भाजपा की नजर अब महाराष्ट्र, हरियाणा व झारखंड जीतने पर

Edited By ,Updated: 11 Sep, 2019 01:37 AM

bjp now eyes on winning maharashtra haryana and jharkhand

हालिया लोकसभा चुनावों में शानदार विजय के पश्चात भाजपा तीन चुनावी राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा तथा झारखंड को बनाए रखने का लक्ष्य साधे हुए है जहां इस वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए ‘मिशन...

हालिया लोकसभा चुनावों में शानदार विजय के पश्चात भाजपा तीन चुनावी राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा तथा झारखंड को बनाए रखने का लक्ष्य साधे हुए है जहां इस वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए ‘मिशन 75-प्लस’, झारखंड के लिए ‘मिशन 65-प्लस’ तथा 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के लिए ‘मिशन 220-प्लस’ का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। ये चुनाव यह देखने के लिए कसौटी होंगे कि क्या भाजपा अपना जीत का सिलसिला बनाए रखेगी। 

भाजपा इतनी विश्वस्त क्यों
भाजपा इतनी विश्वस्त क्यों है? सबसे पहले, ये चुनाव मोदी की मई में शानदार विजय की पृष्ठभूमि में हो रहे हैं तथा सभी तीनों राज्यों में विपक्ष मिले झटके से उबर नहीं पाया है। दूसरे, विपक्ष अभी भी एकजुट नहीं है। तीसरे, उनके पास राष्ट्रीय अथवा राज्य स्तर पर ऊंचे कद के नेता नहीं हैं जो मोदी की बराबरी कर सकें। चौथे, 2014 में भाजपा ने हरियाणा में 90 में से 47 सीटें, झारखंड में आल झारखंड स्टूडैंट यूनियन के साथ गठजोड़ में 81 में से 42 तथा महाराष्ट्र में 288 में से 122 सीटें शिवसेना के साथ गठजोड़ में जीती थीं। इसके साथ ही हालिया लोकसभा चुनावों में भी भाजपा तथा इसके सहयोगियों ने इन राज्यों में कुल 72 लोकसभा सीटों में से 63 जीत कर विपक्ष का लगभग सफाया कर दिया था। पांचवें, विपक्ष के पास भाजपा जैसी धन शक्ति, संचार कौशल, संगठनात्मक कौशल अथवा नेतृत्व का अभाव है। 

पार्टी ने राष्ट्रीय अखंडता तथा सुरक्षा की मुख्य चुनावी मुद्दों के तौर पर पहचान की है। अनुच्छेद 370 व ट्रिपल तलाक को हटाना तथा चन्द्रयान भी प्रमुख मुद्दे बने रहेंगे। इसके विपरीत विपक्ष किसानों के संकट, बढ़ रही बेरोजगारी तथा अर्थव्यवस्था में मंदी जैसे मुद्दे उठाएगा। भाजपा के लाभ में एक अन्य बात यह कि गिरावट की ओर जा रही कांग्रेस महाराष्ट्र तथा हरियाणा में इसकी मुख्य राजनीतिक विरोधी है जबकि झारखंड में कांग्रेस नीत गठबंधन है। 

आशा के कारण
भाजपा को आशा है कि कमजोर विपक्ष, राष्ट्रवाद में उठान के साथ-साथ समय-समय पर परीक्षित किया जा चुका भाजपा-शिवसेना गठबंधन सत्ताधारी पार्टी को सत्ता में वापस लौटने में मदद करेगा। फडऩवीस दावा करते हैं कि भाजपा-शिवसेना गठबंधन 288 में से 229 सीटें जीतेगा। वह यह दावा बाम्बे हाईकोर्ट के मराठा आरक्षण पर आदेश, कांग्रेस-राकांपा छोड़ कर आने वाले नेताओं तथा विपक्षी वोटों के विभाजन के आधार पर कर रहे हैं। और तो और, पार्टी अन्य दलों से दल-बदलकर आने वालों का खुले दिल से स्वागत करती है।

कांग्रेस तथा राकांपा में क्षरण बढ़ रहा है क्योंकि दोनों पाॢटयों से वरिष्ठ नेता भाजपा में स्थानांतरित हो गए हैं। भाजपा तथा शिवसेना के बीच ‘कभी हां-कभी न’ वाले संबंध का एक बार फिर परीक्षण होगा। भाजपा को गठबंधन में अधिक चुनौती है क्योंकि शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे चुनाव लडऩे की योजना बना  रहे हैं। वह चुनावी राजनीति में जाने वाले पहले ठाकरे होंगे। यदि शहरी क्षेत्रों में राज ठाकरे का करिश्मा, शरद पवार की चुनावी रणनीति तथा सत्ता विरोधी लहर काम कर सके तो इससे कुछ चुनौती खड़ी हो सकती है। 

जहां तक हरियाणा की बात है, भाजपा ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के रूप में एक विजेता पा लिया है जो अपने तौर पर एक नेता के रूप में उभरे हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले ही अपना चुनाव प्रचार शुरू कर चुके हैं। हरियाणा में कांग्रेस में आंतरिक लड़ाई तथा इनैलो के दोफाड़ होने से खट्टर के लिए काम आसान हो गया है। भाजपा के मुख्य विरोधी कांग्रेस, इनैलो तथा हरियाणा जनहित कांग्रेस हैं। उच्च जातियों, बनियों व व्यापारियों तथा ओ.बी.सीज का ध्रुवीकरण करने के लिए भाजपा गैर-जाट के पत्ते खेल रही है। इनैलो तथा कांग्रेस दोनों जाट वोटों के लिए होड़ में हैं, जो बंट सकती हैं। 

हरियाणा एक बढिय़ा उदाहरण है कि कैसे एक भव्य पुरानी पार्टी कांगेस ने एक ऐसे राज्य में अपने अवसर गंवा दिए जहां उसकी उपस्थिति है, मजबूत नेताओं के साथ-साथ एक सामाजिक आधार है। हरियाणा में अपनी बुरी स्थिति के लिए कांग्रेस खुद दोषी है। कड़ी आंतरिक लड़ाई, संगठन का अभाव तथा नए जाति समीकरण ने सुनिश्चित किया है कि कांग्रेस भाजपा के लिए बहुत कम या बिल्कुल ही चुनौती पेश न करे। 

देरी से उठाया गया कदम
सोनिया गांधी ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री कुमारी शैलजा की नई पी.सी.सी. अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति के साथ-साथ पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. हुड्डा को भी शांत किया है। मगर यह बहुत कम तथा देरी से किया गया कार्य है। झारखंड में, हालांकि रघुबर दास सरकार विकास कार्यों में अपना प्रभाव छोडऩे में असफल रही है, फिर भी मुख्यमंत्री दास को एक अन्य कार्यकाल की आशा है। ‘घर-घर रघुबर’ के चुनावी नारा बनने की सम्भावना है। भाजपा ने राज्य में 14 लोकसभा सीटों में से 12 जीती हैं लेकिन अब इसे मुख्यमंत्री रघुबर दास के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर से उबरना है।

कांग्रेस चिंतित है कि भाजपा राज्य में बढ़ रही है, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, जबकि केवल मुसलमान तथा जनजातीय लोग कांग्रेस के साथ रह गए हैं। कांग्रेस को तब भी एक झटका लगा था जब इसकी राज्य इकाई के प्रमुख अजय कुमार ने हाल ही में पार्टी छोड़ दी थी। फिलहाल आशा है कि भाजपा इन तीनों राज्यों को ले जाएगी। कांग्रेस में नेतृत्व का संकट, संगठन का अभाव तथा पार्टी में क्षरण भाजपा तथा इसके सहयोगियों के लिए भाजपा का नेतृत्व जारी रखना आसान बना देगा। हतोत्साहित कांग्रेस के लिए एक राज्य भी जीतना इसके कार्यकत्र्ताओं के मनोबल में वृद्धि करेगा। कुल मिलाकर भाजपा बढ़त में है।-कल्याणी शंकर

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