Opinion: 2019 के चुनाव पर ‘बड़ी राशि’ खर्च कर सकती है भाजपा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Jun, 2018 12:19 PM

bjp can spend huge amount on election of 2019

सूत्र बताते हैं कि पार्टी की केंद्रीय इकाई ने अपने राज्यों के क्षत्रपों से कह दिया है कि वे खुले मन से पार्टी फंड में अपना योगदान दें। माना जा रहा है कि तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने संबंधित राज्यों में विधानसभा चुनावों की आहटों को भांपते...

2019 के चुनावों की तैयारी में भाजपा अभी से जुट गई है। सूत्रों की मानें तो भगवा पार्टी का लक्ष्य एक बड़ा फंड इकट्ठा करने का है, 2019 के चुनाव में एक बड़ी रकम झोंकी जा सकती है। वैसे भी राजनीतिक चंदा पाने में भाजपा अभी भी सिरमौर बनी हुई है। 

सूत्र बताते हैं कि पार्टी की केंद्रीय इकाई ने अपने राज्यों के क्षत्रपों से कह दिया है कि वे खुले मन से पार्टी फंड में अपना योगदान दें। माना जा रहा है कि तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने संबंधित राज्यों में विधानसभा चुनावों की आहटों को भांपते हुए केंद्रीय फंड में ज्यादा कुछ कर पाने में असमर्थता जताई है, ये तीनों मुख्यमंत्री हैं-राजस्थान से वसुंधरा राजे सिंधिया, मध्य प्रदेश से शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ से रमण सिंह। 

भाजपा शीर्ष की निगाहें फिलवक्त उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र पर टिकी हुई हैं। यू.पी. के सी.एम. योगी आदित्यनाथ को भी एक बड़ा लक्ष्य दिया गया है पर कहते हैं कि अब योगी भी भाजपा शीर्ष को यह कह कर आईना दिखा रहे हैं कि जो भी इकट्ठा करना है अपने लोगों से (मसलन केशव प्रसाद मौर्य, दिनेश शर्मा, श्रीकांत शर्मा, सिद्धार्थनाथ सिंह आदि) कह कर इकट्ठा कर लें, क्योंकि वह यानी योगी तो पैसा-कौड़ी छूते नहीं। कहीं यही वजह तो नहीं है कि कुंभ में एक हजार का कंबल चार हजार में खरीदा जा रहा है। यह एक नए कॉमनवैल्थ घोटाले की आहट तो नहीं? 

मोदी की आंधी, पत्रकारों की चांदी: मोदी का सोशल और डिजीटल मीडिया का निशाना अचूक है, विपक्ष को साधने व नाथने में मोदी के वॉर रूम का कोई सानी नहीं। जो लोग मोदी के 2014 के चुनाव अभियान से जुड़े थे और वॉर रूम में सक्रिय थे उनमें से कई लोग बकायदा अब भी काम में जुटे हुए हैं। कई पुराने लोगों को बुला लिया गया है, पिछले कुछ महीनों में सोशल मीडिया हैंडल करने के लिए कई नई टीमों का भी गठन हुआ है, ये वॉर रूम अलग-अलग दफ्तरों से चल रहे हैं। कई प्रबुद्ध पत्रकारों को लुभाया जा रहा है और उन्हें मेहनताने के तौर पर मोटी रकम का प्रलोभन दिया जा रहा है, तीन लाख रुपए महीने तक का ऑफर है और वह भी कैश। इन पत्रकारों को बस विपक्षी हमलों की काट ढूंढनी है, उठ रहे नानादि प्रकार के सवालों के जवाब तलाशने हैं, विपक्ष की धार को कुंद करना है, नई रणनीतियां बुननी हैं और आंकड़ों को दमदार तरीके से पेश करना है, ताकि ब्रांड मोदी की चमक 19 में भी पहले की तरह बरकरार रहे। 

‘आप’ व कांग्रेस में दिल्ली का खेल: जयपुर सीट जीतने के बाद से राहुल और कांग्रेस के हौसले बम-बम हैं।  2019 के चुनावी महासमर में मोदी की भाजपा को मात देने के लिए कांग्रेसी हाईकमान गठबंधन धर्म को कहीं ज्यादा तरजीह देने लगा है। केरल की आने वाली 2 राज्यसभा सीटों में से एक पर कांग्रेस का दावा है, पर यह एकमात्र सीट भी पार्टी अपने सहयोगी दल मणि कांग्रेस के लिए छोडऩे को तैयार है। 

केरल से चली यह बयार दिल्ली में भी असर दिखाने लगी है। अजय माकन अतीत में उनके चेले रहे ‘आप’ के आशीष तलवार के मार्फत लगातार अरविंद केजरीवाल के सम्पर्क में हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दिल्ली में यह गणित फल-फूल रहा है कि भाजपा को दिल्ली में शिकस्त देने के लिए ‘आप’ व कांग्रेस मिल कर चुनाव लड़ें। माना जाता है कि फिलहाल माकन का सारा फोकस अपनी और संदीप दीक्षित की सीट को लेकर है। 

जब इस बात की भनक जय प्रकाश अग्रवाल और सुभाष चोपड़ा को लगी तो वे भी राशन-पानी लेकर टिकटों के इस बंटवारे की जंग में कूद गए। इन दोनों नेताओं का तर्क है कि दिल्ली में कांग्रेस अपने दम पर चुनाव लड़कर जीत सकती है। उसे किसी गठबंधन साथी की जरूरत नहीं और अगर ‘आप’ को साथ आना है तो उसे फिर जूनियर पार्टनर बनने के लिए तैयार रहना होगा, फिलहाल दिल्ली में ‘आप’-कांग्रेस के रिश्ते पेंचोखम में उलझ गए हैं। 

शिवसेना-भाजपा एक-दूसरे की मजबूरी: शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और भाजपाध्यक्ष अमित शाह के दरम्यान भले ही रिश्तों के नए सूत्र नहीं जुड़े हों, पर दोनों ही नेताओं ने अपनी सियासी मजबूरियों के चलते बातचीत के रास्ते खुले रखे हैं और शिवसेना भी भाजपा से अपनी तमाम नाराजगियों के बावजूद अब भी केंद्र और महाराष्ट्र में सरकार में उनकी हिस्सेदार है। पिछले दिनों जब अमित शाह उद्धव को मनाने उनके पास गए तो उद्धव नहीं माने क्योंकि उद्धव का कहना था कि लोकसभा की सीटों के तालमेल के अलावा विधानसभा की सीटों को लेकर भी बात हो। 

उद्धव चाहते हैं कि विधानसभा सीटों के बंटवारे में इस दफा महाराष्ट्र में 2010 के तालमेल फॉर्मूले को ही दोहराया जाए, जाहिर तौर पर भाजपा इसके लिए किंचित भी तैयार नहीं। वैसे भी भाजपा का दामन थामे रहना शिवसेना के लिए जरूरी और उसकी अपनी मजबूरी है, यह उसके अपने अस्तित्व का भी सवाल है क्योंकि शिवसेना की कमजोरी है बी.एम.सी. और अकेले मुंबई महानगर पालिका का सालाना बजट 40 हजार करोड़ रुपयों का है। यह बजट शिवसेना की मजबूरी भी है और कमजोरी भी क्योंकि बी.एम.सी. में शिवसेना का मेयर भाजपा कीसपोर्ट से है और बी.एम.सी. पर पूरी पार्टी का अस्तित्व टिका है। मोदी-शाह के लिए भी अब 2019 में उनका हर गठबंधन साथी उतना ही जरूरी है, क्योंकि विपक्षी एकता के शोर में मोदी की बुलंद आवाज किंचित कमजोर डग भरने लगी है। 

नायडू पर भगवा नजर: आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का एक ड्रीम प्रोजैक्ट पुलावरम इरिगेशन प्रोजैक्ट था, इसका खर्च तकरीबन 25 हजार करोड़ आंका गया था। सूत्र बताते हैं कि इस प्रोजैक्ट की बाबत जब नायडू ने स्वयं प्रधानमंत्री मोदी से बात की तो उन्हें वहां से इसे लेकर हरी झंडी हासिल हो गई। इसके बाद नायडू अपने काम में जुट गए। प्रोजैक्ट का काम शुरू हुआ और नायडू ने केंद्रीय वित्तीय मदद के लिए दिल्ली सारे कागजात भिजवा दिए, जब बहुत दिनों तक केंद्र की ओर से पैसा रिलीज नहीं हुआ तो नायडू ने इसकी केंद्र से वजह जाननी चाही, कहते हैं तब उन्हें बताया गया कि इस प्रोजैक्ट में संलग्न कई बिल फर्जी हैं। 

नायडू ने केंद्र के समक्ष अपनी नाराजगी जताई पर इस बाबत न तो उस वक्त के वित्त मंत्री जेतली का कोई बयान सामने आया और न ही नीति आयोग ने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया दी। तब नायडू के एक मुंह लगे पत्रकार ने उन्हें सलाह दी कि क्यों नहीं वह इस बारे में अमित शाह से बात करते हैं। इस पर नायडू ने एक गहरी चुप्पी साध ली, एक गहरी सारगॢभत चुप्पी, जिसके मुहाने पर एन.डी.ए. से अलगाव का बड़ा लावा फूट रहा था। 

नायडू की बल्ले-बल्ले: नायडू ने जब से एन.डी.ए. से अपना नाता तोड़ा है तब से केंद्र की सत्ताधारी पार्टी उनके काम-काज पर पैनी नजर रखने लग गई है। सूत्रों की मानें तो अमित शाह ने राम माधव और राज्यसभा के नए-नवेले सदस्य जी.वी.एल. नरसिम्हा राव को यह जिम्मा सौंपा है कि वे आंध्र में एक्टिव रहते हुए चंद्रबाबू पर नजर रखें। सुना जाता है कि शाह का निर्देश पाकर ये दोनों नेता विजयवाड़ा में डट गए हैं। चंद्रबाबू के खिलाफ वे वहां के स्थानीय पत्रकारों को भी पुडिय़ा पकड़ा रहे हैं। कहते हैं कि पिछले दिनों जी.वी.एल. तो अमरीका की भी यात्रा कर आए और अमरीका में प्रभावी आंध्र एसोसिएशन के पदाधिकारियों से भी मिले और उन्हें किंचित यह हिदायत भी दी कि वे चंद्रबाबू से एक दूरी बनाकर रखें। इसके तुरंत बाद इस एसोसिएशन के एक प्रमुख पदाधिकारी का चंद्रबाबू के पास फोन आया-‘यदि आपको पी.एम. सपोर्ट नहीं कर रहे हैं तो हम करेंगे, आप आंध्र के विकास के कार्यक्रमों को जारी रखिए।’ 

...और अंत में : कर्नाटक की इस नवगठित जे.डी.एस.-कांग्रेस सरकार में एक 82 वर्षीय विधायक मनागोलि को बेहद नाटकीय घटनाक्रम के बाद मंत्री बनाया गया। इन महाशय का नाम शपथ लेने वाले मंत्रियों की लिस्ट में नहीं था। इस बुजुर्ग विधायक ने एक ही दिन में लगभग 3 बार एच.डी. देवेगौड़ा से मिलने का प्रयास किया, पर अतिव्यस्तता की वजह से देवेगौड़ा अपनी पार्टी के इस विधायक से मिल नहीं पाए, तब इस बुजुर्ग विधायक ने खुलेआम धमकी दे डाली कि वह देवेगौड़ा के घर के बाहर आत्महत्या कर लेंगे। तब देवेगौड़ा ने अपने पुत्र कुमार स्वामी से कह कर आनन-फानन में उन्हें सरकार में मंत्री बनवा दिया, ताकि कोई बवाल न हो।-त्रिदीब रमण 

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