हिंदुत्व के मुद्दे पर लौटी भाजपा

Edited By ,Updated: 24 Apr, 2019 03:40 AM

bjp returning to hindutva issue

ऐसा लगता है कि वर्तमान लोकसभा चुनावों के बीच भाजपा विकास के एजैंडे से वापस हट कर ङ्क्षहदुत्व के मुद्दे पर आ गई है। हालांकि ये दोनों मुद्दे समानांतर चल रहे हैं लेकिन 2 चरणों का मतदान समाप्त होने के बाद पार्टी ङ्क्षहदुत्व पर ज्यादा केन्द्रित हो गई है।...

ऐसा लगता है कि वर्तमान लोकसभा चुनावों के बीच भाजपा विकास के एजैंडे से वापस हट कर ङ्क्षहदुत्व के मुद्दे पर आ गई है। हालांकि ये दोनों मुद्दे समानांतर चल रहे हैं लेकिन 2 चरणों का मतदान समाप्त होने के बाद पार्टी हिंदुत्व पर ज्यादा केन्द्रित हो गई है। यह बात पार्टी द्वारा भोपाल में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ हाई-प्रोफाइल साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को मैदान में उतारने के भाजपा के फैसले से स्पष्ट हो जाती है। 

भाजपा के दृष्टिकोण से प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार बनाने से 2 मकसद पूरे होते हैं-पहला दुर्जेय कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह से सीधी टक्कर, दूसरा इसका असर न केवल मध्य प्रदेश में बल्कि महाराष्ट्र सहित पड़ोसी राज्य में भी पड़ेगा। हालांकि भोपाल की सीट के लिए 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान के नामों पर भी चर्चा चल रही थी लेकिन पार्टी ने संभवत: आर.एस.एस. के इशारे पर साध्वी को टिकट दिया। ऐसा कहा जा रहा है कि संघ परिवार ने साधुओं को यह संदेश भेजा था कि वे वर्तमान चुनावों में भाजपा के पक्ष में वोट जुटाएं। कुछ समय पहले अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनाने के लिए साधुओं ने मोदी सरकार की आलोचना की थी। 

साध्वी के बचाव में उतरे मोदी
साध्वी प्रज्ञा को चुनाव मैदान में उतारने के निर्णय का बचाव करते हुए  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि प्रज्ञा की उम्मीदवारी उन लोगों के लिए एक सांकेतिक जवाब है जो हिंदू संस्कृति को आतंकवाद के तौर पर प्रचारित करते हैं और उसकी उम्मीदवारी कांग्रेस पार्टी को महंगी पड़ेगी। साध्वी पर एक आतंकी घटना में कथित संलिप्तता पर गैर-कानूनी गतिविधियां प्रतिबंध कानून के तहत आरोप लगे थे लेकिन उसे जमानत पर रिहा किया गया था हालांकि मामले की सुनवाई कर रहे एन.आई.ए. कोर्ट ने अभी तक उसे दोषमुक्त नहीं किया है। यह भी विरोधाभास ही है कि वह दिग्विजय सिंह ही थे जिन्होंने यू.पी.ए. के कार्यकाल में ‘भगवा आतंकवाद’  शब्द उछाला था। 

यह पहला मौका नहीं है जब भाजपा ने साधुओं को चुनाव मैदान में उतारा है। उमा भारती इसी प्रकार की एक हाई-प्रोफाइल नेता हैं। पार्टी ने ङ्क्षहदू साधु जयसिद्धेश्वर महास्वामी जी को भी शोलापुर से पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा है। हिंदुत्व का एक अन्य चेहरा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं जिन्हें मुस्लिम विरोधी बयान के कारण चुनाव आयोग ने दूसरे चरण के मतदान से पहले 72 घंटे के लिए प्रचार करने से रोक दिया था। 

विवादित टिप्पणियों पर आयोग ने मांगा जवाब
साध्वी प्रज्ञा ने भाजपा को खुश करने की कवायद में यहां तक कह दिया कि हेमंत करकरे उसके ‘श्राप’ के कारण मारे गए थे। शहीद के खिलाफ इस तरह की टिप्पणी से लोगों में काफी गुस्सा था इसलिए भाजपा ने उसके विचारों से दूरी बना ली। अगला विवादास्पद बयान उसने बाबरी मस्जिद विध्वंस में अपनी भूमिका को लेकर दिया। ‘‘मैं ढांचे को तोडऩे के लिए उसके ऊपर चढ़ी। मुझे इस बात का बहुत गर्व है कि भगवान ने मुझे ऐसा करने का मौका और साहस दिया और मैंने यह किया।’’ आयोग ने इन दोनों टिप्पणियों के लिए साध्वी प्रज्ञा से जवाब मांगा है। 

हिंदुत्व का मुद्दा दोबारा केन्द्र में क्यों आ गया है। वास्तव में, यह हमेशा अन्य विषयों के समानांतर चलता रहा है। पार्टी को लगता है कि उसके पास चुनाव जीतने की संभावना है क्योंकि विपक्ष मोदी की कमजोरियों को जाहिर करने और 2014 में किए गए  वायदों को पूरा करने में उनकी असफलता को ठीक ढंग से उठाने में नाकाम रहा। विकास कार्ड नहीं चलने के कारण अब भाजपा ने हिंदुत्व पर फोकस करने का निर्णय लिया है। 

अब तक भाजपा ने इन चुनावों के दौरान मोदी को चेहरा बनाते हुए अध्यक्षीय प्रणाली की तरह चुनाव लडऩे की रणनीति बनाई है। प्रचार के दौरान वह बेदाग सरकार की बात करती रही है। पार्टी का मतदाताओं के लिए संदेश है कि हमने अच्छा काम किया है लेकिन और भी बहुत कुछ करना बाकी है। प्रचार के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सहित विभिन्न मुद्दों पर मोदी सरकार के साहसिक फैसलों की बात की जाती है। इसके अलावा 7 बड़ी कल्याणकारी योजनाओं की बात की जाती है जिनमें स्वच्छ भारत और स्वास्थ्य बीमा आदि शामिल हैं। ‘मजबूत’ मोदी सरकार और ‘मजबूर’ विपक्षी सरकार पर फोकस किया जा रहा है। सबसे ज्यादा कांग्रेस की नाकामियों पर बात की जा रही है। 

कम हो रहा पुलवामा का असर
जमीनी स्तर से ये रिपोर्टें आने के बाद कि पुलवामा मामले का प्रभाव कम हो रहा है, भाजपा को अपना दाव बदलना पड़ा है। सभी 5 दक्षिणी राज्यों में लोग स्थानीय मुद्दों को लेकर ज्यादा ङ्क्षचतित हैं। लोकसभा में 130 सांसद भेजने वाले दक्षिण में पाकिस्तान को कोसने को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं है। भाजपा यह जान चुकी है कि रसोई गैस कनैक्शन, ग्रामीण विद्युतीकरण योजना, सस्ते घर तथा जन-धन बैंक खाते व फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे उपायों के बावजूद उस तरह की मोदी लहर नहीं बन पाई है जैसी 2014 में थी। यही कारण है कि मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ अपनी चुनावी रैलियों में ध्रुवीकरण पर जोर दे रहे हैं। भाजपा द्वारा मतदाताओं को लुभाने के लिए हिंदुत्व कार्ड का इस्तेमाल उसकी हताशा को दर्शाता है। चुनाव के अगले चरणों में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा का यह दाव कितना कामयाब रहता है।-कल्याणी शंकर

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