क्योंकि ‘सबके राम’ और ‘सब में राम’ हैं

Edited By ,Updated: 06 Aug, 2020 03:09 AM

because there is everyones ram and everybodys ram

श्रद्धेय महंत नृत्यगोपाल दास जी महाराज सहित उपस्थित सभी संत चरण, भारत के आदरणीय और जनप्रिय प्रधानमंत्री जी, उत्तर प्रदेश की मा. राज्यपाल जी, उत्तर प्रदेश के मा. मुख्यमंत्री जी, सभी नागरिक सज्जन माता-भगिनी। आज आनंद का क्षण है, बहुत प्रकार से आनंद है।...

श्रद्धेय महंत नृत्यगोपाल दास जी महाराज सहित उपस्थित सभी संत चरण, भारत के आदरणीय और जनप्रिय प्रधानमंत्री जी, उत्तर प्रदेश की मा. राज्यपाल जी, उत्तर प्रदेश के मा. मुख्यमंत्री जी, सभी नागरिक सज्जन माता-भगिनी। 

आज आनंद का क्षण है, बहुत प्रकार से आनंद है। हम सबने एक संकल्प लिया था। मुझे स्मरण है कि तब के हमारे संघ के सरसंघचालक बाला साहब देवरस जी ने, हम सबको आगे कदम बढ़ाने से पहले यह बात याद दिलाई थी कि बहुत परिश्रम के साथ 20-30 साल काम करना पड़ेगा, तब कहीं यह काम संपन्न होगा। हमने 20-30 साल काम किया, तीसवें साल के प्रारंभ में हमें संकल्प पूर्ति का आनंद मिल रहा है। सबने जी-जान से प्रयास किए एवं उनमें से अनेक लोगों ने बलिदान भी दिए। वे सब आज सूक्ष्म रूप में यहां उपस्थित हैं। 

ऐसे भी अनेकों हैं जो प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित नहीं हो सकते, परिस्थिति के कारण वे यहां आ नहीं पाए। रथयात्रा का नेतृत्व करने वाले अडवानी जी अपने घर पर बैठ कर इस कार्यक्रम को देख रहे होंगे। कितने ही लोग ऐसे हैं जो आ भी सकते हैं पर परिस्थिति ही ऐसी है कि बुलाए नहीं जा सकते। वे भी अपनी-अपनी जगह से इस कार्यक्रम को देख रहे होंगे। मैं पूरे देश में देख रहा हूं कि आनंद की लहर है, सदियों की आस पूरी होने का आनंद है। 

लेकिन आज सबसे बड़ा आनंद है, भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिस आत्मविश्वास और जिस आत्मभान की आवश्यकता थी, उसका सगुण-साकार अधिष्ठान बनने का शुभारंभ आज हो रहा है। वह अधिष्ठान है उस आध्यात्मिक दृष्टि का, ‘सिया राममय सब जग जानहि’। सारे जगत को अपने में देखने और स्वयं में जगत को देखने की भारत की दृष्टि। इसी कारण से भारत के प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार आज भी विश्व में सबसे अधिक सज्जनता का व्यवहार होता है और इस देश में सबके साथ सामूहिक व्यवहार वसुधैव कुटुम्बकम का होता है। 

ऐसा स्वभाव और इसके साथ-साथ अपने कत्र्तव्य का निर्वाह, व्यावहारिक जगत की माया की सभी दुविधाओं में से रास्ते निकालते हुए, जितना संभव हो सके सबको साथ लेकर चलने की जो एक विधि बनती है, उसका अधिष्ठान आज यहां पर बन रहा है। परम वैभव संपन्न और सबका कल्याण करने वाले भारत के निर्माण का शुभारंभ आज उन हाथों से हो रहा है जिनके पास इस निर्माण के व्यवस्था-तंत्र का नेतृत्व है यह और भी आनंद की बात है। 

भूमि पूजन के अवसर पर भागवत ने कहा कि आज सभी का स्मरण हो रहा है, और स्वाभाविक विचार भी आता है कि अशोक जी आज यहां रहते तो कितना अच्छा होता, पू. महंत परमहंस दास जी आज होते तो कितना अच्छा होता।  इस आनंद में एक स्फुरण है, एक उत्साह है- हम कर सकते हैं, हमको करना है, यही करना है। 

एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मन: ।
 स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवा: 

हमें सबको जीवन जीने की शिक्षा देनी है। अभी कोरोना का दौर चल रहा है, सारा विश्व अंतर्मुख हो गया है एवं विचार कर रहा है कि कहां गलती हुई और आगे का रास्ता कैसे निकलेगा। प्रभु श्रीराम के जीवन से लेकर आज तक अगर हम देखेंगे तो पाएंगे कि वो सारा पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरवृत्ति हमारे रग-रग में है। हमने उसको खोया नहीं है, वह हमारे पास ही है। हम शुरू करेंगे तो हो जाएगा। इस प्रकार का विश्वास और प्रेरणा का स्फुरण आज हमको इस दिन से मिलता है और सभी भारतवासियों को मिलता है, कोई भी अपवाद नहीं है क्योंकि सबके राम हैं और सबमें राम हैं। 

अब यहां भव्य मंदिर बनेगा, सारी प्रक्रिया शुरू हो गई है एवं दायित्व बांटे गए हैं। जिनका जो काम है वो करेंगे। उस समय हम सब लोगों को क्या काम रहेगा? हम सब लोगों को अपने मन की अयोध्या को सजाना और संवारना है। इस भव्य कार्य के लिए प्रभु श्रीराम जिस ‘धर्म’ के विग्रह माने जाते हैं-वह जोड़ने वाला, धारण करने वाला, ऊपर उठाने वाला, सबकी उन्नति करने वाला धर्म और सबको अपना मानने वाला धर्म, उस धर्म की ध्वजा को अपने कंधे पर लेकर संपूर्ण विश्व को सुख-शांति देने वाला भारत हम खड़ा कर सकें, इसलिए हम सबको अपने मन की अयोध्या को बनाना है। यहां पर जैसे-जैसे मंदिर बनेगा, मन की अयोध्या भी साथ-साथ बनती चली जानी चाहिए। और इस मंदिर के पूर्ण होने से पहले हमारा मन मंदिर भी बनकर तैयार रहना चाहिए, इसकी आवश्यकता है। यह मन मंदिर कैसा रहेगा, तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में बताया है। 

काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा॥
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया॥
जाति-पांति धनु धरमु बड़ाई। प्रिय परिवार सदन सुखदाई॥
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। तेहि के हृदयं रहहु रघुराई॥ 

हमारा हृदय भी राम का बसेरा होना चाहिए। सभी दोषों से, विकारों से, द्वेषों से एवं शत्रुता से मुक्त होकर दुनिया की माया कैसी भी हो उस में सब प्रकार के व्यवहार करने के लिए समर्थ, हृदय से सब प्रकार के भेदों को तिलांजलि देकर, केवल अपने देशवासी ही नहीं अपितु संपूर्ण जगत को अपनाने की क्षमता रखने वाला इस देश का व्यक्ति, और ऐसा समाज गढऩे का यह काम है। यह प्रतीक हम सबको सदैव प्रेरणा देता रहेगा। 

भव्य राम मंदिर को बनाने का कार्य भारतवर्ष के लाखों अन्य मंदिरों के समान केवल एक और मंदिर बनाने का काम नहीं है अपितु देश के सारे मंदिरों में स्थापित मूर्तियों का जो आशय है, उस आशय के पुनप्र्रकटीकरण और उसके पुनस्र्थापन करने का शुभारंभ आज यहां बहुत ही समर्थ हाथों से हुआ है। इस मंगल अवसर पर, आनंद के इस क्षण में मैं आप सबका अभिनंदन करता हूं और इस समय मेरे मन में जो विचार आए उसको आपके चिंतन के लिए आप सबके सामने रखता हुआ आप सब से विदा लेता हूं।-डा. मोहनजी भागवत(आर.एस.एस. के सरसंघचालक)

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