Edited By ,Updated: 18 Sep, 2021 04:10 AM
चित्र खींचना वाकई एक कला है। जो बात मायने रखती है वह है इसका नतीजा। मैं निश्चित तौर पर भाजपा के 3 सप्ताह वाले हैप्पी बर्थडे प्लान (17 सितम्बर से 7 अक्तूबर तक) जोकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘गरीबों का मसीहा’ की छवि के बारे में है, के अंत के...
चित्र खींचना वाकई एक कला है। जो बात मायने रखती है वह है इसका नतीजा। मैं निश्चित तौर पर भाजपा के 3 सप्ताह वाले हैप्पी बर्थडे प्लान (17 सितम्बर से 7 अक्तूबर तक) जोकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘गरीबों का मसीहा’ की छवि के बारे में है, के अंत के बारे में कुछ नहीं कह सकता। भगवा पार्टी का आकलन कहता है कि महामारी की दूसरी लहर ने मोदी सरकार की छवि को थोड़ा खराब किया है। एक समाचार पत्र के 9 सितम्बर के अंक में एक रिपोर्ट के अनुसार इसी कारण पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी को उभारने के लिए एक विस्तृत योजना बनाई है।
भाजपा के जन्मदिन वाली योजना की कई विशेषताएं हैं। एक तो यह है कि प्रधानमंत्री के चित्र वाले 14 करोड़ राशन के बोरों को तैयार किया गया है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत 5 किलोग्राम राशन प्रति व्यक्ति देने की घोषणा की गई थी। दूसरी बात यह है कि केंद्रीय स्कीमों के लाभाॢथयों की तरफ से दिए जाने वाले धन्यवाद के वीडियो भी दिखाए जाएंगे। तीसरा यह कि देशभर से पोस्टल बूथों से ‘थैंक यू मोदी जी’ वाले 5 करोड़ पोस्टकार्ड प्रधानमंत्री को मेल किए जाएंगे।
चौथा मोदी के 71वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में नदियों को साफ करने के 71 स्थलों की पहचान की जाएगी।
पांचवां, कोविड वैक्सीनेशन के लिए मोदी को धन्यवाद कहने के वीडियो दिखाए जाएंगे। छठा, प्रधानमंत्री के जीवन तथा उनके कार्यों को लेकर कुछ बैठकें तथा प्रदर्शनियां लगाए जाने का भी प्रस्ताव है।सातवां, कोविड के दौरान अपने अभिभावकों को खोने वाले बच्चों के नामों के पंजीकरण करने की मुहिम चलाई जाएगी। इन्हें पी.एम. केयर्स स्कीम के तहत कवर किया जाएगा। ऐसी बातों को यह सोच कर किया जा रहा है कि मौत तथा दुखों ने बड़ी गिनती में लोगों के जीवन तथा उनकी आजीविका को बर्बाद कर दिया है जिसके चलते प्रधानमंत्री मोदी की सरकार की लोकप्रिय छवि को ठेस पहुंची है। प्रधानमंत्री मोदी की छवि को उभारने के पीछे भाजपा नेतृत्व के अच्छे इरादों की ओर मैं सवाल नहीं उठा रहा।
हम सभी जानते हैं कि भारतीय राजनीति एक अस्थिर मामला है। यहां पर किसी चीज की पक्की गारंटी नहीं है क्योंकि लोगों के मूड को जांचा नहीं जा सकता। यह बदलता रहता है। हालांकि यह माना जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी की छवि आमतौर पर लोगों के दिलों में एक गौरवमयी स्थान रखती है। उस बात के लिए हम सभी आगे बढ़ते हुए अपनी सारी उम्मीदें और निराशाएं रेत के ढेर पर छोड़ आए हैं।
जीवन आखिरकार वास्तविक तथा अवास्तविक का जोड़ है। कार्यकुशलता के मामले में प्रधानमंत्री मोदी का एक अच्छा ट्रैक रहा है। सत्ता में उनके पहले दिनों के दौरान मैं उनके भारत बदलो अभियान से बेहद प्रभावित हुआ था। अभी भी मैं भारत के चेहरे को बदलने की तरफ उनकी दिशाओं के प्रति मैं चुप्पी साधे बैठा हूं। संविधान की परिधि में काम करने वाली किसी भी राजनीतिक पार्टी के खिलाफ मेरे मन में कोई द्वेष और बुरी भावना नहीं है। मोदी का लक्ष्य अब भटका हुआ प्रतीत होता है। इसी तरह उनकी प्राथमिकताएं भी बदली हुई लगती हैं।
मैं आशा करता हूं कि राष्ट्रीय मामलों को लेकर लोगों को अपने निजी स्वार्थों और पार्टी के विचारों से निकल कर काम करना चाहिए।
प्रधानमंत्री के साथ जो समस्या है वह है उनकी बोलने की शैली। वायदे करने में वह महारत रखते हैं। लोग भी उन्हें एक अच्छी कारगुजारी वाला व्यक्ति मानते हैं। कुछ निरंतर घटनाओं ने हालांकि उनके एजैंडे से उन्हें गलत दिशा में दिखाया है। मैं जानता हूं कि संघ परिवार का एक बड़ा हिस्सा मेरे विचारों को मान्यता नहीं देगा। मोदी के साथ दूसरी समस्या यह है कि वह गैर-भाजपा नेताओं को साथ लेकर आगे नहीं बढ़ते। उन्होंने पार्टी दिग्गजों जैसे एल.के. अडवानी, डा. मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा इत्यादि को सत्ता के चक्र से बाहर रखा।
मेरा मानना है कि नरेन्द्र मोदी ने पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कदमों का अनुसरण किया है और उन्होंने ग्रामीण-शहरी वास्तविकताओं पर अपनी एक मजबूत पकड़ बना रखी है। भारत जैसे गरीबी से जूझ रहे विकासशील देश में उन्होंने अमीरों के समर्थन वाली छवि को भी नकारा है। भारत का आॢथक विकास अमीरों के पक्ष में झुका दिखाई नहीं देना चाहिए। मोदी ने ज्यादातर आॢथक सुधारों तथा युवा वर्ग के लिए नौकरियों को उत्पन्न करने के वायदे अक्सर किए हैं। प्रत्येक वर्ष 50 लाख युवा कार्यबल में प्रवेश करते हैं। मगर क्या मोदी ने उनकी देखभाल की है। निश्चित तौर पर नहीं।
इसी तरह प्रधानमंत्री में किसानों की मदद करने के विशेष प्रयासों में कमी देखी गई है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि करीब 800 मिलियन भारतवासी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर खेती से जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 10 प्रतिशत है। अपनी छवि को सुधारने के लिए लोगों की मूल समस्याओं की तरफ ध्यान देना चाहिए। इसकी बजाय मोदी को ऊंची उड़ान वाले विचारों की तरफ भागना नहीं चाहिए। उन्हें महसूस करना चाहिए कि 21वीं सदी का भारत शहरी-ग्रामीण वास्तविकताओं को नकार नहीं सकता तथा पूर्व की गलतियों को दोहरा नहीं सकता।-हरि जयसिंह