Edited By ,Updated: 13 Jun, 2021 05:22 AM
न्यायालय ने देशद्रोह कानून की फिर से समीक्षा करने की जरूरत को समझा है और इसके बारे में चर्चा करना तय किया है। संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करते हुए माननीय अदालत ने इस विष
न्यायालय ने देशद्रोह कानून की फिर से समीक्षा करने की जरूरत को समझा है और इसके बारे में चर्चा करना तय किया है। संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करते हुए माननीय अदालत ने इस विषय पर सुनवाई की तिथि भी तय कर दी है। साधारण शब्दों में देशद्रोह देश को भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक हितों से खिलवाड़ करने या उसे नुक्सान पहुंचाने को कहा जा सकता है।
देश के दुश्मनों का विदेशी शक्तियों के साथ सांठ-गांठ रखना भी इसके घेरे में आता है। अफसोस की बात यह है कि मोदी सरकार ने इस शब्द के अर्थ पूरी तरह से अनर्थ कर दिए हैं। सरकार के किसी भी लोक विरोधी कदम या आर्थिक नीति का विरोध, पुलिस या प्रशासन की ज्यादतियों का उल्लेख, आर.एस.एस. की सांप्रदायिक विचारधारा की नुक्ताचीनी तथा देश की धार्मिक अल्पसंख्यक गिनती (विशेषकर मुस्लिम भाईचारा), दलितों, महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचारों का वर्णन तथा वैज्ञानिक विचारधारा के हक में लिखने या बोलने या कोई सार्वजनिक आलोचना करने को देशद्रोही के तौर पर परिभाषित किया गया है।
मोदी सरकार ने जब से सत्ता संभाली है तब से ही सरकारी नीतियों का विरोध करने वाले हर व्यक्ति को सरकारी तथा संघ परिवार से संबंधित हमलावरों के हमलों का शिकार बनाया जा रहा है। बिना किसी ठोस सबूतों के देशद्रोह के झूठे मुकद्दमे दर्ज करने तथा सालों तक काल कोठरियों में बंद कर मौत के मुंह में धकेलने की सैंकड़ों कहानियां देश-प्रदेश के मीडिया जग-जाहिर कर चुके हैं।
ज्यादातर मामलों में अदालतें देशद्रोह जैसे बदनाम कानूनों के तहत गिर तार किए गए दोषियों को किसी सबूत के न मिलने के कारण उन्हें बाइज्जत बरी कर देती हैं परन्तु बेगुनाह लोगों के जेलों में बंद होकर उनकी जिंदगी के नुक्सान की कभी भी भरपाई नहीं की जा सकती न ही मुआवजा देने का कोई योग्य कानून है। इन काले कारनामों में यू.पी.ए. सरकार के कार्यकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की भी पूरी-पूरी भागीदारी रही है। गैर-कानूनी गतिविधियों तथा देशद्रोह जैसे झूठे आरोपों के अधीन केस दर्ज करने का रिकार्ड मोदी सरकार ने पहले से ही तोड़़ दिया है।
देशद्रोह तथा देशभक्ति की असली परीक्षा का समय तो स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान था। जिन लोगों ने अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेकर आजादी प्राप्त करने के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया, फांसी के त तों पर झूल गए, काले पानी की जेलें काटीं, अपनी स पत्ति गंवाई और अंग्रेजी सेना तथा पुलिस की गोलियों का मुकाबला अपनी छातियों को तान कर किया उसी को देशभक्ति तथा सच्चा राष्ट्रवाद कहा जा सकता है।
स्वतंत्रता के बाद जिन लोगों ने या फिर राजनीतिक दलों ने देश को स्वतंत्रता संग्राम के सपनों का देश बनाने के लिए जद्दोजहद की, मेहनत करने वाले लोगों के लिए आवाज बुलंद की तथा अन्य कई प्रकार से अपना योगदान डाला, उनका नाम विशेष तौर पर देशभक्तों की सूची में आना चाहिए।
जिन राजनीतिक दलों, लूटने वाली श्रेणी की सरकारों या फिर भ्रष्टाचारी तत्वों ने देश के लोकहितों के विपरीत कार्य कर श्रमिक लोगों के जीवन को बदत्तर हालातों में फैंका और अपने परिवारों के लिए लूटी गई पूंजी से भवन उसार लिए, प्राकृतिक स्रोतों को विदेशी लुटेरों के हाथों में मिट्टी के भाव बेच दिया असल में उनका यह सारा कार्य देशद्रोह की परिभाषा में आना चाहिए। लोक समर्थक संगठनों, व्यक्तियों, कलाकारों, लेखकों तथा बुद्धिजीवियों ने लोक विरोधी सरकारों की नीतियों का पर्दाफाश किया है। असल देशभक्ति तो उन्हीं के हिस्से में आती है।
सरकार विरोधी होना देशद्रोह नहीं बल्कि लोक विरोधी नीतियों को लागू करने वाले प्रशासक देशद्रोही हैं जो सजा के हकदार भी हैं। ऐसे राजनीतिक दल, संगठन, व्यक्ति जो देश के अंदर लूटपाट रहित प्रशासन, समानता, आजादी, भाईचारा तथा हर किस्म के अन्याय के विरुद्ध जूझते हैं, उनको देशद्रोही बताने वाला कानून तुरन्त रद्द होना चाहिए। लोकहितों के लिए जूझने वाले राजनीतिक दलों में किसी बात को लेकर मतभेद हो सकते हैं परन्तु उनके निशानों या उनके इरादों पर कोई शक नहीं किया जाना चाहिए। उनकी कार्रवाइयां देश को तोडऩे या फिर इसकी एकता और अखंडता को नुक्सान पहुंचाने वाली नहीं हैं।
क्या किसी नागरिक को अंतर्जातीय या अंत:धर्म शादी करवाने, अपनी मर्जी की खुराक तथा पोशाक पहनने, अपनी आस्था के अनुसार किसी भी धर्म को अपनाने या धार्मिक रीति-रिवाजों पर अमल करने, किसी किस्म की ङ्क्षहसा के दौरान वास्तविक दोषियों के ऊपर उंगली उठाने तथा सरकार की ओर से लिखने, बोलने तथा विचारों को प्रकट करने जैसे मौलिक अधिकारों को कुचलने के खिलाफ आवाज बुलंद करने के दोष के तहत देशद्रोही कहा जा सकता है?-मंगत राम पासला