भाजपा-अकाली गठजोड़ : हरियाणा की आंच दिल्ली में

Edited By ,Updated: 24 Oct, 2019 01:25 AM

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अपनी अंतहीन कोशिशों के बावजूद हरियाणा विधानसभा के चुनावों के लिए भाजपा-अकाली गठजोड़ बना पाने में असफल रहे। शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने हरियाणा में इनैलो-अकाली गठजोड़ के पक्ष में चुनाव प्रचार करते हुए जिस प्रकार भाजपा और...

अपनी अंतहीन कोशिशों के बावजूद हरियाणा विधानसभा के चुनावों के लिए भाजपा-अकाली गठजोड़ बना पाने में असफल रहे। शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने हरियाणा में इनैलो-अकाली गठजोड़ के पक्ष में चुनाव प्रचार करते हुए जिस प्रकार भाजपा और उसके नेतृत्व पर तीखे हमले कर अपनी भड़ास निकाली, उससे यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि क्या दिल्ली विधानसभा के निकट भविष्य में होने जा रहे चुनावों में अकाली-भाजपा गठजोड़ उसकी आंच से अपने को झुलसने से बचा पाएगा? 

यह सवाल उठने का एक कारण यह भी है कि बीते दिनों दिल्ली प्रदेश भाजपा के सिख प्रकोष्ठ के मुखियों ने पार्टी नेतृत्व से मुलाकात कर, उसे अकालियों के विरुद्ध अपनी भावनाओं से परिचित कराते हुए, दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा-अकाली गठजोड़ होने की प्रकट की जा रही संभावनाओं का तीखा विरोध किया था। बताया गया है कि प्रदेश भाजपा के सिख प्रकोष्ठ के मुखियों ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में इनैलो-अकाली गठजोड़ के समर्थन में चुनाव प्रचार करते हुए सुखबीर सिंह बादल ने भाजपा और उसके नेतृत्व पर जो तीखे हमले किए, उनसे संबंधित वायरल हुए वीडियो को भी उन्होंने पार्टी नेतृत्व के सामने पेश किया। 

बीते काफी समय से भाजपा के साथ सीधे जुड़े चले आ रहे सिखों, प्रदेश भाजपा के सिख प्रकोष्ठ और राष्ट्रीय सिख संगत की ओर से दिल्ली विधानसभा चुनावों में अकालियों के साथ गठजोड़ किए जाने के विरुद्ध अपनी भावनाएं अपने केन्द्रीय नेतृत्व तक लगातार पहुंचाई जाती चली आ रही हैं। अब सुखबीर की ओर से भाजपा नेतृत्व और पार्टी  पर किए गए तीखे हमलों से उनका अकालियों के विरुद्ध गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचना स्वाभाविक है। 

बताया गया है कि उन्होंने अपने नेतृत्व को यहां तक चेतावनी दे डाली है कि यदि दिल्ली विधानसभा चुनावों में अकाली दल के कोटे में से या टिकट के लालच में अकाली दल से दलबदल कर आए किसी अकाली को टिकट दिया गया तो वे उन उम्मीदवारों का विरोध करेंगे। भाजपा के इन सिख नेताओं ने भाजपा नेतृत्व को एक बार फिर जोर देकर कहा है कि उसे आम सिखों के समर्थन और सहयोग के लिए बादल अकाली दल पर ‘टेक’ रखने की जरूरत नहीं, इसके लिए वे अपने साथ सीधे जुड़े चले आ रहे सिख मुखियों पर विश्वास कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस समय बादल अकाली दल जिस गंभीर फूट का शिकार हो गया है, उससे वह आम सिखों का विश्वास पूरी तरह गंवा बैठा है। ऐसे में यदि भाजपा नेतृत्व की ओर से बादल अकाली दल को अपने साथ लिया जाता है तो भाजपा को उसका भारी मोल चुकाना पड़ सकता है। 

दल-बदली को तैयार
उधर ऐसे संकेत भी मिल रहे हैं कि अकाली-भाजपा गठजोड़ होने की संभावनाओं के धूमिल होने के संकेतों के चलते, बादल अकाली दल के कई नेता टिकट की अपनी लालसा को पूरा करने के लिए अकाली दल छोड़ भाजपा का दामन थामने को बेचैन नजर आने लगे हैं। इसी सुगबुगाहट के चलते ही, भाजपा से जुड़े सिखों ने दल-बदलुओं को गले-लगाने के विरुद्ध अपने नेतृत्व को चेतावनी दे दी है। 

पंजाब भाजपा नेतृत्व भी मुखर
समाचारों के अनुसार बीते दिनों पंजाब प्रदेश भाजपा के एक नेता ने यह कह अपने कार्यकत्र्ताओं को आश्वस्त किया कि इस बार आने वाले पंजाब विधानसभा के चुनावों में भाजपा की ओर से विधानसभा की 117 सीटों में से 59 सीटों पर अपना दावा पेश कर अकाली दल के सामने बराबरी की भागीदारी कायम करने की मांग रखी जाएगी। पंजाब विधानसभा की 4 सीटों पर हो रहे उपचुनावों के चलते पंजाब प्रदेश भाजपा के नेतृत्व ने अपने इस दावे को हवा न दे भविष्य के लिए इसे सुरक्षित रख लिया था। 

अब जबकि इन उपचुनावों की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है, वह अपने इस दावे को हवा देने के साथ ही अपने केन्द्रीय नेतृत्व यह दबाव बना सकता है कि वह पंजाब में बादल अकाली दल के साथ बराबर की भागीदारी कायम करने के लिए दबाव बनाए। यदि अकाली नेता उनकी यह मांग स्वीकार करने के लिए तैयार न हों तो वह उन्हें स्पष्ट कर दे कि वे इस बार पंजाब विधानसभा के चुनाव अपने बूते पर अकेले ही लड़ेंगे। 

बताया गया है कि उन्हें विश्वास है कि बादल अकाली दल इस समय जिस डावांडोल स्थिति के साथ जूझ रहा है, उसके चलते अकाली दल के नेताओं को भाजपा की मांग स्वीकार करने को मजबूर होना पड़ेगा। उनका यह भी मानना है कि इस समय पंजाब में अकाली दल के मुकाबले भाजपा की स्थिति अधिक मजबूत है। दिल्ली के बाद पंजाब के नेताओं द्वारा बनाए जा रहे दबाव के चलते भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व यह सोचने पर मजबूर हो गया है कि इन परिस्थितियों में उसे दिल्ली और पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनावों में बादल अकाली दल के साथ गठजोड़ उसकी शर्तों पर करना चाहिए या अपनी शर्तों पर। 

बात बाला साहिब अस्पताल की
बीते लम्बे समय से नई दिल्ली स्थित गुरुद्वारा बाला साहिब के साथ अस्पताल के निर्माण की सम्पूर्णता के लिए प्रयत्न किए जा रहे हैं परन्तु सदा ही किसी न किसी कारण उसके रास्ते में रुकावटें खड़ी होती चली आ रही हैं। इसके लोक सेवा में समर्पित होने के रास्ते में आने वाली रुकावटों के लिए कभी किसी को तो कभी किसी को जिम्मेदार ठहराया गया परन्तु असली कारण तलाशने में कोई भी सफल नहीं हो सका। 

जब इस संबंध में धार्मिक प्रवृत्ति के सिखों से बात की तो उन्होंने कहा कि इस अस्पताल के मंजिल पर न पहुंच पाने का मुख्य कारण इसकी धार्मिकता को राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए किनारे धकेल दिया जाना है। उन्होंने कहा कि प्रारम्भ में इस अस्पताल का निर्माण कार्य शुरू करते हुए इसकी नींव धार्मिक शख्सियत सेवापंथी बाबा हरबंस सिंह से रखवाई गई थी, जिसे कुछ समय बाद ही राजनीतिक स्वार्थ के चलते उखाड़ कर कहीं फैंक दिया गया और एक दागदार राजनीतिज्ञ प्रकाश सिंह बादल से इसकी नई नींव रखवा दी गई। उनके अनुसार जिस दिन ऐसा हुआ उसी दिन इसकी सम्पूर्णता के सारे रास्ते बंद हो गए।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’

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