भाजपा अब विवादास्पद कृषि कानूनों को दफन करने की सोचे

Edited By ,Updated: 12 May, 2021 05:58 AM

bjp now thinks of burying controversial agricultural laws

2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली पहली भाजपा सरकार ने कार्पोरेट्स को देश भर में भूमि तक अपनी पहुंच आसान करने वाले भूमि अधिग्रहण कानूनों की कायापलट करने के लिए

2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली पहली भाजपा सरकार ने कार्पोरेट्स को देश भर में भूमि तक अपनी पहुंच आसान करने वाले भूमि अधिग्रहण कानूनों की कायापलट करने के लिए एक महत्वाकांक्षी सुधार का अनावरण किया मगर सरकार को विपक्षी पाॢटयों से प्रचंड विरोध झेलने पड़े जिसके चलते बदलावों को वापस लेना पड़ा।

2020 में मोदी के नेतृत्व वाली दूसरी भाजपा सरकार ने भारत के कृषि कानूनों में महत्वाकांक्षी सुधारों का अनावरण किया जिसके चलते कंपनियों को किसानों से सीधे तौर पर खरीद करना आसान हो गया। इसके द्वारा पार परिक बिचौलियों और मंडियों को दरकिनार कर दिया गया। 

विपक्षी दलों से विरोध, सुप्रीम कोर्ट से एक चुनौती और दिल्ली की सीमाओं पर महीनों से चले आ रहे ल बे किसान प्रदर्शनों के बावजूद सरकार टस से मस न हुई और सिर्फ रियायतों का प्रस्ताव देती रही मगर उसने कृषि कानूनों को निरस्त नहीं किया। 

अब लहर पलट रही है। लोकनीति-सी.एस.डी.एस. द्वारा आयोजित चुनावों के बाद के हालिया सर्वे से प्राप्त आंकड़ों ने राज्यों के प्रदर्शनकारी किसानों के लिए महत्वपूर्ण समर्थन जताया है। भाजपा समर्थकों में नए कृषि कानूनों के बारे में बेचैनी है। एक ऐसे समय में जबकि सत्ताधारी पार्टी की लोकप्रियता कम हो रही है। ऐसे में पार्टी सावधान दिखाई देती है और अलोकप्रिय कृषि कानूनों को वापस लेना चाह रही होगी। 

हाल ही में आयोजित चार राज्यों तथा एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा की कारगुजारी तथा महामारी से निपटने के लिए सरकार की असफलता को देखते हुए लोगों के बढ़ते आक्रोश के चलते सत्ताधारी पार्टी की छवि को किसी हद तक ठेस पहुंची है। उत्तर प्रदेश के हालिया पंचायती चुनावों के नतीजे भी सत्ताधारी भाजपा सरकार के लिए प्रतिकूल दिखाई पड़े हैं। यहां पर पार्टी एक वर्ष में एक अन्य चुनौती को झेलेगी। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने भाजपा की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। 2015 जैसे कृषि कानूनों की वापसी से उत्तर प्रदेश तथा उससे आगे पार्टी के समर्थन आधार में कटाव कम होने की संभावना बन सकती है। 

मध्यम वर्ग की प्रार्थना : जबकि दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन करने वाले किसान ज्यादातर पंजाब तथा हरियाणा से थे मगर इस मुद्दे की गूंज अब सब ओर सुनाई पड़ती है। किसान प्रदर्शनों की पहुंच केवल मध्यम वर्ग तक सीमित नहीं है। मध्यम वर्ग की एक बड़ी गिनती ने कृषि कानूनों का विरोध किया है। हाल ही के चुनावों में इस वर्ग ने भाजपा को झटका दिया है।

इस वर्ग ने पार परिक और नए मीडिया चैनलों के माध्यम से अपनी आवाज उठाने में कामयाबी पाई है। कई मुद्दों पर उनकी आवाज ने एक प्रभावी राष्ट्रीय बातचीत को नया आकार दिया है और कृषि कानून ऐसा ही एक अन्य मुद्दा हो सकता है। मध्यम वर्ग का सी.एस.डी.एस. वर्गीकरण एक जटिल इंडैक्स पर आधारित है। 

बढ़ता असंतोष : चुनावों के बाद का सर्वे दर्शाता है कि विपक्षी दलों के समर्थक वे लोग ज्यादा हैं जो कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। इनकी गिनती भाजपा समर्थकों से ज्यादा है। मिसाल के तौर पर केरल में 56 प्रतिशत लैफ्ट मतदाता तथा असम में 52 प्रतिशत कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन के समर्थकों ने कृषि कानूनों का विरोध किया है। मगर ज्यादातर भाजपा के समर्थकों के एक हिस्से ने भी कृषि कानूनों का विरोध किया है। 

असम राज्य जहां पर भाजपा ने फिर से सत्ता हासिल की। यहां पर 26 प्रतिशत ऐसे लोग जिन्होंने इसके लिए वोट दिया, का मानना है कि नए कृषि कानूनों को निरस्त कर देना चाहिए। पश्चिम बंगाल में भाजपा मतदाताओं के बीच 22 प्रतिशत लोगों ने नए कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए अपना समर्थन दर्शाया है। हालांकि केरल और तमिलनाडु में जहां भाजपा एक प्रभावशाली दल नहीं है, उसने दूसरे दलों से गठबंधन कर चुनाव लड़ा है वहां पर भी नए कृषि कानूनों का समर्थन आधार कहीं पर दिखाई नहीं देता।

चुनावों के बाद का सर्वे डाटा दर्शाता है कि किसानों के प्रदर्शन के बारे में उच्चस्तरीय जागरूकता व्याप्त है। यह सर्वे चार राज्यों में किया गया है। किसान आंदोलन के समर्थन में सोशल मीडिया के योगदान के चलते देश भर में किसानों के हक में समर्थन प्राप्त हुआ है। चाहे कोई किसान हों या अन्य, गांव में रहता हो या शहर में बहुत कम लोगों ने कहा है कि वह इस मुद्दे से अंजान हैं। 

ऐसे समय में जबकि भाजपा कई संकटों को झेल रही है पार्टी को चाहिए कि इससे पहले समस्या और विकराल हो जाए कृषि कानूनों को दफन करने का यह अच्छा मौका है ताकि इस संकट को और कम किया जा सके।-संजय कुमार

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