क्योंकि वायदे तो केवल वायदे होते हैं

Edited By ,Updated: 24 Mar, 2021 02:44 AM

because promises are only promises

ट प्राप्त करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा लोकप्रिय चुनावी वायदे किए जा रहे हैं। इन वायदों में अनेक मुफ्त उपहारों की घोषणा की जा रही है। आम आदमी से लेकर ऋणग्रस्त किसान और करदाताआें तक के लिए उपहारों की घोषणा

वोट प्राप्त करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा लोकप्रिय चुनावी वायदे किए जा रहे हैं। इन वायदों में अनेक मुफ्त उपहारों की घोषणा की जा रही है। आम आदमी से लेकर ऋणग्रस्त किसान और करदाताआें तक के लिए उपहारों की घोषणा की जा रही है और इस तरह चुनावी द्वंद्व में मतदाताआें को आकॢषत करने का प्रयास किया जा रहा है। 

विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा इस आधार पर लोकप्रिय वायदे किए जा रहे हैं कि तर्कयुक्त मुद्दों और ठोस कार्यक्रमों की बजाय लोकप्रिय वायदों से बेहतर चुनावी लाभ मिलते हैं और इसी के चलते उन्होंने ठोस आॢथक नीति को ताक में रख दिया और राजनीतिक खेल में शामिल हो गए। किसी को परवाह नहीं है क्योंकि वायदे केवल वायदे होते हैं। क्या सरकार का पैसा किसी का पैसा नहीं होता है? देखिए किस तरह हमारे नेतागण पांच राज्यों में लोकप्रिय वायदे, योजनाआें और ऋण माफी की घोषणाएं कर रहे हैं और इस तरह वे इन राजनीतिक घोषणाआें को वोट बैंक प्रतिशत में बदल रहे हैं। चुनावी राजनीति में ये नेता सामाजिक और आर्थिक उत्थान को वोट बैंक के राजनीतिक तराजू पर तोलते हैं। 

इस मामले में इस बार भाजपा सबसे आगे है जो 1 रुपए प्रति किलो चावल और गेहूं, अन्नपूर्णा  कैंटीन में 5 रुपए का भोजन, भूमिहीन किसानों को 4 हजार रुपए प्रति वर्ष, सरकारी नौकरियों में महिलाआें के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण, 75 लाख किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के अंतर्गत 18 हजार रुपए प्रति वर्ष, केजी से लेकर स्नातकोत्तर तक बालिकाओं के लिए नि:शुल्क शिक्षा और सी.ए.ए. को लागू करने के माध्यम से सोनार बंगला का नारा दे रही है। 

तृणमूल की ममता दीदी भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। उन्होंने एक वर्ष के भीतर रोजगार के पांच लाख अवसर सृजित करने, घर-घर नि:शुल्क राशन पहुंचाने, आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को प्रति 500 रुपए, विधवा पैंशन 1 हजार रुपए करने, 10 लाख छात्रों को बिना किसी जमानत के किसान कार्ड योजना देने का वायदा किया है। तमिलनाडु में दोनों द्रविड पार्टियां न केवल सोना, टी.वी., फ्रिज, माइक्रोवेव देने का वायदा कर रही हैं अपितु सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक पार्टी ने प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने, छ: नि:शुल्क एल.पी.जी. सिलैंडर उपलब्ध कराने, सभी के लिए अम्मा आवास, वाशिंग मशीन देने और सोलर गैस स्टोव उपलब्ध कराने का वायदा किया है। 

कांग्रेस कल हो या न हो के सिंड्रोम में जकड़ी हुई है और इसलिए राहुल-प्रियंका ने असम में 5 लाख सरकारी नौकरी देने, गृहणियों को प्रति माह 2 हजार रुपए देने, 200 यूनिट नि:शुल्क बिजली उपलब्ध कराने, चाय बागान श्रमिकों को 365 रूपए दैनिक मजदूरी देने तथा सी.ए.ए. को रद्द करने का वायदा किया है। केरल में सत्तारूढ़ लैफ्ट डैमोक्रेटिक फ्रंट ने मासिक कल्याण पैंशन के 1600 रुपए प्रति माह से बढ़ाकर 2500 रुपए प्रति माह करने, रोजगार के 40 लाख नए अवसर पैदा करने, टैक्सी और ऑटो रिक्शा ड्राइवर के लिए कल्याण योजनाएं शुरू करने, कॉयर-कृषि-काजू कामगारों और ताड़ी कामगारों के लिए कल्याण योजनाएं शुरू करने, कृषि मजदूरों की मजदूरी में 50 प्रतिशत की वृद्धि करने का वायदा किया है। 

नि:संदेह ऐसे लोकप्रिय वायदे करना कोई नई बात नहीं है और 2021 के ये विधानसभा चुनाव भी पिछले चुनावों से अलग नहीं हैं। विगत 60 वर्षों में लोकप्रिय वायदे करने की इस राजनीति ने अपना सर उठा दिया है। इसकी शुरूआत वर्ष 1967 में तमिलनाड़ु में द्रमुक ने की थी जब उसने 1 रुपए प्रति किग्रा की दर पर चावल उपलब्ध कराने का वायदा किया था। उसके बाद आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम के तेलुगू विडा एन.टी.आर. रामाराव ने वर्ष 1993 में दो रुपए प्रति किग्रा की दर पर चावल उपलब्ध कराने का वायदा किया और उसे अपनी जीत का प्रतीक बनाया। 

कांग्रेस की इंदिरा गांधी ने वर्ष 1971 में गरीबी हटाआे का नारा देकर लोकप्रिय राजनीति की शुरूआत की। उसके बाद भाजपा ने मंदिर का नारा दिया तो वी.पी. सिंह ने मंडल का। उसके बाद नरसिम्हा राव ने रोटी, कपड़ा और मकान तो सोनिया गांधी ने कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ का नारा दिया। भाजपा ने वर्ष 2014 में अच्छे दिन और 2019 में सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास का नारा दिया। बाद के वर्षों में कोई नया वायदा करने के लिए न बचने के कारण आम आदमी पार्टी ने इन पुराने वायदों को नए रूप में पेश किया। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भाजपा के बिजली, पानी, सड़क के नारे में सुधार किया और दिल्ली के गरीब लोगों को पैसा देने का वायदा किया। 

इससे एक प्रश्न उठता है कि इन लोकप्रिय वायदों को पूरा करने के लिए पैसा कहां से आएगा। स्पष्ट है यह पैसा लोगों पर कर लगाकर ही प्राप्त किया जा सकता है। सस्ती दर पर चावल, गेहूं और नि:शुल्क बिजली का वायदा करने को उचित माना जा सकता है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 राजनीतिक पाॢटयों को अपने चुनावी घोषणा पत्र में मतदाताआें को नि:शुल्क उपहार देने के वायदे करने से रोकती है। इसलिए आवश्यक है कि राजनीतिक दलों के लिए यह बाध्यकारी बनाया जाए कि वे निर्वाचन आयोग को सूचित करें कि वे चुनाव जीतने के बाद उनके द्वारा किए गए नि:शुल्क उपहारों के वायदे को लागू करने के लिए पैसा कहां से लाएंगे?-पूनम आई. कौशिश
 

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