भाजपा अब कर रही ‘शहीद वोट बैंक’ बनाने की तैयारी

Edited By Pardeep,Updated: 13 Sep, 2018 04:34 AM

bjp is now preparing to make  martyr vote bank

भाजपा की हाल ही में दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी का निचोड़ यही है कि वह मोदी सरकार के कामकाज और उग्र हिंदुत्व के साथ-साथ उग्र राष्ट्रवाद को भी चुनावी मुद्दा बना रही है। असम में नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एन.आर.सी.) को लेकर भाजपा नेता जिस तरह...

भाजपा की हाल ही में दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी का निचोड़ यही है कि वह मोदी सरकार के कामकाज और उग्र हिंदुत्व के साथ-साथ उग्र राष्ट्रवाद को भी चुनावी मुद्दा बना रही है। असम में नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एन.आर.सी.) को लेकर भाजपा नेता जिस तरह से तीखे बयान दे रहे हैं, उससे साफ है कि भारत में रह रहे कथित घुसपैठियों के बहाने राष्ट्रवाद को जन-जन के मानस में उतारने की तैयारी चल रही है। इस मुहिम की एक प्रयोगशाला राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में चल रही है। 

राजस्थान में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ दिसम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव में वोटों के जुगाड़ में शहीदों की मूर्तियां को भी बख्शा नहीं जा रहा है। गांवों-गांवों में शहीदों की मूर्तियां लगाने के बहाने ऐसे गांवों को शहीद वोट बैंक बनाने की तैयारी हो रही है। शेखावाटी में चूरू,झुंझुनूं और सीकर जिले आते हैं। यहां की तीनों लोकसभा सीटें पिछले चुनावों में भाजपा ने जीती थीं। यहां की कुल 21 सीटों में से भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनावों में 12 सीटें जीती थीं और कांग्रेस के हाथ सिर्फ 4 ही आई थीं।  तीन निर्दलीयों में से भी दो भाजपा के पाले में आ गए थे। 

शेखावाटी को सैनिकों, फौजी गांवों के लिए जाना जाता है। यहां का झुंझुनूं जिला तो देश का सबसे बड़ा जिला है, जिसने देश को सबसे ज्यादा सैनिक भी दिए हैं और शहीद भी। पिछले दिनों इसी जिले के दौरे के दौरान शहीदों की मूर्तियों के बहाने वोटों के जुगाड़ का गणित समझने का मौका मिला। हम झुंझुनूं जिले के टोडरवास गांव पहुंचे। यहां सिपाही बानी सिंह शेखावत की मूर्ति का अनावरण समारोह हो रहा था। यह 1971 में भारत-पाक लड़ाई में शहीद हुए थे और मूर्ति का अनावरण हो रहा है  2018 में। आप भी सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों? सवाल उठता है कि क्या यह शहीद के प्रति मोहब्बत है या फिर कहीं न कहीं वोटों की सियासत। अनावरण समारोह में झुंझुनूं की सांसद संतोष अहलावत, राज्य सैनिक कल्याण सलाहकार समिति के अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजौर के अलावा स्थानीय भाजपा विधायक, सरपंच और गांव के लोग मौजूद थे। मंच पर शहीद का परिवार भी बैठा था। 

भाषणों का दौर शुरू हुआ और बात शहीद, शहादत, देश प्रेम से होते हुए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा तक जा पहुंची, जो इन दिनों निकाली जा रही है। इसके बाद भाषण देने की बारी आई नरेन्द्र कुमार, विधायक मंडावा, झुंझुनूं की। वैसे तो यह निर्दलीय जीते थे लेकिन लिखित में वसुंधरा सरकार को समर्थन दे रहे हैं। नरेन्द्र कुमार ने शहीद की शहादत के बारे में रस्म अदायगी के बाद सारा एजैंडा ही सामने रख दिया। भाषण में कहने लगे कि हाल ही में 50 हजार रुपए का किसानों का कर्जा वसुंधरा की देन है, उज्ज्वला योजना के तहत मिल रहा गैस कनैक्शन वसुंधरा की देन है, गांव में बनने वाली सीमैंट की पक्की सड़क वसुंधरा की देन है। 

यहां तक कि विधायक महोदय ने बच्चों को स्कूलों में मिड-डे मील के तहत मिलने वाले दूध का भी जिक्र कर दिया। कहने लगे कि अब तो बात यहां तक होने लगी है कि घर का दूध ज्यादा अच्छा है या स्कूल में मिलने वाला। उन्होंने बच्चों के हाथ उठवा कर उनका समर्थन लिया। विधायक महोदय बच्चों को यह बात याद दिलाना नहीं भूले कि पहले उन्हें हफ्ते में 3 दिन दूध मिलता था लेकिन अब 6 दिन मिलने लगा है और ये सब वसुंधरा राजे की देन है। बात सिर्फ एक बानी सिंह और एक मंडावा विधानसभा तक सीमित नहीं है। बानी सिंह शेखावत की तरह 1173 मूर्तियां राजस्थान में लगाई जानी हैं। इनमें 1962, 1965 और 1971 के शहीदों के साथ-साथ नक्सली हमलों में शहीद हुए अद्र्धसैनिक बलों के शहीद भी शामिल हैं। 

अकेले झुंझुनू में 452 मूर्तियां लगाने का काम चल रहा है। झुंझुनूं के ही खुड़ानिया गांव के मूर्तिकार वीरेन्द्र सिंह शेखावत मूर्तियां बनाने में लगे हैं। वह बताते हैं कि अब तक 30-35 मूर्तियां लग चुकी हैं और 100 बनकर तैयार हैं। उन्हें तेजी से मूर्तियां बनाने को कहा गया है। मूर्तियां सैनिक कल्याण बोर्ड लगवा रहा है और वसुंधरा राजे सरकार हर शहीद परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने जा रही है। यह सारा काम दिसम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पूरा कर लेने का लक्ष्य रखा गया है। 

प्रत्येक मूर्ति पर एक से डेढ़ लाख का खर्च आता है जिसे राज्य सैनिक कल्याण सलाहकार समिति के अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजौर खुद उठा रहे हैं क्योंकि सरकारी खर्च से शहीद की मूर्ति नहीं बनवाई जा सकती। उनका कहना है कि करीब 25 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। वह कांग्रेस के आरोपों को सिरे से नकारते हैं लेकिन मानते हैं कि अगर अच्छा काम करने से वोट मिलता है तो इससे किसी को दिक्कत क्या है। बाजौर का कहना है कि शेखावाटी के अलावा पूरे राज्य में इस तरह की मूर्तियां लगाई जा रही हैं और हाल ही में सिरोही जिले के शिवगंज में गौरव यात्रा के दौरान खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ऐसी ही एक मूर्ति का अनावरण कर चुकी हैं। एक सड़क का नाम भी शहीद के नाम पर रखा गया है। 

हमारे देश में नेताओं और महापुरुषों की मूर्तियों को लेकर हमेशा से राजनीति होती रही है और चुनावों में फायदा भी उठाया जाता रहा है लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि शहीदों की मूर्तियों को लेकर राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़ी जा रही हो और चुनाव में वोटों की उम्मीद भी की जा रही हो। लेकिन इसके उलट एक सच यह भी है कि 1999 के कारगिल के युद्ध के समय शहीदों के परिवार वालों के साथ किए गए वायदे अभी तक पूरे नहीं हुए हैं, भले ही राज्य में कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर भाजपा की। दरअसल कारगिल पहला युद्ध था जब शहीदों के शव उनके गांव तक पहुंचाए गए। इससे पहले तो शहीद का दाह संस्कार वहीं कर दिया जाता था और घऱ पर बैल्ट और वर्दी ही आती थी। शव आए तो राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ और तब मूर्तियां लगाने का चलन भी शुरू हुआ।

ऐसी मूर्तियों के अनावरण पर आने वाले सत्तारूढ़ दल के बड़े नेता बड़े-बड़े वायदे करके जाने लगे लेकिन बहुत से गांवों में आज भी स्कूल का नाम शहीद के नाम पर नहीं हुआ है। जहां नाम हुआ भी है वहां बोर्ड की मार्कशीट पर शहीद का नाम स्कूल के साथ लिखा हुआ नहीं आ रहा है। कुछ शहीद परिवार उस जमीन पर कब्जे की बात करते हैं जो उन्हें तब शहीद पैकेज के तहत इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र में मिली थी। शहीद के नाम पर हो रही राजनीति की एक बड़ी मिसाल जयपुर से 50 किलोमीटर दूर जयसिंह पुरा गांव है। यहां शेखावटियों की ढाणी का अद्र्धसैनिक बल का एक जवान प्रकाशचंद मीणा 13 मई, 2012 को छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में शहीद हुआ लेकिन उस शहीद की मूर्ति नेता के इंतजार में 5 साल तक सफेद कपड़ों में ढकी रही। 

दो-दो मुख्यमंत्री समय नहीं निकाल सके। दिसम्बर 2013 तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे। वह नहीं आ सके। उसके बाद वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनीं लेकिन वह भी समय नहीं निकाल सकीं। आखिरकार 5 साल के इंतजार के बाद शहीद के पिता ने धमकी दी कि अगर 13 मई, 2017 तक कोई नेता नहीं आया तो वह खुद ही मूर्ति का अनावरण कर देंगे। बात स्थानीय अखबारों में छपी, स्थानीय चैनलों में आई। शहीद के पिता श्रीकृष्ण मीणा बताते हैं कि इस पर भाजपा के स्थानीय नेता शर्मसार हुए और क्षेत्र के सांसद तथा केन्द्र सरकार में मंत्री राज्यवद्र्धन सिंह राठौड़ ने समय निकाला। 

एक शेर याद आता है :
कौन याद रखता है अंधेरे वक्त के साथियों को, 
सवेरा होते ही चिराग बुझा देते हैं लोग।-विजय विद्रोही

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