहर्ष अपने घर सीरिया के शरणाॢथयों के साथ सांझे करने के लिए तैयार थे। उन्होंने सीरियाइयों को अपने आंकड़े ऑनलाइन करने को भी कहा ताकि उन्हें उपयुक्त लोगों के यहां ठहराया जा सके। सीरिया की सीमा पर भिजवाने के लिए भोजन, कपड़े आदि जमा किए गए। बेघर लोगों की इस मदद के लिए 12 हजार लोगों ने सहयोग दिया।
जर्मन की इन वर्तमान भावनाओं के पीछे सरकार, सिविल सोसायटी व मीडिया तीनों में आया बड़ा बदलाव है। लोगों की प्रतिक्रिया देख कर जर्मनी की चांसलर एंजला मर्केल ने भी अपने भाषण में स्पष्ट कर दिया था कि ‘एक बाहर से आने वाले वर्कर की बेटी’ होने के नाते वह शरणार्थियों का दर्द जानती हैं और ऐसे हालात में सीरिया के शरणाॢथयों का स्वागत करेंगी।
उन्होंने यह भी कहा कि वह यह भी सहन नहीं करेंगी कि इटली, ग्रीस से होते हुए आस्ट्रिया से हंगरी, फ्रांस या अन्य यूरोपीय देश सीरिया के लोगों के जर्मनी तक पहुंचने की राह में कोई बाधा पैदा करें या उनके लिए अपनी सीमाएं न खोलें।
सीरिया वासियों को जर्मनी पहुंचने के लिए हंगरी से इटली या ग्रीस में प्रवेश करना पड़ता है। इनमें से इटली जैसे कई देश, जहां हर वर्ष अफ्रीकी देशों से शरणार्थी पहुंचते हैं, नहीं चाहते कि उनके यहां और शरणार्थी आ जाएं। वहीं मंदी से जूझ रही अर्थव्यवस्था के बीच ग्रीस का कहना है कि उसके पास इन लोगों की मदद करने के लिए धन नहीं है।
परंतु फिलहाल जर्मनी अन्य यूरोपीय देशों से अपनी सीमाएं खोलने को कह रहा है ताकि वे जर्मनी पहुंच सकें। जर्मनी पहुंचने पर उनकी स्वास्थ्य जांच होती है, भोजन व आवास उपलब्ध करवाए जाते हैं, पहचान पत्र बनाए जाते हैं व उंगलियों के निशान लिए जाते हैं। इसके बाद उन्हें अपने साथ रखने वालों के परिजन, उन्हें जर्मन भाषा सिखाते हैं और नौकरी दिलवाते हैं।
आश्चर्यजनक बात यह है कि अपने समाज को जर्मनों के अलावा अन्य जातियों से मुक्त करने के लिए 2-2 विश्व युद्ध लडऩे वाला जर्मनी ऐसा कर रहा है। ग्रीस को आर्थिक सहायता न देने वाला जर्मनी हाल ही में फ्रांस में आतंकी हमलों से उत्पन्न धर्म विरोधी गिरोहों का सामना करने को भी तैयार है।
यहां तक कि 1990 में भी जर्मनी के एकीकरण के बाद पूर्वी जर्मनी के लोगों को पश्चिमी जर्मनी वाले हिस्से में बहुत गर्मजोशी के साथ ‘स्वागतम’ नहीं कहा गया था और नव नाजीवाद का आंदोलन सक्रिय रूप से एशियाइयों को जर्मनी छोड़ कर जाने के लिए डरा रहा था। लिहाजा यूरोप के ‘मोरल लीडर’ के रूप में जर्मनी की नई भूमिका से हर कोई हैरान है।
जहां दूसरा यूरोपीय देश आईसलैंड सीरियनों को लेने पर सहमत है, वहीं भारी विरोध के बीच अमरीका केवल 10,000 और इंगलैंड केवल 4,000 नए सीरियनों को अगले कुछ वर्षों में स्वीकार करेगा, जबकि कुल 76 लाख सीरियन बेघर हैं।
सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कुवैत तथा कतर जैसे स्थिर अर्थव्यवस्था वाले खाड़ी के देश शरणाॢथयों को अपने देश में प्रवेश देने के इच्छुक नहीं हैं। उन्हें इस बात का डर है कि ऐसा करने से उनके लिए न सिर्फ सुरक्षा संबंधी खतरा पैदा हो जाएगा बल्कि उनके सामाजिक ताने-बाने पर भी असर पड़ेगा।
ये देश अपने देशवासियों को सस्ता पानी-बिजली देने के अलावा सस्ते मकान देते हैं और सीरियाई शरणाॢथयों के उनके देशों में आने पर न सिर्फ शासन पर चिकित्सा सुविधाओं और खाद्य-आपूर्ति का बोझ बढ़ेगा बल्कि उनकी यहां भीड़ भी बढ़ जाएगी। उनका यह भी दावा है कि उन्होंने शरणार्थियों को शरण देने संबंधी संयुक्त राष्ट के चार्टर पर हस्ताक्षर भी नहीं किए हैं।
हालांकि जोर्डन तथा लेबनान जैसे देश गत 8 वर्षों से सीरियाई शरणार्थियों को शरण देते आ रहे हैं लेकिन अब उनकी अर्थव्यवस्था कमजोर हो चुकी है तथा अब वे और शरणार्थियों को स्वीकार नहीं कर सकते। फिलहाल तुर्की की सीमा पर ‘जर्मनी जिंदाबाद’ के नारे सुनाई दे रहे हैं।