बिहार में स्वीपर से फैशन डिजाइनर तक महिला उम्मीदवार मैदान में

Edited By ,Updated: 04 Oct, 2015 01:21 AM

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बिहार विधानसभा के चुनावों में समाज के विभिन्न वर्गों से संबंध रखने वाले उम्मीदवार भाग्य आजमा रहे हैं। जहां तक महिलाओं का संबंध है

बिहार विधानसभा के चुनावों में समाज के विभिन्न वर्गों से संबंध रखने वाले उम्मीदवार भाग्य आजमा रहे हैं। जहां तक महिलाओं का संबंध है, उनमें भी अत्यधिक विविधता देखने को मिल रही है। इनमें मुसहर समुदाय से संबंध रखने वाली मजदूर और स्वीपर उम्मीदवार से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त फैशन डिजाइनर और कालेज अध्यापिका उम्मीदवार तक शामिल हैं। 

दरभंगा (देहाती) से माक्र्सी (लेनिनवादी) पार्टी की उम्मीदवार शनीचरी देवी मुसहर समुदाय से संबंध रखने वाली एक खेत मजदूर हैं जबकि राम नगर से भाजपा प्रत्याशी महादलित समुदाय की 65 वर्षीय भगीरथी देवी हैं और वह पश्चिमी चंपारण जिले में नरकटियागंज के एक ब्लाक डिवैल्पमैंट कार्यालय में स्वीपर का काम करती थीं। तीन बार विधायक रह चुकी मात्र पांचवीं कक्षा पास भगीरथी देवी इस बार फिर अपना भाग्य आजमा रही हैं। 
 
उनका कहना है, ‘‘अपने कार्यालय में काम करते हुए हमने देखा कि किस प्रकार यहां अपना काम करवाने के लिए आने वाले गरीब लोगों, विशेषकर महिलाओं को, अधिकारियों द्वारा परेशान और अपमानित किया जाता है। यह सब देख कर मुझे बहुत पीड़ा होती थी और उसी दिन हम सोच लिए थे कि राजनीति में जाएंगे और बाबू लोगों को सबक सिखाएंगे।’’
 
इसी कारण 1980 में नौकरी छोडऩे के बाद से भगीरथी देवी ने नरकटियागंज ब्लाक में महिला संगठन खड़े करने और महिलाओं को घरेलू हिंसा, दलितों पर अत्याचार और पुरुषों के बराबर वेतन के मुद्दे पर जागरूक करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी गतिविधियां दूसरे जिलों में भी बढ़ा दीं और 1991 में विभिन्न प्रदर्शनों में भाग लेकर जेल यात्रा भी की। 
 
6 बच्चों की मां भगीरथी देवी के राजनीति में प्रवेश करने के निर्णय पर उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया था लेकिन 5 वर्ष बाद अपनी गलती महसूस होने पर उसने भगीरथी देवी से समझौता कर लिया। सन् 2000 में भगीरथी देवी पहली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर विधानसभा में पहुंचीं और अब चौथी बार चुनाव लड़ रही हैं। 
 
इनके विपरीत बेगूसराय से कांग्रेस प्रत्याशी अमिता भूषण व्यावसायिक फैशन डिजाइनर हैं। अमिता भूषण का कहना है कि उन्होंने तो कभी राजनीति में जाने की कल्पना भी नहीं की थी। वह पटना में ‘च्वाइस काटेज’ नाम से एक बुटीक चला रही थीं और बिहार महिला उद्योग संघ से भी जुड़ी हुई थीं लेकिन भाग्य ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। 
 
अमिता भूषण की मां चंद्रभानु देवी, जिनकी 2008 में मृत्यु हो गई, बेगूसराय से सांसद थीं और वह एक एन.जी.ओ. भी चलाती थीं। अमिता भी उनके काम में थोड़ा-बहुत हिस्सा लेती थीं। उन्हीं दिनों अमिता की मुलाकात कांग्रेस के अनेक नेताओं से हुई जिन्होंने उन्हें पार्टी की सदस्य बन जाने के लिए प्रेरित किया और इस प्रकार वह राजनीति में आ गईं। 
 
समस्तीपुर से भाजपा प्रत्याशी रेणु कुमारी कुशवाहा खगडिय़ा के एक कालेज में फिलास्फी की अध्यापिका हैं। उनका कहना है कि वह शुरू-शुरू में सार्वजनिक सभाओं में भाषण करते हुए घबरा जाती थीं लेकिन श्रोताओं से मिलने वाली प्रशंसा ने उनमें आत्मविश्वास पैदा कर दिया है। 
 
अन्य महिला उम्मीदवारों में से पूर्णिया से जद (यू) की बीमा देवी ने अपना बचपन पशु चराते हुए बिताया जबकि धमदाहा से जद (यू) की ही लेशी सिंह अपने पति बूटन सिंह की हत्या के बाद राजनीति में आई हैं। इसी प्रकार भाजपा की आशा सिन्हा ने 2010 में एक राजनीतिक रैली दौरान अपने पति सत्य नारायण की हत्या के बाद राजनीति में कूदने का निर्णय लिया है।
 
पिछले चुनावों में 34 महिलाएं विधानसभा में पहुंची थीं। इस बार बड़े दलों ने लगभग 50 महिलाओं को टिकट दिए हैं। अब देखना यह है कि इनमें से कितनी महिलाएं विधानसभा में पहुंचती हैं। 

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