कितना कुछ सिखा गए ‘बलरामजी दास टंडन’

Edited By ,Updated: 14 Aug, 2020 05:23 AM

balaramji das tandon has taught so much

हर महान व्यक्ति के व्यक्तित्व में कुछ खास गुण होते हैं। ये चाहे जन्म से या फिर अनुभव से प्राप्त होते हैं। कड़ी मेहनत, दूरदर्शिता, विनम्रता, दृढ़ता और राष्ट्रीयता जैसे गुण मेरे ससुरजी स्व. बलरामजी दास टंडन में व्याप्त थे। आज के समय में हर व्यक्ति हर...

हर महान व्यक्ति के व्यक्तित्व में कुछ खास गुण होते हैं। ये चाहे जन्म से या फिर अनुभव से प्राप्त होते हैं। कड़ी मेहनत, दूरदर्शिता, विनम्रता, दृढ़ता और राष्ट्रीयता जैसे गुण मेरे ससुरजी स्व. बलरामजी दास टंडन में व्याप्त थे। आज के समय में हर व्यक्ति हर चीज तेजी से करना या पाना चाहता है। यह फास्ट फूड, फास्ट  कम्युनिकेशन, फास्ट यात्रा इत्यादि का युग है। लेकिन महान व्यक्ति कभी भी फास्ट फार्वर्ड मोड में नहीं बन सकते। एक महान व्यक्तित्व के निर्माण हेतु, उनके चरित्र, उनके व्यक्तित्व आदि में आज भी पुरानी कहावत ‘सहज पके सो मीठा होय’ लागू होती है। 

जैसे कि एक घर कई ईंटों से बनता है ऐसे ही एक राष्ट्र सभी नागरिकों को मिलाकर बनता है। लेकिन ईंटों के अलावा घर के बीम और खंभे भी महान भूमिका निभाते हैं। ठीक इसी तरह स्वतंत्रता सेनानियों ने हजारों लोगों को एकजुट किया और देश को स्वतंत्र बनाने का बीड़ा उठाया। इतिहास इन सब घटनाओं का गवाह है और जो भी रुचि रखता है वह इसे पढ़ सकता है। जो दस्तावेज नहीं है वह यह है कि जो लोग अपने देश के लिए लड़े थे वे किस मिट्टी के बने थे? उनका व्यक्तित्व कैसा था। वे कैसे इतने सहनशील, प्रभावशाली और देशभक्त बने उनकी मातृभूमि के प्रति प्रतिबद्धता, अपने परिवार के प्रति उनके प्रेम से बहुत ऊपर थी। उनके मन का भाव यह था, ‘‘सर कटा सकते हैं लेकिन, सर झुका सकते नहीं।’’ 

छोटी-छोटी बातों से इंसान के चरित्र का पता चलता है। हर परिस्थिति में बलरामजी दास टंडन अपनी मानसिक और शारीरिक स्वस्थता के लिए रोजाना प्रार्थना व व्यायाम/सैर जरूर करते थे। वे कभी बिजली या पानी को जाया होते देखते तो खुद सभी लाइट के स्विच बंद करते, गिलास में उतना पानी लेते जितना आवश्यक हो, नहाने में भी कम से कम पानी इस्तेमाल करते, भोजन कभी व्यर्थ नहीं करते इत्यादि। वह समय के बहुत पाबंद थे, कभी किसी प्रोग्राम में देरी से नहीं पहुंचते थे। वे कभी अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करते थे। 

किसी जरूरतमंद व्यक्ति की यथासंभव सहायता अवश्य करते थे। मंत्री होते हुए एक अवसर पर एक सफाई कर्मचारी ने उन्हें कुछ अपशब्द कह दिए। किसी ने उन्हें सलाह दी कि इसे नौकरी से निवृत्त कर दिया जाए। लेकिन उन्होंने उसे समझाकर छोड़ दिया और बोले कि ‘‘अपनी कलम की ताकत से मैं किसी की जिंदगी बना सकता हूं, यह मेरा सौभाग्य है, लेकिन किसी की जिंदगी तबाह करना मेरी फितरत नहीं!’’ 

1975 में आपातकाल के दौरान उन्हें 19 महीनों के लिए जेल में रखा गया था। उस समय के दौरान, उन्होंने कहा कि उन्होंने दाल और बाटी मार कर गोलाकार रोटी बनाने का तरीका इजाद किया। वह अन्य कैदियों के साथ शतरंज और वॉलीबॉल खेलते थे। उन्होंने एक-दूसरे को भूगोल, राजनीति विज्ञान पढ़ाया। गौरतलब यह है कि उन्होंने जो भी अवसर मिला उसे गंवाया नहीं और इसमें भी बहुत कुछ सीखा और सिखाया। उन्होंने अनुशासन और देश भक्ति के अपने सिद्धांतों को कभी भुलाया नहीं। उन्होंने उस समय का उपयोग अपने मजबूत कौशल के लिए किया। वह हमेशा नए विचारों को दिलचस्पी से सुनते थे और बड़ी स्पष्टता से अपने विचार समझाया करते थे। 

पिताजी केवल भारतीय कपड़े व जूते पहनने पर जोर देते थे। वह हमेशा अपने बच्चों के साथ हदी या पंजाबी में बातचीत करते थे। वह अंग्रेजी जानते थे, परन्तु उन्हें अपनी मातृभाषा पर गर्व महसूस होता था और वह इस भावना को अपने परिवार से सांझा करते रहते थे। वह कहते थे कि अंग्रेजों ने भारतीयों को नीचा दिखाने की भरपूर कोशिश की। अंग्रेजों ने भारतीयों के दिलो-दिमाग में यह बैठा दिया कि जो लोग अंग्रेजी नहीं बोल सकते वह पिछड़े हुए हैं।

भारतीय वेशभूषा, खाने के व्यंजन, त्यौहार, संस्कार, रीति-रिवाज सबको एक मजाक का विषय बना दिया। लेकिन आज की तारीख में भारतीय संस्कृति की हर चीज जैसे कि हाथ जोड़ कर नमस्कार करना, योग, आयुर्वेद, तुलसी, नीम का सेवन, गाय के दूध की अहमियत, वास्तु शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र इत्यादि का गुणगान विश्व भर में हो रहा है। पिताजी कहते थे कि आप की संस्कृति आपकी मां की तरह है, उसका आदर-सत्कार करो। इसके साथ-साथ दूसरों की संस्कृति को नीचा न दिखाओ। 

आज जब मैं अपने बच्चों और उनके दोस्तों और अन्य युवाओं को देखती हूं, तो मुझे आश्चर्य होता है कि वर्तमान युवा पीढ़ी देश-विदेश के मामलों में शामिल होने के लिए कितनी जागरूक और उत्सुक है। अगर आप किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लॉगइन करते हैं, तो यह देखकर चकित रह जाएंगे कि युवाओं की आवाज कितनी बुलंद है! वे हर चीज पर अपनी राय रखते हैं। न केवल देश, बल्कि दुनिया भर के विषयों पर भी! वे भारत-चीन संबंधों, सुशांत सिंह राजपूत, पी.एम. मोदी, चीन में बनी चीजों के बहिष्कार आदि, सभी के बारे में राय रखते हैं । 

किसी की आलोचना करना बहुत आसान है। आज के युवा कई तरह से सरकार की आलोचना कर रहे हैं, लेकिन एक पल के लिए, सरकार के स्थान पर खड़े होकर तो देखिए और सोचिए कि निर्णय कैसे और क्यों किए जाते हैं। यदि आपको लगता है कि निर्णय गलत है, तो विकल्प क्या है। ज्यादातर लोगों के पास कोई सुझाव नहीं हैं। वे केवल आलोचना कर सकते हैं। सिर्फ आलोचना करने के लिए ही आलोचना करने से क्या लाभ। यदि आप कुछ करना चाहते हैं तो समस्या का हिस्सा न बनें, बल्कि समाधान का हिस्सा बनें। 

आज युवाओं के लिए एक स्वर्णिम अवसर है कि सभी की मानसिकता चीन विरोधी हो गई है। यह निर्माण बाजार में प्रवेश करने और चीन से आयात होने वाली हर चीज को बनाने का समय है। यह बड़े औद्योगिक उपकरण, फर्नीचर और इलैक्ट्रॉनिक और यहां तक कि बच्चों के लिए खिलौने भी बनाने का अवसर है। यह भारत को और सशक्त बनाने का समय है। यह भारत को आत्मनिर्भर बनाने का समय है। यदि आप किसी भूखे को मछली देते हैं तो आप उसकी सिर्फ एक दिन की भूख मिटाते हैं, परन्तु यदि आप उसे मछली पकडऩा सिखा देते हैं तो आप उसके लिए जीवन भर के भोजन का इंतजाम कर देते हैं। 

पिताजी के बताए रास्ते पर चलते, हमने उनके देहांत के पश्चात, बलरामजी दास टंडन चैरिटेबल फाऊंडेशन की स्थापना की। इस माध्यम से हम कई विधवाओं को मासिक राशन दे रहे हैं और उन्हें कुछ सिलाई, ब्यूटी पार्लर का काम आदि सिखाने की भी व्यवस्था कर रहे हैं। कोरोना बीमारी के चलते करीब 1 लाख मास्क, कुछ पी.पी.ई. किट्स और कई जरूरतमंदों को राशन भेजा गया है। उनकी दूसरी पुण्यतिथि 14 अगस्त 2020 पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जे.पी. नड्डा, एक वैबीनार को संबोधित करके, टंडनजी के पीछे के महामानव के बारे में बताएंगे। 

आज भारत की युवा पीढ़ी को जो अवसर मिला है, इसका फायदा जरूर उठाना चाहिए! जिन्होंने देश के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया उनके जीवन से जरूर कुछ सीखें। हमारे बुजुर्ग एक चलती-फिरती पाठशाला थे...अपनी करनी से बहुत कुछ सिखा गए!-प्रिया एस. टंडन
 

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