इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव ‘अनोखे’ होंगे

Edited By ,Updated: 08 Sep, 2020 03:56 AM

bihar assembly elections this time will be unique

बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव कई कारणों से अलग हैं। वास्तव में यह पहले डिजीटल चुनाव होंगे जोकि कोविड महामारी के दौरान आयोजित होंगे। इस समय चुनाव आभासी रैलियों तथा डोर-टू-डोर मुहिम के साथ-साथ सोशल मीडिया के माध्यम से लड़े जाएंगे। भाजपा अन्य ...

बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव कई कारणों से अलग हैं। वास्तव में यह पहले डिजीटल चुनाव होंगे जोकि कोविड महामारी के दौरान आयोजित होंगे। इस समय चुनाव आभासी रैलियों तथा डोर-टू-डोर मुहिम के साथ-साथ सोशल मीडिया के माध्यम से लड़े जाएंगे। भाजपा अन्य पार्टियों की तुलना में अग्रणी है क्योंकि इसे आभासी मोड का काफी अनुभव है। यदि बिहार जैसे पिछड़े राज्य में डिजीटल अनुभव सफल होता है तो यह वास्तव में एक बहुत बड़ी जीत होगी। लालू प्रसाद के बेटे तथा राजनीतिक विरासत पाने वाले तेजस्वी प्रसाद यादव काफी चुस्त हैं। मगर अभी भी उन्हें स्वयं को स्थापित करना होगा। गठबंधन में किसी बड़े नेता की उपस्थिति में तेजस्वी मुख्यमंत्री पद का चेहरा हैं। 

राजद के सोशल मीडिया अकाऊंट तेजस्वी के चित्रों से भरे पड़े हैं, जो बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लोगों से मुलाकात करते दिखाई दे रहे हैं। राजद के पास अपनी परेशानियां हैं क्योंकि पार्टी की एकता में भाई-भाई की दुश्मनी एक बड़ी बाधा है। फिर भी रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे बड़े नेता नाखुश हैं तथा दूसरे दलों में जाने की सोच रहे हैं। दूसरा मुद्दा प्रवासी श्रमिकों का भी है। वे नया वोट बैंक बन गए हैं। विपक्षी पार्टियों का मानना है कि नीतीश कुमार की सरकार ने उनके साथ न्याय नहीं किया। पूरे देश ने लाखों की तादाद में प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा देखी जो अपने-अपने गांव को लौट रहे थे। केंद्र तथा राज्य सरकार ने उनकी अनदेखी की। ऐसा अनुमान है कि 2 मिलियन प्रवासी श्रमिक बिहार में अपने घरों को लौटे हैं। 

बिहार में बेरोजगारी दर 46.6 प्रतिशत है जोकि देश में सबसे ऊंची है। तीसरा कारण कोविड महामारी का प्रभाव है। बिहार में अभी तक 1.2 लाख कोविड मामले रिकार्ड किए गए हैं। सरकार का दावा है कि रोजाना एक लाख टैस्ट करवाए जा रहे हैं। हालांकि शुरू में यह गति धीमी थी। इसके चलते पॉजिटिव मामलों की संख्या में गिरावट देखी गई है। विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार आंकड़ों के साथ छेडख़ानी कर रही है। बिहार की जनता इस समय बाढ़ से भी जूझ रही है। चौथा यह कि पहली बार ऐसा होगा कि माकपा ने राजद के साथ चुनावी गठबंधन किया है। वामदलों ने पूर्व में या तो राजद के साथ मिलकर या जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और इस समय वह विपक्षी गठबंधन का हिस्सा होंगे। 

बिहार की जनसांख्यिकी को देखते हुए पिछड़ी श्रेणी के मतदाता सत्ता पाने के लिए एक महत्वपूर्ण चाबी हैं। अन्य पिछड़ी श्रेणियों (ओ.बी.सी.) का बिहार में हिस्सा 45 से 50 प्रतिशत तक है। जबकि उच्च श्रेणी, मुसलमान तथा अनुसूचित जाति 15 प्रतिशत के करीब हैं। बिहार में चुनाव जाति पर लड़े जाते हैं। पांचवां यह कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की हत्या को राजनीतिक रंग देकर इस बार बिहार में यह चुनावी मुद्दा बन गया है। राजनीतिज्ञ यह मुद्दा अपने फायदे के लिए उठाने में कतई भी हिचकिचाएंगे नहीं। इस दौरान कई पार्टियों ने अपनी आभासी मुहिम शुरू कर दी है और चुनावी बुखार लोगों पर चढऩा शुरू हो गया है। एन.डी.ए. तथा महागठबंधन दो प्रमुख ग्रुप हैं। आज बिहार की राजनीति में भाजपा, जद (यू) तथा राजद की तिकड़ी प्रमुख दलों की है। मगर अन्य कोई भी पार्टी इस स्थिति में नहीं कि वह बिहार में सरकार बना सके। कांग्रेस ने 100 आभासी रैलियों के आयोजन का निर्णय किया है। हालांकि कांग्रेस ने राज्य स्तर पर सशक्त नेतृत्व को विकसित करने की कोई कोशिश नहीं की। कांग्रेस का इस राज्य में प्रदर्शन भी खास नहीं। 

जद (यू) कई पार्टियों के नेताओं को अपने कैम्प में शामिल कर स्वयं को सुदृढ़ कर रही है। बिहार के पूर्व सी.एम. तथा ङ्क्षहदुस्तानी अवामी मोर्चा सैकुलर के प्रमुख जीतनराम मांझी ने महागठबंधन को छोड़ दिया है तथा एन.डी.ए. में शामिल हो गए हैं। शरद यादव जिन्हें कि पार्टी ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण बाहर कर दिया था, जद (यू) में फिर से लौट सकते हैं। हालांकि भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने हाल ही में दोहराया था कि बिहार में एन.डी.ए. संयुक्त रूप से चुनाव लड़ेगा। लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान निरंतर नीतीश कुमार पर हमले बोलते आए हैं। मतदाता भी सरकार के नए दिशा-निर्देशों को मानेगा। इसमें मास्क तथा दस्तानों को पहनना, सैनीटाइजर, थर्मल स्कैनर तथा सामाजिक दूरी को बनाए रखना भी शामिल हैं। इन सभी दिशा-निर्देशों की चुनाव आयोग सख्ती से पालना करवाएगा। 

बिहार सभी राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पास 40 लोकसभा सीटें हैं। हालांकि चुनावों के नतीजों के बारे में भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगा क्योंकि यहां पर हमेशा ही चुनावी उथल-पुथल होती रहेगी, मगर इस बार भाजपा-जद (यू) गठबंधन को फायदा मिलने की संभावना है क्योंकि विपक्ष कमजोर तथा बंटा हुआ दिखाई दे रहा है और साथ ही उसके पास कोई करिश्माई नेता नहीं है।-कल्याणी शंकर

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