‘देश की राजनीति की दिशा तय करेगा बंगाल चुनाव’

Edited By ,Updated: 25 Dec, 2020 03:52 AM

bengal election will decide the direction of politics of the country

बंगाल एक बार फिर चर्चा में है। गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस, अरबिंदो घोष, बंकिमचन्द्र चटर्जी जैसी महान विभूतियों के जीवन चरित्र की विरासत को अपनी भूमि में समेटे यह धरती आज अपनी सांस्कृतिक धरोहर नहीं बल्कि

बंगाल एक बार फिर चर्चा में है। गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस, अरबिंदो घोष, बंकिमचन्द्र चटर्जी जैसी महान विभूतियों के जीवन चरित्र की विरासत को अपनी भूमि में समेटे यह धरती आज अपनी सांस्कृतिक धरोहर नहीं बल्कि अपनी हिंसक राजनीति के कारण चर्चा में है। वह भाजपा जो 2011 तक मात्र 4 प्रतिशत वोट शेयर के साथ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बंगाल में अपना अस्तित्व तलाश रही थी, 2019 में 40 प्रतिशत वोट शेयर के साथ तृणमूल को उसके ही गढ़ में ललकारती है। बल्कि 295 की विधानसभा में 200 सीटों का लक्ष्य रखकर दीदी को बेचैन भी कर देती है। 

इसी राजनीतिक उठा-पटक के परिणामस्वरूप आज उसी बंगाल की राजनीति में भूचाल आया हुआ है। लेकिन जब बात राजनीतिक दांव-पेंच से आगे निकल कर ङ्क्षहसक राजनीति का रूप ले ले तो निश्चित ही देश भर में चर्चा ही नहीं गहन मंथन का भी विषय बन जाती है। क्योंकि जिस प्रकार से आए दिन तृणमूल और भाजपा के कार्यकत्र्ताओं की ङ्क्षहसक झड़प की खबरें सामने आती हैं वो वहां की राजनीति के गिरते स्तर को ही उजागर करती हैं। 

भाजपा का कहना है कि अबतक की राजनीतिक हिंसा में बंगाल में उनके 100 से ऊपर कार्यकत्र्ताओं की हत्या हो चुकी है। यह किसी से छुपा नहीं है कि बंगाल में चाहे स्थानीय चुनाव ही क्यों न हों, चुनावों के दौरान हिंसा आम बात है। लेकिन जब यह राजनीतिक ङ्क्षहसा बंगाल की धरती पर होती है, तो उसकी पृष्ठभूमि में ‘मां माटी और मानुष’ का नारा होता है जो मांं माटी और मानुष इन तीनों शब्दों की व्याख्या को संकुचित करने का मनोविज्ञान लिए होता है। 

इसी प्रकार जब वहां की मुख्यमंत्री बंगाल की धरती पर खड़े होकर गैर बंगलाभाषी को ‘बाहरी’ कहने का काम करती हैं तो वो भारत की विशाल सांस्कृतिक विरासत के आभामंडल को अस्वीकार करने का असफल प्रयास करती नजर आती हैं। गुलामी के दौर में वह बंगाल की ही धरती थी जहां से दो ऐसी आवाजें उठी थीं जिसने पूरे देश को एक ही सुर में बांध दिया था। वह बंगाल का ही सुर था जिसने पूरे भारत की आवाज को एक ही स्वर प्रदान किया था। जी हां ‘वंदे मातरम’ का नारा लगाते देश भर में न जाने कितने आजादी के मतवाले इस मिट्टी पर हंसते-हंसते कुर्बान हो गए। 

आज वो नारा हमारा राष्ट्र गीत है और इसे देने वाले बंकिमचन्द्र चटर्जी जिस भूमि की वंदना कर रहे हैं वो मात्र बंगाल की नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र की है। रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित ‘जन गण मन’ केवल बंगाल की नहीं हमारे भारत राष्ट्र की पहचान है। बहरहाल बंगाल का यह चुनाव तृणमूल बनाम भाजपा मात्र दो दलों के बीच का चुनाव नहीं रह गया है बल्कि यह चुनाव देश की राजनीति के लिए भविष्य की दिशा भी तय करेगा। बंगाल की धरती शायद एक बार फिर देश के राजनीतिक दलों की सोच और कार्यशैली में मूलभूत बदलाव की क्रांति का आगाज करे।-डा. नीलम महेंद्र
 

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