भाखड़ा डैम और बाढ़ की ‘विभीषिका’

Edited By ,Updated: 26 Aug, 2019 03:08 AM

bhakra dam and flood ravine

यदि भाखड़ा डैम के निर्माण से पूर्व के इतिहास को देखें तो अविभाजित पंजाब को लगभग हर वर्ष बाढ़ की विभीषिका को झेलना पड़ता था। वास्तविकता तो यह है कि भाखड़ा डैम के निर्माण के विभिन्न उद्देश्यों में से एक उद्देश्य सतलुज नदी में हर वर्ष आने वाली बाढ़ पर...

यदि भाखड़ा डैम के निर्माण से पूर्व के इतिहास को देखें तो अविभाजित पंजाब को लगभग हर वर्ष बाढ़ की विभीषिका को झेलना पड़ता था। वास्तविकता तो यह है कि भाखड़ा डैम के निर्माण के विभिन्न उद्देश्यों में से एक उद्देश्य सतलुज नदी में हर वर्ष आने वाली बाढ़ पर नकेल डालना भी था।  बांध के निर्माण से पूर्व सतलुज नदी के बहाव की चौड़ाई 8 से 10 किलोमीटर होती थी जिससे मानसून के दिनों में हर वक्त बाढ़ जैसी स्थिति बनी रहती थी, जो डैम के निर्माण के बाद सिकुड़ कर एक डेढ़ किलोमीटर रह गई है। 

भाखड़ा ब्यास मैनेजमैंट बोर्ड अर्थात बी.बी.एम.बी. पूरे साल में 32 मिलियन एकड़ फुट पानी की रैगुलेशन करता है। इस पानी में लगभग 13 मिलियन एकड़ फुट सतलुज का अपना पानी है, 4 मिलियन एकड़ फीट पानी ब्यास सतलुज लिंक के द्वारा बिजली बना कर ब्यास से सतलुज नदी में देहर नामक जगह पर डाला जाता है। 8 मिलियन एकड़ फुट पानीब्यास नदी का है जिस पर पौंग नामक बांध बनाया गया है और 7 मिलियन एकड़ फुट पानी रावी नदी का है। रावी नदी पर थीन डैम जिसे रंजीत सागर डैम भी कहा जाता है, पंजाब सरकार द्वारा बनाया गया है परन्तु रावी नदी के पानी का रैगुलेशन भी बी.बी.एम.बी. द्वारा पंजाब सरकार से विचार विमर्श करके किया जाता है क्योंकि सिंचाई और पीने के पानी के प्रबंध को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी बी.बी.एम.बी. की है। 

बी.बी.एम.बी. ऐसे निभाता है जिम्मेदारी 
भाखड़ा डैम की कुल भंडारण क्षमता 1685 फुट के लैवल पर 7.80 मिलियन एकड़ फुट है और पौंग डैम की 1400 फुट पर 6.95 मिलियन एकड़ फुट है। भाखड़ा डैम का फिलिंग पीरियड 21 मई से 20 सितम्बर तक माना जाता है जबकि पौंग डैम का 21 जून से शुरू होता है। भाखड़ा में पानी भरने के दो स्रोत हैं; 50 प्रतिशत पानी वर्षा से आता है तथा 50 प्रतिशत पानी बर्फ  के पिघलने से आता है जबकि पौंग डैम में वर्षा से 80 प्रतिशत और बर्फ से 20 प्रतिशत है। 

पहले इसके भरने का लैवल 1685 फुट था जो 1988 में आई बाढ़ के बाद 5 फुट घटा कर 1680 फुट कर दिया गया था। वहीं किसी अनहोनी की आशंका से बचने के लिए पौंग डैम में पानी भरने का लैवल भी 1400 फुट से घटा कर 1390 फुट कर दिया था। इन दोनों डैमों के लैवल कम करने से लगभग भागीदार राज्यों को 3 मिलियन एकड़ फुट पानी का हर साल नुक्सान सहना पड़ता है। इसके बोर्ड में एक चेयरमैन, दो पूर्णकालिक मैम्बर, एक हरियाणा से व एक पंजाब से, चार सदस्य पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल राज्यों की सरकारों के पानी-बिजली के सचिव होते हैं। एक सदस्य संयुक्त सचिव, हाइड्रो, भारत सरकार और एक सदस्य इंडस कमिश्नर होते हैं, जो सर्वेसर्वा होते हैं। 

उपरोक्त को ध्यान से देखें तो 9 आदमियों के बोर्ड में दो सदस्य पंजाब से हैं और दो हरियाणा से हैं। इन सभी ने 1988 में आई बाढ़ के बाद रिजर्वायर मैनेजमैंट से सम्बंधित फैसले लिए। फैसलों के अनुसार 31 जुलाई को भाखड़ा डैम का लैवल 1650 फुट से अधिक नहीं रखा जाएगा। 15 अगस्त को इस लैवल को बढ़ा कर 1670 फुट तक ले जाया जा सकता है और 31 अगस्त तक यह लैवल 1680 फुट किया जा सकता है। 1680 फुट के ऊपर बाढ़ आदि को ध्यान में रखते हुए लैवल को एक-दो फुट और ऊपर ले जाया जा सकता है, लेकिन जैसे ही भाखड़ा डैम के डाऊन स्ट्रीम में हालात नार्मल होते हैं तो पानी को दो तीन दिन में छोड़ कर लैवल को फिर से1680 फुट पर लाना होता है। 

इसके अतिरिक्त बी.बी.एम.बी. हर महीने के अंत में अगले महीने हेतु पानी को छोडऩे के लिए एक टैक्नीकल कमेटी की बैठक आयोजित करता है जिसमें सभी भागीदार राज्यों के सम्बंधित चीफ  इंजीनियर होते हैं जो पानी और बिजली सम्बंधित फैसले लेते हैं। सारा काम सबकी सहमति से ही होता है। इसीलिए आजतक बिजली पानी के बंटवारे पर बी.बी.एम.बी. में कभी विवाद नहीं हुआ। बी.बी.एम.बी. की सबसे अहम् जिम्मेदारी है इसके भागीदार राज्यों को सिंचाई, पीने के लिए पानी और बिजली की सप्लाई सुनिश्चित करना। बी.बी. एम.बी. हर वर्ष एक करोड़ 25 लाख एकड़ भूमि में सिंचाई के लिए पानी देता है, अत: बी.बी.एम.बी. को यह सुनिश्चित करना है कि इसके अधीन जो डैम हैं, वे भरे हों। आपको याद होगा इस वर्ष पूरे देश में लगभग सभी डैम खाली पड़े थे, केवल बी.बी.एम.बी. के डैम ही भरे थे। 

बोर्ड की अन्य चुनौतियां
बी.बी.एम.बी. की दूसरी चुनौती है, जो भी पानी छोड़ा जाए उससे बिजली बने, तीसरी चुनौती है जब डैम का फिङ्क्षलग पीरियड समाप्त हो तो डैम के डैड स्टोरेज लैवल से कुछ पानी उसके पास अधिक हो, क्योंकि हो सकता है अगले साल कमजोर मानसून हो और डैम में नया पानी न भर सकने की स्थिति में सिंचाई के लिए राज्यों को पानी दिया जा सके। बी.बी.एम.बी. की अगली चुनौती है-डैम सेफ्टी। 

यह बात सर्व विदित है कि भाखड़ा डैम से पहले उत्तरी भारत की दशा अच्छी नहीं थी और जो कुछ खुशहाली हम आज देख रहे हैं उसमें भाखड़ा डैम का बहुत बड़ा योगदान है। यह भी सही है कि अधिक पानी जमा करने के चक्कर में यदि डैम टूट जाता है तो उस वक्त जो तबाही होगी उसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता और उसके बाद सिंचाई और बिजली की जो समस्याएं होंगी वे स्थायी होंगी। बी.बी.एम.बी. हर समय आलोचकों के निशाने पर रहता है। डैम को खाली क्यों रखा गया और यदि पंजाब में बाढ़ हो तो इसको भरा क्यों है? दो महीने पहले, जब पंजाब में बाढ़ नहीं थी तो लैवल को कम करने के लिए कुछ पानी छोड़ा गया था तो आवाजें उठीं कि पानी को व्यर्थ में पाकिस्तान भेजा जा रहा है। 

मानसून की भविष्यवाणी
जहां तक मानसून की भविष्यवाणी का प्रश्न है मानसून विभाग केवल एक वृहत दिशा निर्देश देता है। बार-बार अपनी दी हुई भविष्यवाणी को बदलता रहता है, कभी बादल मुड़ गए, कभी आ गए। मानसून विभाग कभी भी बादल फटने की भविष्यवाणी नहीं करता है। यदि रिजर्वायर के कैचमैंट एरिया में एक दो बादल फट जाएं तो सारा हिसाब किताब गड़बड़ा जाता है और डैम में कई लाख क्यूसिक पानी आ जाता है। ऐसा बहुत बार होता है और नहीं भी होता। 

कई बार ऐसी भी स्थिति होती है कि जब बर्फ के पिघलने का वक्त होता है तो बर्फ के ऊपर बादल धूप रोक कर छाया कर लेते हैं, न बरसते हैं और न ही बर्फ  पिघलने देते हैं। बी.बी.एम.बी. के अधिकारी आई.एम.डी. की भविष्यवाणी के कागज को आगे पीछे करके देखते रहते हैं कि कहीं इस सिचुएशन का भी इलाज लिखा है क्या? लेकिन यह पंजाब और बी.बी. एम.बी. दोनों का दुर्भाग्य है कि पंजाब को बाढ़ झेलनी पड़ती है और बी.बी.एम.बी. द्वारा इस वर्ष बाढ़ को रोकने के लिए समय से पूर्व बढ़ाए गए 7 लैवल के बाद भी आलोचना का शिकार होना पड़ा है।-वी.पी.शर्मा

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