जापानी सेना अब अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाइयों में उलझने लगी

Edited By ,Updated: 21 Sep, 2015 02:44 AM

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जापान एक शांतिप्रिय देश के रूप में जाना जाता है जो सात दशकों से अपनी सेनाओं का इस्तेमाल आत्मरक्षा के लिए करने की ही नीति पर चलने के लिए जाना जाता था।

जापान एक शांतिप्रिय देश के रूप में जाना जाता है जो सात दशकों से अपनी सेनाओं का इस्तेमाल आत्मरक्षा के लिए करने की ही नीति पर चलने के लिए जाना जाता था। 

इसकी ‘एकीकृत सेना’ का गठन द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के बाद किया गया था। तब से अधिकांशत: यह सेना जापान के द्वीपों तक ही सीमित रही है व विदेशों में इसे कहीं तैनात किए जाने की अनुमति नहीं थी पर पिछले कुछ समय में इसने अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाइयों में भाग लिया है।
 
और अब अपनी दशकों पुरानी नीति बदल कर अपनी सेना को विदेशों में कार्रवाई करने का अधिकार देने संबंधी विधेयक पारित कर दिया है। जापान की संसद में प्रधानमंत्री शिंजो एबे के नियंत्रण वाली गठबंधन सरकार को बहुमत होने के कारण इस विधेयक के पारित होने में किसी को कोई संदेह भी नहीं था पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे प्रधानमंत्री शिंजो एबे की प्रतिष्ठïा को आघात लग सकता है क्योंकि जनता को जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति शिंजो के दृष्टिïकोण को लेकर संदेह है।
 
लेकिन जापान की संसद में इस विधेयक को पारित करना कोई आसान काम नहीं था क्योंकि इस बहस के दौरान जापान के सर्वाधिक महत्वपूर्ण साथी अमरीका के संबंध में तरह-तरह की चिंताएं व्यक्त की गईं और एक वामपंथी विपक्षी दल के नेता तारो यामामोटो ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘‘इस विधेयक के पारित हो जाने पर हम लोग अमरीका द्वारा लड़े जाने वाले अवैध युद्धों में भागीदार बन जाएंगे।’’  वीरवार को तो इस पर बहस के दौरान इतनी गर्मागर्मी हो गई कि जनप्रतिनिधि माइक झपटने के लिए एक-दूसरे से उलझ गए। 
 
विपक्षी समूहों ने श्री एबे और उनकी लिबरल डैमोक्रेटिक पार्टी के अधिकारियों को प्रतीकात्मक रूप से अपराधी भी ठहराया और लम्बे-चौड़े भाषण करके यह सिद्ध करने की कोशिश की कि सेना को अधिक शक्तियां दे देने से यह अमरीका के पक्ष में अनुचित मध्य-पूर्वी व यूरोपीय युद्धों में उलझ जाएगी।
 
इसी संबंध में जापान की सोशल डैमोक्रेटिक पार्टी के नेता मिजूहो फुकुशीमा ने कहा कि हमें किसी भी हालत में हत्याओं के षड्यंत्र में शामिल नहीं होना चाहिए। ऐसी ही भावनाएं कुछ कम उग्र रूप में विभिन्न समाचार पत्रों, राजनीतिक प्रेक्षकों और आम जनता ने व्यक्त की थीं। 
 
विपक्ष ने इस मुद्दे पर शुक्रवार रात 2 बजे तक श्री एबे की विजय को रोकने की कोशिश की लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो सका। श्री एबे के विरोधी न सिर्फ इसकी वैधानिकता पर प्रश्र चिन्ह लगा रहे हैं बल्कि देश के 90 प्रतिशत से अधिक संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि श्री एबे के  इस पग से अमरीका द्वारा निर्धारित जापान के बुनियादी कानून का उल्लंघन हुआ है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय विवाद निपटाने हेतु बल प्रयोग की मनाही की गई है।
 
लेकिन युद्ध में उलझने का भय उतना ही अधिक है जितना अधिक इस कानून का विरोध है। इससे जनता की इस नाराजगी का पता चलता है कि अमरीका-जापान गठबंधन का यह पहलू लोगों से ओझल रखा गया। 
 
जापान पर अमरीका के कब्जे की समाप्ति के बाद से ही इसने अमरीका का संरक्षण स्वीकार कर रखा है। आज भी वहां 40 हजार से अधिक अमरीकी सैनिक तैनात हैं। अनेक जापानियों का विचार है कि जापान ने यह फैसला अपनी आजादी की कीमत पर किया है और अब अमरीका द्वारा जापान को अपने सैनिकों और नागरिकों को विभिन्न अभियानों में भाग लेकर अपनी जान खतरे में डालने के लिए कहा जा सकता है। 
 
जापान के एक नीति अनुसंधान समूह का कहना है कि जापान का यह पग उसकी कमजोरी का प्रतीक है और जापानी नेताओं में इतना दम ही नहीं कि वे अमरीका को मना कर सकें। इस पर श्री एबे का तर्क है कि जापान को चीन और उत्तरी कोरिया की बढ़ रही सैन्य शक्ति के खतरे का सामना करने के लिए गठबंधन में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जरूरत है और इसीलिए अमरीका ने इस पग का स्वागत किया है। 
 
लेकिन अधिकांश जापानी शंका व्यक्त कर रहे हैं कि क्या अपनी सेना को यह ढील देकर जापान अमरीका की बराबरी पर आ जाएगा और या फिर जापान एशिया में अमरीका की कठपुतली बनकर रह जाएगा और वाशिंगटन इसका जैसे चाहे मनमाफिक इस्तेमाल करेगा, जैसा कि जापान सरकार के आलोचक कहते हैं। 
 
राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि मध्य-पूर्व जैसे देशों में अमरीका का समर्थन करके जापान खतरनाक दुश्मन बना लेगा और आतंकवादियों के निशाने पर आ जाएगा। 
 
चीन ने तो जापान को चेतावनी दे भी डाली है कि अपनी सेना का कार्यक्षेत्र बढ़ाने संबंधी विवादास्पद कानून पास करके जापान इस क्षेत्र की शांति को खतरे में डाल रहा है और उसे इतिहास से सबक सीखना चाहिए। जापान सरकार ने यह निर्णय लेकर अपने ही संविधान का उल्लंघन किया है इससे इस क्षेत्र में हथियारों की दौड़ बढ़ेगी और दूसरे देशों के साथ इसके रिश्ते खराब होंगे। इसीलिए चीन ने जापान से अनुरोध किया है कि वह अपने एशियाई पड़ोसियों की चिंता को समझे और क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देने के लिए काम करे। 

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