अपनी ‘योग्यता’ गंवाती जा रही है भाजपा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Feb, 2018 02:06 AM

bjp is losing its merit

मणि शंकर अय्यर ने शायद 2014 के चुनावों में अपने सर्वाधिक बड़े और सबसे अच्छे ब्रेक में से एक भाजपा को दे दिया था। उनकी अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के समारोह में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के चाय बेचने की व्यंग्यात्मक व असंवेदनशील...

मणि शंकर अय्यर ने शायद 2014 के चुनावों में अपने सर्वाधिक बड़े और सबसे अच्छे ब्रेक में से एक भाजपा को दे दिया था। उनकी अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के समारोह में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के चाय बेचने की व्यंग्यात्मक व असंवेदनशील टिप्पणी ने तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘चाय वाला’ के नाम से सर्वाधिक सफल मुख्यमंत्री बना दिया। चुनावी अभियान के खेल के अनुरूप भाजपा का इस पर प्रतिक्रम क्रूर था तथा इसने भाजपा के लिए 2014 की जीत का आधार बनाया था। 

उनका कहना है कि राजनीति में एक सप्ताह लंबी अवधि है और 4 वर्ष तो पूरे जीवन के समान हैं। भाजपा के गत वर्षों में भाषण देने के कौशल अब विवादों, बड़ी नीतियों की घोषणाएं भर अथवा सरकारी कार्यक्रमों की आलोचना के प्रतिक्रम के रूप में ही देखे जाते हैं। कांग्रेस धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है तथा भाजपा को भ्रष्टाचार एवं शासन एवं समृद्धि सुधार के प्रावधान में अयोग्य बता रही है। परन्तु भाजपा भी समान रूप से अपनी योग्यता खोती जा रही है। 

भाजपा को सबसे बड़ा लाभ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है। गत सप्ताह उनका संसद में भाषण जोकि कांग्रेस के लिए वज्रपात जैसा था, ने भाजपा को कांग्रेस से कहीं ऊंचा खड़ा कर दिया परन्तु अगर आप इन चीजों को छोड़ दें और पार्टी के कुछ शीर्ष मंत्रियों जैसे अध्यक्ष अमित शाह, वित्त मंत्री अरुण जेतली, रेल मंत्री पीयूष गोयल एवं कुछ अन्यों के अतिरिक्त पार्टी विपक्ष और अपनों में ही द्वंद्व खेल रही है। कुछ उदाहरण लेते हैं, राफेल फाइटर जैट सौदे में एफ.आर.डी.आई. बिल पर विवाद उठा। एन.पी.ए. विवाद पर भी खूब हंगामा हुआ जिस पर कांग्रेस व विपक्षी राजनीतिक पार्टियों का दावा है कि मोदी सरकार ने अमीर कार्पोरेट्स के ऋण माफ किए हैं। 

इन प्रत्येक मामलों में पैट्रन एक समान है। सत्तासीन भाजपा इन मामलों पर धीमे व मंदगति से प्रत्युत्तर दे रही है। इस पर प्रभावी फालोअप कमजोर पड़ता जा रहा है। कुछ पार्टी नेता/प्रवक्ता टी.वी. पर इस पर बहस करते दिखते हैं जिन्हें बहस करता देख उनको सांत्वना देने का मन करता है। वे चीख-चिल्ला कर अपना पक्ष रखते हैं जबकि आरोपों की बौछारों से उनके चेहरों पर आई शिकन साफ देखी जाती है। कई बार वे दर्शकों के सामने आपा भी खो देते हैं। ऐसे ही एक मामले में कुछ महीने पहले भाजपा के प्रवक्ता तब तक टी.वी. पर चीख-चीख कर अपनी बात करते रहे जब तक कि टी.वी. एंकर ने अपना धैर्य नहीं खोया। एक अन्य मामले में कांग्रेस प्रवक्ता पी.चिदम्बरम द्वारा ध्यानार्थ लाए गए अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर विचार-विमर्श कर रहा था जोकि बहुत हद तक सही एवं नाप-तोल कर बोला गया लगा। 

कांग्रेस पार्टी में हर कोई जानने को बेकरार है कि कैसे इस वर्ष सर्द ऋतु में कुछ राज्यों की जीत के पश्चात कर्नाटक में भाजपा-मोदी घुड़सवार सेना को रोकना है एवं 2019 में भाजपा की जीत के लक्ष्य में अड़ंगा डालना है ताकि मोदी प्रधानमंत्री की दौड़ से बाहर हो जाएं। वे कहीं भी पत्थर फैंक रहे हैं और हर कोई आशा कर रहा है कि यह किसी न किसी के तो लगेगा। यही कारण है कि आप देखेंगे कि भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे पर दक्षिण जीतने के लिए हर छोटी-बड़ी पार्टी से हाथ मिलाने को तैयार है। यह भी एक कारण है कि राफेल सौदा विवाद कांग्रेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह प्रधानमंत्री मोदी की भ्रष्टाचार विरोधी छवि में एक धब्बा बन सकता है। 

पुन: यह हम देखेंगे कि भाजपा की प्रतिक्रिया इस पर रक्षात्मक हो गई है और कहीं-कहीं तो नकारात्मक भी हो गई है। इतना कहना काफी नहीं है कि राष्ट्रीय सुरक्षा एवं हित से बड़ा मुद्दा कोई नहीं है। इस मामले में आपको सूत्र दर सूत्र स्पष्टीकरण देना होता है। दर्जनों प्रमाणों के साथ विपक्ष को संतुष्ट करना होता है न कि उसे मूर्ख बनाना। मैं नितिन गोखले एवं अभिजीत अय्यर सरीखे समीक्षकों से डर रहा हूं कि राफेल डील पर झूठी बयानबाजी करके कहीं वे भाजपा को ज्यादा नुक्सान न पहुंचा दें। उनके द्वारा लिखे लेख एवं ट्विटर पर किए गए ट्वीट बताते हैं कि राजग-2 के अधीन राफेल के लिए अधिक कीमत दिए जाने के आरोप कितने बेबुनियाद हैं। 

भाजपा सरकार के पास 2019 में आने के लिए कहने को एक अच्छी कहानी हो सकती है कि पार्टी नोटबंदी एवं जी.एस.टी. जैसे दोहरी मार से जूझ रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला दे और आयात को बढ़ाए परन्तु अभी ऐसा होता लग नहीं रहा है। भाजपा के लिए प्रचार में भी समस्या हो सकती है। भाजपा को मोदी, शाह, जेतली, गोयल एवं कुछ अन्य नेताओं पर ही निर्भर होना पड़ेगा। रवि शंकर प्रसाद एवं निर्मला सीतारमण जोकि अब मंत्री बन चुके हैं, पार्टी के लिए लोगों के बीच जाने को ज्यादा समय नहीं दे पाएंगे, यह कोई अच्छा संकेत नहीं है।-आर. श्रीराम

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