क्योंकि मैं भारत की ‘पुलिस’ हूं

Edited By ,Updated: 13 Jul, 2020 02:16 AM

because i am the police of india

कानपुर में जिस तरह विकास दुबे ने 8 पुलिस वालों की निर्मम हत्या की उससे प्रदेश की ही नहीं देश भर के पुलिसकर्मियों में आक्रोश है। इस पूरे घटनाक्रम में उत्तर प्रदेश शासन के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों और नेताओं की भूमिका पर तमाम सवाल उठ

कानपुर में जिस तरह विकास दुबे ने 8 पुलिस वालों की निर्मम हत्या की उससे प्रदेश की ही नहीं देश भर के पुलिसकर्मियों में आक्रोश है। इस पूरे घटनाक्रम में उत्तर प्रदेश शासन के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों और नेताओं की भूमिका पर तमाम सवाल उठ रहे हैं। जिन्होंने इस जघन्य कांड के पहले और बाद भी विकास दुबे की मदद की। अभी बहुत सारे तथ्य सामने आने बाकी हैं जिन्हें दबाने के उद्देश्य से ही विकास दुबे को मारा गया। इसी संदर्भ में पुलिस वालों की तरफ से ये विचारोत्तेजक पोस्ट सोशल मीडिया पर आई है:

‘मैं पुलिस हूं...’
मैं जानता था कि फूलन देवी ने नरसंहार किया है। मैं जानता था कि शहाबुद्दीन ने चंद्रशेखर प्रसाद के 3 बेटों को मारा है। मैं जानता था कि कुलदीप सेंगर का चरित्र ठीक नहीं है और उसने दुराचार किया है। मैं जानता था कि मलखान सिंह बिश्नोई ने भंवरी देवी को मारा है। मैं जानता हूं कि दिल्ली के दंगों में अमानतुल्लाह खान ने लोगों को भड़काया। मैं जानता हूं कि सैयद अली शाह गिलानी, यासीन मलिक, मीरवायज उमर फारूक आतंकवादियों का साथ देते हैं। लेकिन संविधान ने बोला कि चुप ये सभी नेता हैं इनके बॉडीगार्ड बनो, मैं बना क्योंकि मैं पुलिस हूं। आपको भी पता था कि इशरत जहां, तुलसी प्रजापति आतंकवादी थे लेकिन फिर भी आपने हमारे वंजारा साहेब को कई सालों तक जेल में रखा। मैं चुप रहा क्योंकि मैं पुलिस हूं। कुछ सालों पहले हमने विकास दुबे, जिसने एक नेता का खून किया था, को आपके सामने प्रस्तुत किया था लेकिन गवाह के अभाव में आपने उसे छोड़ दिया था, मैं चुप रहा क्योंकि मैं पुलिस हूं। 

लेकिन माईलॉर्ड विकास दुबे ने इस बार ठाकुरों को नहीं, चंद्रशेखर के बच्चों को नहीं, भंवरी देवी को नहीं किसी नेता को नहीं मेरे अपने 8 पुलिस वालों की बेरहमी से हत्या की थी, उसको आपके पास लाते, तो देर से ही सही लेकिन आप मुझे उसका बॉडीगार्ड बनने पर जरूर मजबूर करते, इसी उधेड़बुन और डर से मैंने रात भर उज्जैन से लेकर कानपुर तक गाड़ी चलाई और कब नींद आ गई पता ही नहीं चला और एक्सीडैंट हो गया और उसके बाद की घटना सभी को मालूम है। माईलॉर्ड कभी सोचिएगा कि अमरीका जैसे सम्पन्न और आधुनिक देश में 5 सालों में पुलिस ने 5511 अपराधियों का एनकाऊंटर किया वहीं हमारी विशाल जनसंख्या वाले देश में पिछले 5 सालों में 824 एनकाऊंटर हुए और सभी पुलिस वालों की जांच चल रही है।

मूल में जाइए और रोग को जड़ से खत्म कीजिए, रोग हमारी कानून प्रणाली में है जिसे सही करने की आवश्यकता है अन्यथा देर सवेर ऐसी घटनाओं को सुनने के लिए तैयार रहिए। पुलिस को स्वायत्तता दीजिए। हमें इन नेताओं के चंगुल से बचाइए ताकि देश और समाज अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सके। 

प्रार्थी, नेताओं की कठपुतली, हिदुस्तान की पुलिस’ 
यह बड़े दुख और चिंता की बात है कि कोई भी राजनीतिक दल पुलिस व्यवस्था के मौजूदा स्वरूप में बदलाव नहीं करना चाहता। इसलिए न सिर्फ पुलिस आयोगों और समितियों की सिफारिशों की उपेक्षा कर दी जाती है बल्कि आजादी के 73 साल बाद भी आज देश औपनिवेशिक मानसिकता वाले संविधान विरोधी पुलिस कानून को ढो रहा है। इसलिए इस कानून में आमूल-चूल परिवर्तन होना परम आवश्यक है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की पुलिस को जनोन्मुख होना ही पड़ेगा। पर राजनेता ऐसा होने दें तब न। 

आज हर सत्ताधीश राजनेता पुलिस को अपनी निजी जायदाद समझता है। नेताजी की सुरक्षा, उनके चारों ओर कमांडोका का घेरा, उनके पारिवारिक उत्सवों में मेहमानों की गाडिय़ों का नियंत्रण, तो ऐसे वाहियात काम हैं ही जिनमें इस देश की ज्यादातर पुलिस का, ज्यादातर समय कााया होता है। इतना ही नहीं अपने मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए या उन्हें नियंत्रित करने के लिए पुलिस का दुरुपयोग अपने कार्यकत्र्ताओं और चमचों के अपराधों को छिपाने में भी किया जाता है। एक तरफ तो हम आधुनिकीकरण की बात करते हैं और जरा-जरा सी बात पर सलाह लेने पश्चिमी देशों की तरफ भागते हैं और दूसरी तरफ हम उनकी पुलिस व्यवस्था से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं हैं। वहां पुलिस जनता की रक्षक होती है, भक्षक नहीं। लंदन की भीड़ भरी सड़क पर अक्सर पुलिसकर्मियों को बूढ़े लोगों को सड़क पार करवाते हुए देखा जा सकता है। पश्चिम की पुलिस ने तमाम मानवीय क्रिया-कलापों से वहां की जनता का विश्वास जीत रखा है। जबकि हमारे यहां यह स्वप्न जैसा लगेगा। 

अपराधों की जांच बिना राजनीतिक दखलंदाजी के और बिना पक्षपात के फुर्ती से करे, लगभग ऐसा कहना हर समिति की रिपोर्ट का रहा है। पर लाख टके का सवाल यह है कि क्या हो यह तो सब जानते हैं, पर हो कैसे, यह कोई नहीं जानता। राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना कोई भी सुधार सफल नहीं हो सकता।-विनीत नारायण
 

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