बाबुओं को करना पड़ रहा अंतहीन इंतजार

Edited By ,Updated: 04 Mar, 2019 04:07 AM

babu keen to wait endless wait

भारत सरकार के 2 वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारियों और एक यू.टी. कैडर के अधिकारी को उनकी अगली पोसिं्टग मिलनी बाकी है, जबकि उनके उत्तराधिकारी भी नियुक्त किए जा चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक, मध्य प्रदेश कैडर के 1987 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी संजय कुमार सिंह के...

भारत सरकार के 2 वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारियों और एक यू.टी. कैडर के अधिकारी को उनकी अगली पोस्टिंग मिलनी बाकी है, जबकि उनके उत्तराधिकारी भी नियुक्त किए जा चुके हैं।

सूत्रों के मुताबिक, मध्य प्रदेश कैडर के 1987 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी संजय कुमार सिंह के पद पर 1989 बैच की आई.ए.एस. अधिकारी अंसुली आर्य को यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यू.एस.ओ.एफ.) में नियुक्त किया गया था लेकिन संजय कुमार सिंह को अभी तक अगला पदभार नहीं दिया गया है। इसी तरह, महाराष्ट्र कैडर के 1986 बैच की अधिकारी जयश्री मुखर्जी को दिसम्बर में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से सहायक सचिव से संयुक्त सचिव के पद पर अपग्रेड करके अतुल कुमार तिवारी की नियुक्ति के बाद स्थानांतरित कर दिया गया था। वह भी अभी अपनी नई पोस्टिंग का इंतजार कर रही हैं।

सूत्रों का कहना है कि पिछले दिसम्बर में गोवा के पूर्व मुख्य सचिव धर्मेंद्र शर्मा भी अपने उत्तराधिकारी के रूप में परिमल राय की नियुक्ति के बाद छुट्टी पर चले गए थे। एम.एच.ए. यू.टी. कैडर के अधिकारियों और उपराज्यपाल के कैडर को नियंत्रित करने वाले अधिकार के रूप में इस तरह की प्लेसमैंट महत्वपूर्ण है क्योंकि उनकी आगे की पोस्टिंग भी नमो प्रशासन पर निर्भर करती है। ऐसे वरिष्ठ अधिकारियों को एक लंबे समय के इंतजार में रखना दुर्लभ ही होता है। चिंता की बात यह है कि न केवल अधिकारियों को करियर के बारे में सोचना पड़ रहा है बल्कि अपने वेतन को लेकर भी अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनके पिछले विभाग या मंत्रालय से उन्हें रिलीव कर दिया गया और नए में नियुक्ति नहीं मिली है। 

रेलवे के एक पद के लिए कई बने दावेदार
रेलवे बोर्ड में कार्यकारी निदेशक स्थापना (खेल) के पद को लेकर कई लोग भागदौड़ कर रहे हैं। इसका महत्व इस तथ्य से रेखांकित होता है कि भारतीय रेलवे देश में प्रशंसित खिलाडिय़ों के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है। आश्चर्य की बात नहीं है, इसलिए एक दर्जन से अधिक इच्छुक दावेदार पद पर नियुक्ति के लिए जूझ रहे हैं, जो उस समय रिक्त हो गया था जब सुश्री रेखा यादव (आई.आर.पी.एस.: 1995) को श्रम और रोजगार मंत्रालय के तहत अतिरिक्त आयुक्त, सी.पी.एफ.ओ. के रूप में नियुक्त किया गया था।

सूत्रों के अनुसार, दावे और प्रतिस्पर्धा कई कारणों से बढ़ी है। कथित तौर पर आधा दर्जन अधिकारी इस पद को प्राप्त करने की दौड़ में हैं जिनमें अश्विनी कुमार यादव (आई.आर.एस.ई.); रविंद्र भाखर (सी.पी.आर.ओ., सी.आर.); अजीत सिंह यादव (आई.आर.एस.एस.); एम. एस. सुनील (आर.पी.एफ.); प्रेमा के. लोचन (आई.आर.एस.ई.ई.); विनामारा मिश्रा (डी.जी.एम., एन.आर.); विजेन्द्र सिंह (जी.एम.एन.आर. के सचिव); सत्य नारायण मीणा (आई.आर.एस.एस.ई.) शामिल हैं। इस कड़े मुकाबले में विजेता कौन बनेगा, यह देखा जाना बाकी है। 

ममता के बाबुओं को आखिर कितना खतरा?
ऐसा लगता है कि कोलकाता में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई में हाल ही में प्रदर्शन करने वाले 5 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की केन्द्र सरकार की धमकी को लागू करने में काफी मुश्किल है, हालांकि यह कहना काफी आसान था। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, गृह मंत्रालय (एम.एच.ए.) ने 5 अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की मांग की थी और उनके सेवा पुरस्कारों को छीनने और उन्हें केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से प्रतिबंधित करने पर विचार कर रहा था। नामित अधिकारियों में कोलकाता के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त सुप्रतीम सरकार और विनीत गोयल शामिल हैं, जो मुख्यमंत्री की सुरक्षा टीम के प्रमुख हैं।

हालांकि, सूत्रों का कहना है कि इस तरह का आदेश बिना जांच के जारी नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, किसी अधिकारी के खिलाफ किसी भी अनुशासनात्मक कार्रवाई को राज्य सरकार द्वारा शुरू किया जाना चाहिए, उसके बाद संबंधित कागजात मंत्रालय को सौंपे जाते हैं। इस उदाहरण के बाद से, यह खुद मुख्यमंत्री थीं जिन्होंने विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था। यह सुरक्षित रूप से तय माना जा सकता है कि राज्य सरकार वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ इस तरह का कोई कदम नहीं उठाएगी। वास्तव में, केन्द्र इसके बारे में फिलहाल जुबानी जमाखर्च तो कर सकता है लेकिन पुलिस के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता है।-दिलीप चेरियन

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