राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी मोदी सरकार का सबसे बड़ा अपराध

Edited By Pardeep,Updated: 06 Sep, 2018 03:24 AM

biggest crime of the modi government is a waste of national resources

क्या पैट्रोल और डीजल के दाम में बेतहाशा बढ़ौतरी के लिए मोदी सरकार और भाजपा को जिम्मेदार ठहराना उचित है? जब विपक्षी दल मोदी सरकार की आलोचना करते हैं तो समझ नहीं आता कि उनके तर्क में दम है या यह सिर्फ उनकी आदत है। उधर, सरकार कहती है कि हमें अधिकांश...

क्या पैट्रोल और डीजल के दाम में बेतहाशा बढ़ौतरी के लिए मोदी सरकार और भाजपा को जिम्मेदार ठहराना उचित है? जब विपक्षी दल मोदी सरकार की आलोचना करते हैं तो समझ नहीं आता कि उनके तर्क में दम है या यह सिर्फ उनकी आदत है। उधर, सरकार कहती है कि हमें अधिकांश कच्चा तेल विदेश से आयात करना पड़ता है। पिछले कुछ महीनों से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैं तो हमारे देश में भी बढ़ेंगे। सरकार का इसमें क्या कसूर? यूं भी सरकार ने अब पैट्रोल और डीजल के दाम तय करने बंद कर दिए हैं। इसके लिए सरकार को दोष देना तो बेतुकी बात है। 

पहली नजर में यह बात सही लगती है। देश-दुनिया की हर बात के लिए सरकार को दोष देना सही नहीं है और ऐसा काम अक्सर विपक्षी दल करते रहते हैं। लेकिन अगर पैट्रोल और डीजल के दाम के अर्थशास्त्र का बारीकी से विश्लेषण करें तो सरकार दरअसल बेगुनाह नहीं है। भाजपा और सरकार के बचाव में दिए जा रहे तर्कों में बहुत बड़े छेद हैं। इस मामले में सरकार के कम से कम चार अपराध हैं। पहला अपराध है दोगलापन। 

जब यू.पी.ए. की सरकार के दौरान 2013 में पैट्रोल और डीजल के दाम बढ़े थे तब भी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम में उछाल की वजह बताई गई थी। भाजपा के तमाम नेताओं ने सीधे प्रधानमंत्री को इसके लिए जिम्मेदार बताया था। स्वयं नरेंद्र मोदी ने इसे ‘‘केन्द्र सरकार की शासन चलाने की नाकामयाबी का जीता-जागता सबूत’’ बताते हुए दाम घटाने की मांग की थी। उत्तर के हिसाब से आज पैट्रोल और डीजल के दाम बढऩे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराना चाहिए। लेकिन यह छोटा अपराध है, चूंकि विपक्ष में रहते हुए गैर-जिम्मेदाराना बातें हर कोई करता है। 

दूसरा अपराध डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरावट से संबंधित है। क्योंकि कच्चा तेल आयात किया जाता है इसलिए जैसे-जैसे डॉलर महंगा होता जाएगा वैसे-वैसे कच्चे तेल के दाम भी बढ़ते जाएंगे। जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली तब एक डॉलर 60 रुपए में आता था आज उसकी कीमत 71 रुपए से ज्यादा हो गई है। पिछले एक महीने में डॉलर की कीमत अढ़ाई रुपए बढ़ गई है। इसके चलते अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम बढऩे की मार दोगुनी हो गई है। आज सरकार कहती है कि डॉलर का महंगा होना अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव का परिणाम है, लेकिन जब भाजपा विपक्ष में थी तो उसने रुपए के दाम गिरने पर हाय-तौबा मचाई थी और सीधे डा. मनमोहन सिंह को निकम्मा ठहराया था। फिर भी सच यह है कि मोदी सरकार इसके लिए अप्रत्यक्ष रूप से ही जिम्मेदार है। 

तीसरा और कहीं ज्यादा गंभीर अपराध है सरकार द्वारा इस सवाल पर अद्र्धसत्य बोलना। सरकार देश के सामने पैट्रोल और डीजल की महंगाई का पूरा सच नहीं रख रही है। यह कहना तो सही है कि पिछले कुछ महीनों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़े लेकिन यह हमारे देश में पैट्रोल और डीजल की वर्तमान कीमतों का सबसे महत्वपूर्ण कारण नहीं है। जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली उस वक्त अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 101 डॉलर थी। उस समय दिल्ली में पैट्रोल 71 और डीजल 57 रुपए के भाव से बिक रहा था। आज कच्चे तेल का दाम 76 डॉलर है लेकिन दिल्ली में पैट्रोल का दाम 79 रुपए और डीजल का दाम 71 रुपए हो चुका है। यानी कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल का दाम एक-चौथाई कम हुआ है लेकिन पैट्रोल का दाम कोई 10 प्रतिशत और डीजल का दाम 20 प्रतिशत बढ़ गया है। 

यहां छुपी है पैट्रोल और डीजल के दाम में बढ़ौतरी की सच्ची कहानी। सच यह है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद संयोगवश अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में भारी गिरावट आई। एक समय तो कच्चे तेल का दाम गिर कर सिर्फ 33 डॉलर पर पहुंच गया। अगर उस वक्त देश में पैट्रोल और डीजल के दाम को उसी हिसाब से घटने दिया जाता तो पैट्रोल 24 रुपए और डीजल 19 रुपए लीटर हो सकता था, लेकिन सरकार ने ऐसा होने नहीं दिया। पैट्रोल और डीजल के दाम में मामूली-सी कटौती कर सरकार ने अपना टैक्स बढ़ा दिया। तेल की रिफाइनरी और डीलर का कमीशन बढ़ा दिया। केन्द्र सरकार ने अपना टैक्स बढ़ाया तो देखा-देखी राज्य सरकारों ने भी वैट बढ़ा दिया। लेकिन जब कच्चे तेल के दाम बढऩे शुरू हुए तब सरकार ने उस बढ़ौतरी का बोझ सीधे उपभोक्ता पर डालना शुरू कर दिया। तेल के दाम गिरने का फायदा सरकार को हुआ लेकिन दाम बढऩे का नुक्सान उपभोक्ता को हुआ। यहां गौर कीजिए कि पैट्रोल का दाम कम तेजी से बढ़ा लेकिन डीजल का दाम ज्यादा तेजी से बढ़ाया गया जिसकी मार किसानों और मछुआरों पर पड़ी है। 

सरकार के समर्थक बात को घुमाने के लिए कहते हैं कि सिर्फ केन्द्र सरकार दोषी नहीं है, राज्य सरकारों ने भी अपने टैक्स बढ़ा कर बहती गंगा में हाथ धोया है। बात सही है, लेकिन अधिकांश राज्य सरकारें भी तो भाजपा की ही हैं। अगर राज्य सरकारों की तुलना की जाए तो दिल्ली और कोलकाता की तुलना में भाजपा की महाराष्ट्र सरकार ने मुम्बई में टैक्स में कहीं ज्यादा बढ़ौतरी की है। जैसे भी देखें, भाजपा पैट्रोल और डीजल के दाम में बढ़ौतरी की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती। अब भाजपा समर्थक कहेंगे कि ठीक है, सरकार ने पैट्रोल और डीजल को सस्ता करने की बजाय सरकारी खजाने में पैसा डाला लेकिन कोई चोरी और भ्रष्टाचार तो नहीं किया। एक बार इसे मान लेते हैं कि अगर सरकार पैट्रोल और डीजल को बहुत सस्ता होने देती तो उससे फिजूलखर्ची और प्रदूषण बढ़ सकता था।

तो सवाल उठता है कि सरकार ने उस पैसे का क्या किया?एक मोटा अनुमान लगाएं तो मोदी सरकार ने पैट्रोल और डीजल पर अतिरिक्त टैक्स तथा सरकार के अपने पैट्रोल-डीजल खर्चे में हुई बचत से कोई 6 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त कमाए। कोई समझदार या दूरदर्शी सरकार होती तो वह इस आकस्मिक आय को आने वाली पीढ़ी के लिए भविष्य निधि में डालती या फिर भविष्य में तेल के दाम बढऩे से बचाने का कोई फंड बनाती, या फिर ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत विकसित करने की कोई बड़ी योजना बनाती। लेकिन मोदी सरकार ने इस सारे पैसे को सरकार के रोजमर्रा के खर्चे में उड़ा दिया। सही कहें तो इस पैसे का उपयोग अरुण जेतली ने अपनी अर्थनीति की दूसरी नाकामियों को ढकने के लिए किया। आने वाली पीढिय़ों के लिए कुछ दूरगामी काम करने का ऐसा अवसर 10 या 20 साल में एक बार ही आता है लेकिन भाजपा सरकार ने इसे गंवा दिया। राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी मोदी सरकार का सबसे बड़ा अपराध है।-योगेन्द्र यादव

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